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मंगल ग्रह से पीड़ित क्रोधी, सूर्य ग्रह से पीड़ित व्यक्ति मानी, राहु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति लोभी और केतु से पीड़ित व्यक्ति मायाचारी होता है.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भयसागर जी महाराज.. क्षमावाणी का आयोजन आज..

मायाचारी व्यक्ति सच्ची मित्रता नहीं कर सकता- आचार्य श्री निर्भय सागर जी
दमोह। आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने कहा आवश्यकता आविष्कार की जननी है। इच्छा पर परिग्रह ग्रह जननी है। इच्छाओ को जीतना महानतप है। त्याग तपस्या के मार्ग पर वही बढ़ सकता है जिसने इच्छाओ को जीत लिया है। जो इच्छाओ को जीते विना साधु संत का भेष धारण कर लेता है वह सन्त के पवित्र मार्ग कक एक न एक दिन कलंकित कर देता है। क्रोधी व्यक्ति सच्ची भक्ति नही कर सकता, लोभी व्यक्ति दान नही कर सकता। मानी व्यक्ति विनय नहीं कर सकता, मायाचारी व्यक्ति सच्ची मित्रता नहीं कर सकता। क्रोध जलाता है, मान भटकता है, लोभ नीचा दिखाता है और माया आदमी को रुलाती है। मंगल ग्रह से पीड़ित क्रोधी होता है। सूर्य ग्रह से पीड़ित व्यक्ति मानी होता है। राहु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति लोभी होता है और केतु से पीड़ित व्यक्ति मायाचारी होता है। मंगली लड़की को मंगली वर चाहिए जंगली नही। जब मंगल ग्रह वाला सयोग नहीं मिलता तो दाम्पत्य जीवन मे दंगल होने लगता है। 
आचार्यश्री ने कहा भारतीय ज्योतिष काल्पनिक नही बल्कि अनुभव की कसौटी पर कसा विज्ञान है। परिग्रह आदमी को मूर्छित कर देता है जेनचार्यो ने मूर्छा को ही परिग्रह कहा है। परिग्रह का नशा जिसे चढ जाता है। वह मरने और मारने को तैयार हो जाता है। भगवान महावीर स्वामी ने परिग्रह को पाप कहां है। भारतीय श्रमण संस्कृति में कृषि करो या ऋषि बनो यह सूत्र भगवान आदिनाथ ने दिया है किसान को मूर्छा कम होती है।व्यापारी को किसान से अधिक और नौकरी वालों को दुकानदार से भी अधिक मूर्छा होती है। इसलिए खेती को उत्तम व्यापार को मध्यम और नौकरी को निम्न स्थान अर्थ पुरुषार्थ की दृष्टि से दिया गया है। शहरों में कमाई का साधन है तो पैसा भी पानी की तरह बह जाता है।  कुश्ती और राजनीति में दांव पर चल सकते हैं लेकिन धर्म क्षेत्र में दांवपेच नहीं चलाना चाहिए। उठापटक के लिए दांवपेच लगाए जाते हैं। धर्म कार्य उठा पटक से बचने के लिए किए जाते हैं। धर्म या संप्रदाय के नाम से उठापटक के लिए दांव पेच लगाए जाने लगते हैं तब उसका परिणाम विनाश ही होता है। 
आचार्य श्री ने कहा वर्तमान कलिकाल में कुटिल बुद्धि वाले अधिक मिलते हैं। कुटिल बुद्धि वाला नास्तिक हो जाता है। कलयुग में अर्थ प्रधान होता है। सतयुग में परमार्थ प्रधान होता है। आज यदि परमार्थ की सभा में सुनने वाले यदि सौ मिलेंगे तो अर्थ के लिए लगाई गई सभा में हजारों मिलेंगे और दांवपेच लगाने वाले की सभा में लाखों मिलेंगे। संत हमारे अतिथि हैं। संत अतिथि होने के नाते किसी से छेड़छाड़ या राग दोष नहीं करते। पंचम काल का धर्म गर्मी की साग सब्जी के समान है, यदि 1 दिन भी संत प्रवचन के द्वारा धर्मामृत कि समाज में वर्षा नहीं करते तो मंदिर सूने पड़े रहते हैं और समाज सूख जाती है। जैन धर्म का महान पर्युषण पर्व का समापन जैन धर्म का महान पर्व क्षमावाणी के दिन 3 सितंबर को सुबह 7 बजे से क्षमावाणी पूजन एवं 8 बजे आचार्य श्री की मंगल देशना और क्षमावाणी पर्व मनाया जाएगा श्री दिगंबर जैन पारसनाथ नन्हे मंदिर सारे कार्यक्रम समापन किए जाएंगे।

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