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भगवान अपने आप में सुप्रतिष्ठत रहते है.. मन्दिर के शिखरों पर महिलाओं के सिर के ऊपर कलश हमेशा मंगलकारी शोभायमान और कल्याणकारी होता है.. वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भयसागर जी महाराज..

भगवान के द्वार में देर भले ही हो पर अंधेर नही
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ने कहा लोकतंत्र में सर्वोच्च न्यायालय ही मन्दिर है , न्यायाधीश फैसला देने वाले भगवान है और देश वासी उसके भक्त  है। इस लिये न्यायाधीश उचित न्याय करें। कभी लोभ लालच और पक्षपात न करे। अध्यायत्म की दिर्ष्टि से देखे तो उपाश्रय ही मन्दिर है भगवान के प्रतिनिधि के रूप में न्याय देने वाले गुरु ही न्यायाधीश है। इस लिये गुरूओ को भी इंद्री विजेता, राग, द्वोष, मोह से रहति,लोभ लालच और पक्ष पात से दूर रहना चाहिये। 
आचार्यश्री ने कहां कि भगवान का द्वार ही न्यायालय है। भगवान के द्वार में देर भले ही हो पर अंधेर नही होता। भगवान वही है जिसका ज्ञान अनन्त है। राग, दोष ,मोह, परिग्रह, पक्षपात और विषय कषाय से रहित है, भगवान अपने आप में सुप्रतिष्ठत रहते है। कलश का महत्व बताते हुये आचार्य श्री ने कहा मन्दिर के शिखरों पर महिलाओं के सिर के ऊपर कलश हमेशा मंगलकारी शोभायमान और कल्याणकारी होता है। आग्निकोण में रखे कलश के ऊपर श्री फल सूखा और लाल कपड़े से युक्त रखना चाहिये। कलश में जल न भरकर हल्दी, सुपारी, लोग, सरसो आदि भरकर रखना चाहिये। लेकिन ईशान कोण में कलश जल भरकर गीले श्री फल से युक्त रखना चाहिये। श्री फल के ऊपर सफेद ,हरा, नीला अथवा लाइट केसरिया पीला कपड़ा लपेट कर रखना चाहिये क्योंकि ईशान कोण जल का स्थान है और आग्निकोण अग्नि का स्थान है। जबकि अग्नि और  जल दोनो एक दूसरे के दुश्मन है। इसी लिये आग्निकोण में कभी जल भरकर  और जल से युक्त श्री फल वाला कलश कभी नही रखना चाहिये। 

 आचार्यश्री ने कहां कि तीर्थकर, नारायण और चक्रवर्ती इनके पास नियम से धर्म चक्र होता है। धर्म चक्र से हमे शिक्षा मिलती है कि चलते रहो, आने जीवन को गतिशील बनाये रखो। लॉक डाउन में आलसी मत बनो बल्कि कुछ न कुछ कार्य करते रहो ,  जीवन को गतिशील बनाये रखो। भाग्य चक्र , काल चक्र और जीवन चक्र कभी रुकता नही है। संसार के सभी पदार्थ परिवर्तन शील है। समस्त संसार चलायेमान है और जीवन चक्र भी हमेशा गतिशील है। इस लिये जीवन को गतिशील बनाये रखना चाहिए। यही धर्म चक्र हमे शिक्षा देता है जीवन को गति शील बनाये रखना चाहिये। हमारे देश की ध्वजा में चक्र है । इसी लिए हमारा देश गतिशील है
 आचार्य श्री ने कहा जीवन पानी के बुल - बुले के समान है। जीवन नदी प्रवाह के समान है। अन्तरंग जीवन प्रवाह मान बनाये रखने के लिए आध्यात्म की जरूरत है और वहिरंग जीवन को प्रवाह मान और प्रगतिशील बनाये रखने के लिये भौतिक विज्ञान जीने की जरूरत है।

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