धर्म के नाम पर पीछे हटते आज के युवा-आचार्य श्री
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन हुए जिसमें आचार्य श्री ने कहा कि माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार मोहे के होते हैं और साधु संतों के द्वारा दिए गए संस्कार मोक्ष के होते हैं। पेट भरने की कला इंसान क्या पशु-पक्षी भी अपनी संतान को सिखा देते है। लेकिन आत्म कल्याण की कला, परमात्मा से परिचय की कला एवं स्वयं की आत्मा को परमात्मा बनाने की कला मनुष्य जीवन में सिर्फ सच्चे बैरागी वीतरागी साधु शिखा पाते हैं। उन्होंने कहा इस जीवन के संस्कार अगले जीवन भी काम आती है। मानव जीवन पेट भरने के लिए नहीं मिला है बल्कि पेट भर कर धर्म और मोक्ष आदि पुरुषार्थ करने के लिए मिला है। वस्तु की कीमत संस्कारों से बढ़ जाती है। मिट्टी को संस्कारित करके मूर्ति बनाने पर पूजा हो जाती है इसीलिए संस्कारों से माटी के महादेव की पूजा हो जाते हैं।
श्री दिगंबर जैन नन्हें मंदिर जी धर्मशाला में कोरोना महामारी से मुक्ति पाने हेतु आचार्यश्री संघ के सानिध्य में चल रहे श्री शांति विधान अवसर पर आज पत्रकार अटल राजेंद्र जैन परिवार, रविंद्र कुमार निहाल परिवार, गांगरा शीशम वाला परिवार, संतोष कुमार सीमा जैन सोमखेड़ा परिवार, संगीता दीदी परिवार, भारत मलैया परिवार ने शांतिनाथ महामंडल विधान करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
विधान के मध्य आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के आचार्य श्री ने कहा छल, कपट, हिंसा, झूठ, चोरी और लोभ लालच के कुसंस्कार अनादि काल से पढ़े हुए हैं। इन संस्कारों का जीवन में कोई मतलब नहीं है। जीवन में सुसंस्कारों का मतलब है सुसंस्कार का नाम धर्म है कुसंस्कार का नाम अधर्म है। आज के युवा धर्म के नाम पर पीछे हटते हैं इसलिए धर्म की बात ना करके संस्कारों की बात करना चाहिए। कैसे बैठना, कैसे बोलना, कैसे चलना, कैसे भोजन करना, कैसे सोना इत्यादि सभ्यता पूर्ण क्रिया करने को सुसंस्कार कहते हैं यही तो धर्म कहलाता है। आचार्य श्री ने कहा जीवन को संस्कारों से श्रृंगारित करो।
आचार्य श्री ने सात प्रकार के संस्कारों की चर्चा करते हुए कहा प्रथम तो पूर्व जीवन के संस्कार है जो वर्तमान जीवन में काम आ रहे हैं, दूसरे गर्भ के संस्कार, तीसरे जन्म के संस्कार, चैथे संगति के संस्कार, पांचवें विवाह के संस्कार ये जीवन भर काम आते हैं लेकिन, छठवें गुरु दीक्षा के संस्कार भव भव तक काम आते हैं, अंतिम सांतवा संस्कार हो अर्थात दाह संस्कार को उसके पहले दान पूजा भक्ति सेवा एवं स्वाध्याय के संस्कार जीवन में जरूर डाल लेना चाहिए यह संस्कार मोक्ष तक ले जाते हैं। इन संस्कारों को सिर्फ मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है इसीलिए मनुष्य जीवन को पाने के लिए देवता भी तरसते हैं इसी कारण मानव जीवन सर्वाधिक मूल्यवान है।
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