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श्री 1008 सिद्ध चक्र मंडल विधान के चोथे दिन चोसठ रिद्धि मंत्रों के अर्घ्य चढ़ाकर आराधना की.. भगवान बनने से पहले इंसान बनना सीखो इंसान बनने वाले ही भगवान बनते है.. आचार्यश्री निर्भयसागर

 चोसठ रिद्धि मंत्रों के अर्घ्य चढ़ाकर आराधना की गई.

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में श्री 1008 सिद्ध चक्र मंडल विधान जैन धर्मशाला में चल रहा है। आज विधान के चैथे दिन चैसठ रिद्धि मंत्रों के  अर्घ्य  चढ़ाकर आराधना की गई। आचार्य श्री ने कहा गुरु के मुख से प्रभु की वाणी सुनने का हजार गुना ज्यादा महत्व बढ़ जाता है। धर्म की वही बात पंडित से सुनने पर तर्क कुतर्क उत्पन्न होता है। धर्म ग्रंथ स्वयं पढ़ने पर एकाग्रता बढ़ती है और गुरु के मुख से सुनने पर आत्मविश्वास विशुद्ध एकाग्रता और पुण्य की वृद्धि होती है। दान पूजा त्याग तपस्या आत्मा की शुद्धि के लिए की जाती है। 

 आचार्य श्री ने कहा जैसे अंधों से नारी का श्रृंगार पूछने से, बहरो से गीत के लए छंद पूछने से कोई फायदा नहीं वैसे ही आत्मा ही परमात्मा कैसे बनती है यह बात रागियों से पूछने से कोई लाभ नहीं है। इसलिए आत्मा से परमात्मा बनने की बात वैरागीयों से पूछना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा भगवान बनने से पहले इंसान बनना सीखो इंसान बनने वाले ही भगवान बनते है। सच्चा इंसान  को अंग्रेजी में मेन ( उंद ) कहते हैं । यह मेन शब्द स्वयं कह रहा है एम फार मर्सी अर्थात दयालु , एफआर अफेक्शन अर्थात प्रेमी, एन फॉर नॉरमल अर्थात सरल । इससे सिद्ध है कि जो दयालु है, प्रेमी है और सरल स्वभावी है वही सच्चा इंसान हैं, मानव है। जो अपने भाई को देख कर क्रोध करता है, बड़बड़ करता है और मंदिर में आकर बड़ा धर्म दिखाता है वह स्वान की भांति है। वह धर्म का स्वांग रच रहा है ऐसे व्यक्ति का कभी कल्याण नहीं होता है ।

 आचार्य श्री ने कहा धर्म स्वानुभूति का नाम है स्वांग रचने का नहीं ।आचार्य श्री ने कहा आज के युवा हरिवंश राय बच्चन की वे पंक्तियां दोहराने लगे हैं जिसमें लिखा है मंदिर मस्जिद बेर बढ़ाय प्रेम बढ़ाय मधुशाला । यह पंक्तियां दिल को कचोटति है क्योंकि मंदिर मस्जिद पैर मिटाने के लिए होते हैं, बढ़ाने के लिए नहीं । लेकिन आज कट्टरपंथी लोग छोटी सी बात को लेकर गले काट रहे हैं , आतंक फैला रहे ,सारी दुनिया को तबाह करने की धमकी दे रहे है । ऐसे में सर्वधर्म समभाव की बात नहीं रह जाती है। इंसानियत की बात नहीं रह जाती है। इंसानियत गला काटना नहीं ,गले लगाना सिखाती है । समता भाव आना सर्व आत्म भाव है। सभी जीवो के प्रति प्रेम दया का भाव आना धर्म भाव है । सभी धर्मों के प्रति विरोध का भाव उत्पन्न नहीं होना सर्वधर्म समभाव है । सर्वधर्म समभाव का अर्थ यह नहीं कि सभी धर्म समान है क्योंकि हिंसा और अहिंसा दोनों समान नहीं हो सकते । जो हिंसा को धर्म मानते हैं उन्हें अहिंसा वाले समान नहीं मान सकते हैं । इसलिए सर्वधर्म समभाव का अर्थ मात्र साइलेंट हो जाना ,मौन हो जाना, विरोध नहीं करना । 

 सिद्धचक्र महामंडल विधान के राजा श्री पाल एवं रानी मैना सुंदरी बनने का सौभाग्य विधान के पुण्य अर्जक अरविंद कुमार जी धर्म पत्नी सुधा जैन, सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य उन्हीं के पुत्र अंकित कुमार जी श्रीमती आयुषी जैन को प्राप्त हुआ भरत चक्रवर्ती बनने का सौभाग्य  अरविंद कुमार धर्म पत्नी अंजलि जैन बड़ा वाला परिवार जैन केमिकल एवं प्लास्टिक बालों को मुख्य पात्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । विधान करता परिवार की ओर से सभी अतिथियों एवं पूजा करने वालों को शुद्ध भोजन प्रदान किया जा रहा है।

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