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सफलता गिफ्ट में नही मिलती और मुक्ति लिफ्ट से नही मिलती इसके लिये पुरुषार्थ करना होता है.. वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भय सागर जी महाराज..

संघर्ष ही सफलता की कुंजी है- आचार्य निर्भय सागर
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ने कहा जीवन काअंतिम लक्ष्य आत्म उपलब्धि होना चाहिये। आत्म उपलब्धि का अर्थ अपनी आत्मा को परमात्मा बनाकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेना। जीवन का पहला लक्ष्य पढ़ लिखकर धन कमा लेने का होता है, दूसरा लक्ष्य इन्द्रिय सुख प्राप्त कर लेने का होता है, तीसरा लक्ष्य परिवार के परिपालन करने का होता है, चैथा लक्ष्य पद प्रतिष्ठा प्राप्त करके नाम कमा लेने का होता है, ये चार लक्ष्य जीवन मे कोई भी मानव प्राप्त कर लेता है लेकिन जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मोपलब्धि करने का कोई लाखो में एक होता है। 

आत्मा की उपलब्धि ही परमात्मा की उपलब्धि है। जो आत्मो उपलब्धि में लगा होता है वह आध्यत्मिक संत कहलाता है। आचार्य श्री ने कहा दुसरो के अहित का विचार करना दूर भाबना कहलाती है,दुसरो की हित का विचार करना सद भावना कहलाती है और आत्म उत्थान या आत्मोपलब्धि की भावना आत्म भावना कहलाती है। आत्म भावना बहाने वाला एक दिन परमात्म पद को प्राप्त कर लेता है जो जैसी भावना करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। अपने लक्ष्य के अनुसार कदम बढ़ाना चाहिये। लक्ष्य को प्राप्त करने वाला आपत्ति और विपत्तियों से और पहाड़ जैसी मुसीबतों से सँघर्ष किए और अग्नि परीक्षा के विना सफलता नही मिलती। सँघर्ष सफलता की पूंजी है। आज तक जितने भी महापुरुष बने है उन्होंने आपत्ति विपत्तियों का सामना किया है और सँघर्ष में जीवन मनाया है। सफलता गिफ्ट में नही मिलती और मुक्ति लिफ्ट से नही मिलती इसके लिये पुरुषार्थ करना होता है। 
आचार्य श्री ने कहा जीव की अंतिम पर्याय सिद्ध परमेष्टि के रूप में होती है, सिद्ध परमेष्ठि को अशरीरी, ज्ञान शरीरी, मोक्ष आत्मा, सिद्ध आत्मा, अथवा निकल परमात्मा कहते है। वैष्णव समाज मे निकल परमात्मा को निर्गुण परमात्मा भी कहते है। एक बार मुक्त हो जाने पर द्वारा संसार मे उस आत्मा का पुनः संसार मे जन्म नही होता है। क्योकि जैसे बीजांकुर को जल जाने पर वह उगता नही है वैसे ही कर्म रूपी बीजांकुर जल जाने पर मुक्त आत्मा संसार मे पुनः जन्म नही लेती है। आचार्य श्री ने कहा माँ है तो दुनिया है, जीवन है संरक्षण है, जीवन का निर्वाह माँ दुनिया सबसे बड़ी उपकारी होती है, पिता से पहले माँ का स्थान है, माँ से परिचय है, माँ का जीवन परोपकार के लिये होता है, और साधु का भी जीवन परोपकार के लिए होता है,इस लिये माँ को गुरु की उपमा दी है। श्री राजेन्द्र जी अटल ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन 3 अगस्त को प्रातःकाल श्रेयासनाथ भगवान का निर्माण लड्डू चढ़ाया जायेगा, एवं रक्षाबंधन की पूजा के साथ विष्णु कुमार आदि सात सौ मुनियों की पूजा आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में सघस्थ त्यागी व्रतीओ के द्वारा की जायेगी साथ ही नन्हे मन्दिर में रक्षाबंधन पर्व मनाया जायेगा।

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