सुख चाहने से नहीं बल्कि अच्छे कार्य करने से मिलता है..
दमोह। सुख आत्मा की निधि है, सुख चाहने से नहीं मिलता है बल्कि अच्छे कार्य करने से सुख मिलता है। दुख से हर प्राणी भयभीत है, दुख के प्रतिकार करने का नाम सुख नहीं है। सुख दो प्रकार का होता है एक इंद्रिय शारीरिक सांसारिक सुख दूसरा स्वाभाविक आत्मिक मोक्ष सुख। इंद्रिय सुख का फल दुख है। इंद्री सुख क्षणिक होता है। सुबह से शाम तक जन्म से मरण तक हर प्राणी सुख पाने के लिए प्रयासरत रहता है। प्रत्येक कार्य सुख पाने की दृष्टि से करता है। यह उपदेश वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने नसिया दिगंबर जैन मंदिर में दिया। प्रवचन के पूर्व आचार्य श्री के चरणों का अभिषेक राजेश कुमार जैन ने किया एवं श्री अभय बनगांव, अभय एडवोकेट, महेश दिगंबर दाल मिल, राजेंद्र शाहपुर ,चक्रेश सराफ,राजेंद्र कुमार कमर्शियल इत्यादि समस्त मंदिर के पदाधिकारी एवं श्रेष्ठी वर्ग ने आचार्य श्री की पूजन की।
आचार्यश्री ने कहां कि सुख के साधनों को जुटाने में आदमी दुख ज्यादा उठाता है और सुख के साधनों से सुख कम प्राप्त कर पाता है। मानव जीवन साधनों को जुटाने के लिए नहीं साधना करने के लिए मिला है। लेकिन भौतिक वादी युग में साधना छूट रही है और साधनों में जिंदगी खो रही है। सुख के साधनों को छोड़कर जो आत्म साधना में लग जाता है वही सच्चा सुख प्राप्त कर पाता है। वैराग्य धारण करने के उपरांत की गई आत्म साधना एक दिन परमात्मा बना देती है। आकुलता दुरूख का कारण है निराकुलता सुख का कारण है। परिग्रह और प्रवृत्ति को छोड़े बिना निराकुलता नहीं आती है।
आचार्य श्री ने कहा जीवन रूपी नदी के सुख और दुख ये दो किनारे है। जिनके बीच जीवन रूपी नदी बहती है। इंद्रिय सुख प्याज के छिलके केले के वृक्ष के समान सार हीन है। इंद्रिय सुख भोगते समय मेहदी के समान हरे हरे से अच्छे लगते है। लेकिन वे कर्मों का लाल-लाल रंग आत्मा के ऊपर लगाकर चले जातेहै। साधु को आत्म साधना में लगे रहने के लिए परिचय प्रतिष्ठा परंपरा परिवार और परिणय इन पांच पकार को छोड़ना आवश्यक है। यह पांच पकार मद्य मास मधु रूपी तीन मकार से भी ज्यादा खतरनाक है।
आचार्य श्री ने कहा धर्म करत संसार सुख धर्म करत निर्वाण धर्म पंथ साधे बिना नर तिर्यच समान क्योंकि पशु-पक्षी भी पेट भरते हैं भोजन करते हैं विषय भोग भोगते है संतान का लालन पालन करते हैं और रहने के लिए आश्रय ढूंढ लेते हैं इसी प्रकार मनुष्य भी कर लेता है लेकिन धर्म नहीं करता तो पशु और मनुष्य में कोई अंतर नहीं है। मानव जीवन पशु बनने के लिए नहीं परमात्मा बनने के लिए मिलता है ।दूसरों की निंदा आलोचना करने के लिए नहीं परमात्मा की भक्ति और परोपकार के लिए मिलता है।
31 जनवरी को आचार्य श्री के मंगल प्रवचन एवं आहार नसिया जैन मंदिर से होगा1रू00 बजे आचार्य श्री संघ सहित पंचकल्याणक स्थल जबलपुर नाका स्थित जैन मंदिर पहुंचेंगे वहां प्रतिदिन सुबह 9 बजे मंगल प्रवचन होंगे।
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