आचार्यश्री निर्भय सागर का मंगल उदवोधन
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भय सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन स्वाध्याय की कक्षा में अपने शिष्यों को बताया कि आज गुरु शिष्य के बीच वात्सल्य का अभाव पति पत्नी के बीच प्रेम का अभाव और संदेह इसलिए पनप रहा है कि धारावाहिक टीवी चैनल और फिल्मों में स्वाबलंबी जीवन जीने की बात लेट शादी करने की बात, स्वतंत्र उन्मुक्त व्यसन बहुत परोसा जा रहा है। लेकिन पाप से डर व्यसन रहित जीवन का आनंद संदेह रहित रिश्ते का मजा संयुक्त परिवार का आनंद और व्यसन फैशन संदेह विश्वासघात छिपकर पाप करने आदि के दुष्परिणाम नहीं बतलाए जा रहे हैं।इसी कारण विवाह के उपरांत दंपत्ति अन्यत्र प्रेम खोज रहे हैं। दांपत्य जीवन हिंसक होता चला जा रहा है। प्रेम का स्थान ईर्ष्या और द्वेष ले रहा है। महिलाओं में पब्लिक संबंध बढ़ रहा है। सहकर्मियों के साथ मेल मिलाप और प्रेम संबंध बढ़ रहा है। गैरकानूनी संबंध स्थापित हो रहे हैं। इसलिए दंपत्ति एक दूसरे की हत्या करने और कराने में नहीं हिचक रहे हैं। इसके अन्य कारण बताते हुए आचार्य श्री ने कहा युवाओं में जो रिश्ते प्रेम अथवा भौतिक सुख सुविधा और भोग की त्वरित चाह पनप रही है उसकी चाहत के कारण ही वह दुस्साहसी बन जाता है युवाओं के अंदर सामंजस, सहनशीलता, त्याग, संयम और श्रम घटता चला जा रहा है। इसलिए जीवन साथी का जीवन भर के साथ रहने की आकांक्षा फलीभूत होते दिखाई नहीं दे रही है। एकाधिकार की लड़ाई प्रारंभ हो गई है अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने की जिद दीमक की तरह लग रही है। अहम भाव टकरा रहा है जिससे एक दूसरों के दिलों में चोट पहुंच रही है। परिणाम स्वरूप दंपत्ति एक दूसरे से प्रेम ना करके अन्य प्रेम खोजने लगे है।
आचार्यश्री ने कहां कि यदि एकाधिकार की लड़ाई समाप्त हो जाए एक दूसरे को श्रेष्ठता का जामा पहना दिया जाए अवहेलना को शरण ना दी जाए एक दूसरे की तारीफ की जाए आपसी प्रेम का संवाद बढ़ जाए तो एक दूसरे से दंपत्ति संतुष्ट होने लग जाएगे इस युग में मोबाइल ने भी दांपत्य जीवन के आपसी प्रेम वात्सल्य और आनंद के संवाद को छीन लिया है इस मोबाइल के कारण पारिवारिक संवाद हीनता बढ़ती चली जा रही है और विषमबाद बढ़ता चला जा रहा है दांपत्य जीवन सुखमय होने से घर में शांति और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है भारतीय संस्कृति में विवाह इसलिए जरूरी है कि कर्तव्य अधिकार जिम्मेदारी विश्वास प्रतिष्ठा स्वास्थ्य सामाजिक संबंध सामाजिक व्यवस्थाएं नैतिकता और सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती चली जाती है विवाह एक मानवीय अधिकार है।
आचार्य श्री ने कहा प्रेम और नैतिकता कहीं बाहर मार्केट में नहीं मिलती है और उसे घुट्टी बनाकर पिलाया भी नहीं जा सकता बल्कि परिवार और समाज में रहकर धीरे-धीरे सीखा जाता है इसी कारण संयुक्त परिवार होना चाहिए एकल परिवार नहीं, संयुक्त परिवार सुखी परिवार होता है आज परिवार नियोजन नहीं बल्कि परिवार संयोजन चाहिए संयुक्त परिवार से ही परिवार का संयोजन बना रहता है दांपत्य जीवन अधिकारों का क्षेत्र ना होकर सुखद मित्रता का क्षेत्र होना चाहिए।
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