योग्य व्यक्ति दर-दर की ठोकरें खा रहे है- आचार्यश्री
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने शांति विधान के मध्य उपदेश देते हुए जैन धर्मशाला में कहा योग्यता हासिल करना चाहिए। योग्य व्यक्ति को अधिकार के लिए लड़ना नहीं पड़ता, सहज ही अधिकार मिल जाते है। देश की उन्नति का, जीवन में प्रगति का सुख एवं शांति का प्रबल मंत्र है योग्यता। योग्य व्यक्ति को हर इंसान चाहता है। योग्यता की घर-घर चर्चा होती है और द्वार द्वार पर पूजा होती है। संत संस्कारों की शिक्षा देकर आयोग को भी योग्य बना देते हैं। विद्यार्थी योग्यता हासिल करने के लिए स्कूल जाता है। शिक्षक विद्यार्थी को ज्ञान और आचरण देकर योग्य बना देते हैं। अयोग्य व्यक्ति के हाथ में देश की या परिवार की कमान जाने पर बर्बादी के अलावा कुछ नहीं मिलता है। इसलिए देश की कुर्सी पर योग्य व्यक्ति को ही बैठाना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा आरक्षण की नीति से अयोग्य व्यक्ति भी पद प्रतिष्ठा पाकर उच्चा सीन हो रहे है और कुर्सी पर बैठकर देश को खा रहे हैं। जबकि योग्य व्यक्ति दर-दर की ठोकरें खा रहे है। आरक्षण से जातिवाद, भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार पनप रहा है। आरक्षण से योग्य युवाओं में निराशा, कुंठा, तनाव बढ़ रहा है, इस कारण आत्महत्या भी कर रहे है। आरक्षण से योग्य व्यक्तियों का शोषण हो रहा है और अयोग्य व्यक्तियों का पोषण हो रहा है। योग्य व्यक्ति की देश में कीमत ना होने से विदेश की ओर पलायन कर रहे हैं। जैसे अंजलि में भरा हुआ पानी बूंद बूंद करके गिरता चला जाता है और अंजलि खाली हो जाती है वैसे ही हमारे देश के प्रतिभाशाली युवा एक-एक करके विदेश की ओर पलायन कर रहे हैं और देश प्रतिभाशाली युवाओं से खाली होता जा रहा है यदि यही दशा रही तो देश घूनी हुई लकड़ी के सामान ऊपर से तो स्मार्ट दिखेगा लेकिन अंदर से शक्तिहीन और खोखला हो जाएगा। आचार्य श्री ने कहा मैं आरक्षण का विरोधी नहीं हूं बल्कि आरक्षण जातिगत नहीं होना चाहिए और योग्यता हासिल करने के लिए गरीबों को योग्यता हासिल करने के लिए पढ़ने लिखने भोजन पानी एवं रहने आदि की सुविधा के रूप में आरक्षण होना चाहिए। लेकिन जब तक वह योग्य नहीं हो जाता तब तक उसका किसी भी पद के लिए चयन नहीं होना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा संत का कार्य स्वयं सद मार्ग पर चलना और मार्ग से भटके हुए लोगों को सद मार्ग दिखाकर चलाना यसोए हुए व्यक्ति को जगाना, अयोग्य को योग बनने की प्रेरणा एवं शिक्षा देना, जीवन जीने की कला जो सिखाएं वही जीवंत संत है। नेता हो या संत वह बनावटी दिखावटी और छल कपटी नहीं होना चाहिए। संत के मुख से सत्य वाणी निकलती है। संत के मुख से परमेश्वर बोलता है। संत की वाणी जनकल्याण होती है। संत की वाणी परमात्मा से मिलने की प्यास जगाती है, निज का निज से परिचय कराती है, कंकर को शंकर बनाती है, पाषाण को परमात्मा का रूप देती है, बंधन से मुक्त करती है, अभिशाप को वरदान बना देती है, हर प्राणी को संरक्षण देती है। आरक्षण से अधिक महत्वपूर्ण संरक्षण है। अब आरक्षण कि नहीं संरक्षण की नीति बनाना चाहिए अब आरक्षण नहीं संरक्षण देना चाहिए प्रकृति और प्राणियों को अब संरक्षण की जरूरत है।
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