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सिद्ध चक्र महामंडल विधान पंचम दिवस 64 अर्घ चढ़ाए गए.. संस्कारी खुद झुक कर खुश होते हैं, अहंकारी दूसरों को झुका कर खुश होते हैं- वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज..

सिद्ध चक्र महामंडल विधान पंचम दिवस 64 अर्घ चढ़ाए गए

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में श्रीमान अरविंद कुमार जी, पुत्र अंकित कुमार अर्पित कुमार जैन केमिकल वालों की के सौजन्य से सिद्धों की आराधना वाला श्री 1008 सिद्ध चक्र मंडल विधान चल रहा है। विधान के पंचम दिन सर्वप्रथम अभिषेक, शांति धारा की गई। तदुपरांत केवल ज्ञान आदि की पूजा की गई। 

इस अवसर पर आचार्य श्री ने कहा मंत्रों में अनंत शक्ति होती है। मंत्र अंतरंग में बैठे कर्मों का नाश करते हैं और बाहर बाधाओं को दूर करते हैं। जिस प्रकार एक छोटे से अंकुश द्वारा विशालकाय हाथी को बस में किया जाता है वैसे ही एक छोटे से मंत्र द्वारा बड़े-बड़े देवी देवताओं की शक्तियों को भी बस में किया जा सकता है। मंत्रों के प्रभाव से गुणात्मक परिवर्तन होता है। गुणात्मक परिवर्तन देखने में नहीं आता है। मात्र रासायनिक परिवर्तन ही देखने और पकड़ने में आता है। मंत्रों के द्वारा अदृश्य अध्यात्मिक शक्ति को उद्घाटित किया जाता है। जिस प्रकार सूर्य किरणों की ऊर्जा दुनिया को जला सकती है लेकिन सूर्य की किरणें बिखरी हुई होने से वह ऊष्मा जला नहीं पाती जब उन्हीं किरणों को लेंस द्वारा एक फोकस बिंदु पर केंद्रित कर दिया जाता है तो कुछ ही क्षण में आग उत्पन्न हो जाती है और सामने रखे हुए कागज कपड़े आदि को जला देती है। 

सूर्य किरणों के समान है हमारी आत्मा में भी अनंत शक्ति है, अनंत ऊर्जा है लेकिन वह शक्ति कर्मों के आवरण के कारण ढकी हुई है। आत्मा की वर्तमान में जो कुछ शक्ति उद्घाटित है वह पांच इंद्रियों एवं मन के द्वारा नष्ट हो रही है। यदि उस शक्ति को मंत्र योग एवं ध्यान के माध्यम से केंद्रित कर दी जाए औरआत्मा की शक्ति को ढकने वाले कर्म के आवरण नष्ट कर दिए जाएं तो आत्मा की अनंत शक्ति प्रगट हो जाएगी। अनंत शक्ति प्रकट होने पर आत्मा परमात्मा बन जाती है। कर्मों के जल जाने पर आत्मा परम शुद्ध हो जाती है। आत्मा की शक्ल नहीं, अकल होती है। अक्ल के कारण आत्मा ज्ञानवान है। ज्ञान दर्शन आत्मा का स्वभाव है। आत्मा के स्वभाव की प्राप्ति करना ही सच्ची साधना है। 

आचार्य श्री ने कहा संस्कारी खुद झुक कर खुश होते हैं। अहंकारी दूसरों को झुका कर खुश होते हैं। जब तक अहंकार नहीं झुकता कब तक रिश्ता नहीं बनता। जहां जिसके दिल से अहंकार चला जाता है वहां दूसरों से बना रिश्ता चला जाता है। यदि सुख शांति और प्रसन्नता चाहते हो तो कर्तव्य करते चले जाओ श्रेय लेने की चाहत मत रखो। चाहे संसार का मार्ग हो अथवा मोक्ष का मार्ग साइन बोर्ड सिर्फ एक ही है विश्वास। जो मां बाप से मिला है उसे संतान को देकर जाएं। जो प्रकृति से मिला है उसी छोड़कर जाएं। जो भाग्य से मिला है उसी भोग कर जाएं। जो भगवान से मिला है उसे भक्ति में लगा कर जाएं। कार्य की सफलता मिलने पर ज्ञानी जन श्रेय दूसरों को देते हैं और अज्ञानी श्रेय स्वयं लेना चाहते हैं। यदि भटक गए हो तो डरना नहीं साहस और विश्वास के साथ आगे बढ़ते जाना, रास्ता जरूर मिलेगा। रास्ता मिलने पर मंजिल भी जरूर मिलेगी। आचार्य श्री ने अंत में कहा जिसने प्रभु पर किया भरोसा है। जिसने प्रभु खा लिया सहारा है। जिसने संकट में प्रभु को पुकारा है। उसको प्रभु ने जरूर उभारा है।

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