भगवान पारसनाथ का निर्वाण कल्याणक मनाया गया
आचार्य श्री ने कहा पशु के हाथ नही होते इस लिए वह पुरुषार्थ नही कर पाता। हाथों वाला ही पुरुषार्थ कर पाता है। मनुष्य के पास दो हाथ होते है इस लिए उसे पुरुषार्थ करना चाहिये। नफरत से नफरत मिलती है, प्यार से प्यार मिलता है। इस लिये नफरत के नही प्रेम के बीज बोना चाहिए। क्रिया की प्रति क्रिया अवश्य होती है इस लिए हम जैसी क्रिया करगे वैसे ही प्रति क्रिया सामने वाला हमसे करेगा। जो क्रोध को पीता है, गम को खाता है, दया को करता है, सत्य को बोलता है, दान को देता है वही एक दिन भगवान पार्श्वनाथ वन जाता है।
मुनि शिवदत्त सागर जी ने कहा किसी भी व्यक्ति को डण्डा मत मारो, ऐहसान करके मारो तो वह तुम्हे उपकारी माने गा। ऐहसान से मारा हुआ व्यक्ति बदला नही लेता बल्कि बदल जाता है। मुनि हेमदत्त सागर जी ने कहा हम जैसे दिगम्बर आये है वैसे ही जाना होगा फिर धन दौलत को लेकर झगड़ा नही करना चाहिये। मुनि सुदत्त सागर जी ने कहा जिस वस्तु को लेकर आप क्रोध करते है जिसकी प्राप्ति के लिए छल कपट करते है वह आपकी है ही नही। और वह तुम्हारे साथ जाएगी भी नही इस लिए मोह भाव त्याग देना चाहिये। मुनि सोमदत्त सागर जी ने कहा क्षमा से मोक्ष का और क्रोध से नरक का दुख मिलता है। जो व्यक्ति आपसे खुश नही है तो उसे खुश करने का उपाय खोजना चाहिये। मुनि गुरुदत्त सागर जी ने कहा धैर्य,समता, विवेक और बुद्धि धारण करने वाला व्यक्ति पूज्यनीय बन जाता है। क्षुल्लक चन्द्रदत्त सागर जी ने कहा क्रोध की अग्नि को क्षमा के नीर से शांत करना चाहिये। हीनता से वीरता आती है इस लिए दीनहीन नही बनना चाहिये।
इसके पूर्व महा मष्टकाभिषेक किया गया जो वर्ष में एक ही बार श्रावण शुक्ला सप्तमी को होता है। अभिषेक करने का सौभाग्य यतेंद्र कुमार टीकमगढ़, आशीष जैन फ़िरोज़ाबाद, दिनेश कुमार, अनिल फोटो, विमल खजरी एवं राजकुमार रानू को ही प्राप्त हो सका। शन्तिधारा करने का सौभाग्य श्रेयास लहरी एवं राजू नायक को प्राप्त हुआ। मोक्ष कल्याणक के निर्माण लाडू चढ़ाने का सौभाग्य ऋषभ कुमार सनाई एवं वीरेंद्र कुमार जी को प्राप्त हुआ।
दमोह।वेज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ससघ सानिध्य में जैन धर्म के तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक महोत्सव विशुद्ध भावना के साथ पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में मनाया गया। इस अवसर पर भगवान पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा का अभिषेक किया गया। तथा निर्वाण लाडू समर्पित किया गया।कार्यक्रम के उपरांत सभी मुनिराज के मंगल उपदेश हुये।इस अवसर पर आचार्य श्री ने कहा राम, लक्ष्मण जैसा भ्रात प्रेम होना चाहिये , लव कुश भ्रात जैसा सहयोग होना चाहिए, देश भूषण और कुल भूषण जैसा भ्रात वैराग्य होना चाहिये, विभीषण और रावण जैसे भाई भ्रात में विभीषण जैसा सत्य का पक्ष होना चाहिये लेकिन मरुभूति के भाई वायुभूति जैसा वैर नही होना चाहिये और भरत बाहुवली जैसा भाइयो के बीच युद्ध नही होना चाहिए। मरुभूति जैसा अपने भाई के प्रति क्षमा भाव होना चाहिये हमे कमठ नही कर्मठ बनना चाहिये। घर की बात को परघर सुनाने में पश्चताप ही हाथ लगता है।
आचार्य श्री ने कहा पशु के हाथ नही होते इस लिए वह पुरुषार्थ नही कर पाता। हाथों वाला ही पुरुषार्थ कर पाता है। मनुष्य के पास दो हाथ होते है इस लिए उसे पुरुषार्थ करना चाहिये। नफरत से नफरत मिलती है, प्यार से प्यार मिलता है। इस लिये नफरत के नही प्रेम के बीज बोना चाहिए। क्रिया की प्रति क्रिया अवश्य होती है इस लिए हम जैसी क्रिया करगे वैसे ही प्रति क्रिया सामने वाला हमसे करेगा। जो क्रोध को पीता है, गम को खाता है, दया को करता है, सत्य को बोलता है, दान को देता है वही एक दिन भगवान पार्श्वनाथ वन जाता है।
मुनि शिवदत्त सागर जी ने कहा किसी भी व्यक्ति को डण्डा मत मारो, ऐहसान करके मारो तो वह तुम्हे उपकारी माने गा। ऐहसान से मारा हुआ व्यक्ति बदला नही लेता बल्कि बदल जाता है। मुनि हेमदत्त सागर जी ने कहा हम जैसे दिगम्बर आये है वैसे ही जाना होगा फिर धन दौलत को लेकर झगड़ा नही करना चाहिये। मुनि सुदत्त सागर जी ने कहा जिस वस्तु को लेकर आप क्रोध करते है जिसकी प्राप्ति के लिए छल कपट करते है वह आपकी है ही नही। और वह तुम्हारे साथ जाएगी भी नही इस लिए मोह भाव त्याग देना चाहिये। मुनि सोमदत्त सागर जी ने कहा क्षमा से मोक्ष का और क्रोध से नरक का दुख मिलता है। जो व्यक्ति आपसे खुश नही है तो उसे खुश करने का उपाय खोजना चाहिये। मुनि गुरुदत्त सागर जी ने कहा धैर्य,समता, विवेक और बुद्धि धारण करने वाला व्यक्ति पूज्यनीय बन जाता है। क्षुल्लक चन्द्रदत्त सागर जी ने कहा क्रोध की अग्नि को क्षमा के नीर से शांत करना चाहिये। हीनता से वीरता आती है इस लिए दीनहीन नही बनना चाहिये।
इसके पूर्व महा मष्टकाभिषेक किया गया जो वर्ष में एक ही बार श्रावण शुक्ला सप्तमी को होता है। अभिषेक करने का सौभाग्य यतेंद्र कुमार टीकमगढ़, आशीष जैन फ़िरोज़ाबाद, दिनेश कुमार, अनिल फोटो, विमल खजरी एवं राजकुमार रानू को ही प्राप्त हो सका। शन्तिधारा करने का सौभाग्य श्रेयास लहरी एवं राजू नायक को प्राप्त हुआ। मोक्ष कल्याणक के निर्माण लाडू चढ़ाने का सौभाग्य ऋषभ कुमार सनाई एवं वीरेंद्र कुमार जी को प्राप्त हुआ।
आचार्य सघ के अलावा सिर्फ दो - दो लोग ही महोत्सव मनाने का सौभाग्य प्राप्त कर सके। शाशन से ज्यादा अनुसाशन आचार्य श्री ने दिखाया। शेष सभी लोगो के नाम मात्र बोले गये उन्हें मन्दिर जी मे प्रवेश ही नही दिया गया। उनके नाम थे श्री सुमन्त पाटनी भागलपुर, प्रमोद आर. सी. एम. फ़िरोज़ाबाद, एवं स्थानीय श्रावक श्रेष्ठी श्री विवेक नायक, अभिषेक खजरी, मनीष शक्ति भंडार, अर्पित जैन, नीलम जैन, राजेश बंटी, स्वदेशनायक , दिनेश पटेरा, चक्रेश सराफ, पंडित सुरेश शास्त्री , पदम लहरी गुना , गिरीश नायक (अध्यक्ष) ने ऑन लाइन स्वीकृति देकर अपनी ओर से शन्तिधारा एवं अभिषेक में सहभागिता निभाई।
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