प्रतिकूल परिस्थितियों में मनुष्य की सही परीक्षा होती है
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज का संघ सहित जैन धर्मशाला में चातुर्मास चल रहा है। 21 तारीख से प्रतिदिन दो परिवार द्वारा कोरोनावायरस से मुक्ति पाने हेतु शांति विधान निरंतर जारी है इसी बीच आचार्य श्री के मंगल प्रवचन सौजन्य करता परिवार वालों के लिए होते हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि सहिष्णुता का अर्थ सहनशीलता है। आज का आदमी कुछ भी प्रतिकूलता सहने को तैयार नहीं है सहनशीलता पलायन करती जा रही है और असहिष्णु होता जा रहा है जबकि सहिष्णु बने बिना व्यक्ति सर्वोच्च ऊंचाई को प्राप्त नहीं कर सकता है यदि सर्वोच्च ऊंचाई को प्राप्त करना है तो सहिष्णु बनना ही पड़ेगा सहिष्णुता अभिशाप को भी वरदान बना देती है जीवन में अपने दुख दर्द बीमारी आपत्ति विपत्ति इत्यादि विपरीत परिस्थितियों के निर्मित होने पर उसे सहन करना अपने आप के प्रति सहिष्णु बनना है। यदि कोई अन्य व्यक्ति आपत्ति विपत्ति उत्पन्न कर रहा हो, समस्याएं खड़ी कर रहा है उस समय भी साहस से कार्य कर लेना दूसरों के प्रति सहिष्णु बन जाना है।
आचार्य श्री ने कहा सहिष्णुता का अर्थ यह नहीं कि अन्याय का प्रतिकार ही ना किया जाए? अन्याय का प्रतिकार नहीं करना भी एक अन्याय है। इसलिए अन्याय का तो डटकर सामना करना चाहिए, परंतु आपत्ति विपत्ति आने पर सहनशील बनना चाहिए। यदि समस्याओं का सामना नहीं किया जाएगा और आपत्ति विपत्ति आने पर उसे सहन नहीं किया जाएगा तो समस्याएं सुलझने वाली नहीं हैं बल्कि समस्याएं और बढ़ने वाली हैं। समस्याओं के आने पर घबराना नहीं चाहिए और ना डर कर भागना चाहिए क्योंकि समस्याएं तभी जाएगी जब हम सहिष्णु बनेंगे और समस्याओं का डटकर सामना करेंगे।
आचार्य श्री ने कहा प्रतिकूल परिस्थितियों में मनुष्य की सही परीक्षा होती है। विपरीत परिस्थितियों में जीना ही सहिष्णुता का असली मापदंड है। प्रतिकूल परिस्थितियों में साहस विवेक बुद्धि और युक्ति पूर्वक अन्याय का प्रतिकार करना चाहिए तभी हम महान बन सकते हैं। अन्याय का प्रतिकार नहीं करना भी एक अन्याय है इसीलिए अन्य का डटकर सामना करना चाहिए।
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