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पर्यूषण पर्व का नौवां दिन उत्तम आकिंचन धर्म को समर्पित रहा..आचार्य श्री निर्भय सागर महाराज के सानिध्य में 5 श्रावको ने किया बाहुबली भगवान का महा मस्तकाभिषेक.. आचार्य श्री ने कहा कि परिग्रह बालों को ग्रह लगते हैं..

बाहुबली भगवान का महा मस्तकाभिषेक..
दमोह। श्री दिगंबर जैन पारसनाथ नन्हे मंदिर जी में 10 लक्षण पर्व के अवसर पर सोशल डिस्टेंस को ध्यान में रखकर पांच श्रावको द्वारा आचार्य श्री निर्भयसागर जी महाराज के सानिध्य में अभिषेक किया जा रहा है। सोमवार को लगातार तीसरे दिन भी भगवान बाहुबली का महा मस्तकाभिषेक संपन्न हुआ।  
 
आज उत्तम आकिंचन धर्म के दिन बाहुवली भगवान महा मस्तकाभिषेक के पुण्यार्जक श्रावक श्रेष्ठी श्रीमान मनीष कुमार सतीश कुमार, मुकेश कुमार जैन, शरद कुमार, जैन मुकेश जैन, जीतू जैन,राजेश मानक जैन एवं शांति धारा के पुण्यार्जक सुनील, प्रवीण कुमार जैन, रविंद्र पदम बजाज, जीतू जैन, राजेंद्र जैन अटल को सौभाग्य प्राप्त हुआ है।मंगलवार को प्रातः बेला में बाहुबली भगवान के महा मस्तकाभिषेक कार्यक्रम का समापन आचार्यश्री के सानिध्य में भगवान बांसूपूज्य के निर्वाण कल्याणक के साथ संपंन होगा।

र्यूषण पर्व का नौवां दिन उत्तम आकिंचन धर्म 
 पर्यूषण पर्व के 9 वे दिन आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने कहा  कि बाह्य वस्तु, धन दौलत, मकान, घोड़ा गाड़ी को त्यागने के उपरांत शरीर के प्रति भी किंचित मात्र मोह नहीं रह जाना आकिंचन धर्म है। आकिंचन धर्म त्याग धर्म के बाद आता है। जब बाह्य वस्तु धन दौलत आदि का त्याग करने के बाद शरीर से ममत्व नहीं रह जाता तब अपनी अखंड संवेदनशील आत्मा में जो लीनता आती है वहां आकिंचन धर्म है एक अकेले हो जाना खाली हो जाना तेरे मेरे पने का अभाव हो जाना और अंतर्मुखी हो जाना ही आकिंचन धर्म है। जैसे तराजू की खाली पालड़ी ऊपर जाती है भरी नीचे आती है वैसे ही राग दोष में आदि पर एक ग्रह के भाव से लदी आत्मा नीचे नरक में जाती है और खाली आत्मा ऊपर परमात्मा की ओर जाती है दिगंबर मुनि समस्त पर एक ग्रह को छोड़कर अपने अंतर्मुखी यात्रा करते है, इसलिए उनको ग्रह नहीं लगते
आचार्य श्री ने कहा कि परिग्रह बालों को ग्रह लगते हैं, अरे परिग्रह 24 प्रकार के होते हैं, यह चैबीस जेब है, जेबकतरा  जेब वालो के पीछे लगता है, जिन्हें पॉकिटमार कहते है। दिगंबर मुनियों के पास कोई जेब नहीं होती, इसलिए उनके पीछे जेब कतरे नहीं रख सकते। धन कमाना बुरा नहीं है, परंतु छुपा कर गाड़ देना बुरा है, यदि धन परोपकार में लगता है, तो भला है, जैसे मूंगफली के छिलके को उतारे बिना अंदर के पतले लाल छिलके को हटाया नहीं जा सकता। वैसे ही धन दौलत वस्त्र पर एक ग्रह आदि को शरीर से हटाया नहीं जा सकता। शब्द ज्ञान से कल्याण नहीं होता। बल्कि ज्ञान को आचरण में ढालने श्री कल्याण होता है।

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