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भगवान कोई ऊपर से नहीं आते बल्कि किसी मां के गर्भ से जन्म लेकर.. कोई पुण्यसाली संतान त्याग तपस्या करके अपनी आत्मा को संस्कारित करती है.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर..

प्रत्येक आध्यात्मिक महापुरुष स्वयं वैज्ञानिक..
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन धर्म सभा में कहा जिस घर की नारियां हाथ में कांच की चूड़ी पहनती है, पति के सामने मांग भर्ती है, गले में मंगलसूत्र पहनती है, पैरों में बिछिया पहनती है ऐसी नारियां सदा सुखी, संपन्न, खुशहाल एवं सौभाग्यवती बनी रहती है। शादीशुदा नारी की इसी में शोभा है। जो नारी अपनी पति की आज्ञा का पालन करती है, बच्चों को संस्कारित करती है, मान मर्यादा रहती है एवं बड़ों का सम्मान करती है वह नारी एक दिन वंदनीय बन जाती है और जो नारी स्वतंत्र घूमती है, बड़ों का अनादर करती है, स्वयं संस्कार हीन होकर रहती है वह निंदनीय हो जाती है
 आचार्य श्री ने कहा नारियों को कांच की चूड़ी पहनने से गाय बैलों के गले में घंटी बांधने से, मंदिर में घंटी लगाकर बजाने से परिवार में, समाज में और नगर में सुख समृद्धि और शांति का वातावरण बनता है, वास्तु दोष समाप्त होते हैं इसी कारण नारी को प्लास्टिक के कड़े ना पहनकर कांच की चूड़ियां ही पहनना चाहिए। जो नारी शादी होने के बाद भी मांग नहीं भर्ती है, बिंदी नहीं लगाती, बिछिया नहीं पहनती है वह अपने सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल रही है ऐसा समझना चाहिए। नारी चाहे तो घर को स्वर्ग बना सकती है और चाहे तो नर्क। जो नारी घर को स्वर्ग बनाती है वह देवी का अवतार कहलाती है। जो नारी घर को नर्क बनाती है वह डॉन अथवा दानवी नारी कहलाती है। आचार्य श्री ने कहा संस्कारित नारी की संतान संस्कारित होती है वह संतान शैतान ना वन कर सच्चा इंसान बनती है और गुरुओं की संगति में आकर धर्म का आचरण अपनाकर एक दिन भगवान बनती है। भगवान कोई ऊपर से नहीं आते बल्कि किसी मां के गर्भ से जन्म लेकर कोई पुण्यसाली संतान त्याग तपस्या करके अपनी आत्मा को संस्कारित करती है और वही एक दिन भगवान बनती है। भगवान बनना कोई कठिन कार्य नहीं है क्योंकि भगवान बनने में जो जो कारण है उन्हें जुटा लिया जाए और जो जो भगवान बनने में बाधक कारण है उन्हें हटा दिया जाए तो भगवान बना जा सकता है। किसी कार्य के संपन्न होने में कोई ना कोई कारण अवश्य होता है उसे कारण की खोज करने वाला व्यक्ति वैज्ञानिक कहलाता है, वही सच्चा आध्यात्मिक महापुरुष कहलाता है। इसलिए प्रत्येक आध्यात्मिक महापुरुष स्वयं वैज्ञानिक होता है। जब यह पता चल जाता है कि हमें संसार में भटकाने वाला पाप कर्म है इसीलिए हम यदि पाप कर्म को हटा दे तो एक दिन भगवान बन जाएंगे। 

 आचार्य श्री में न्यूटन नाम के वैज्ञानिक का उदाहरण देते हुए कहा एक पेड़ से फल गिरा, उसे देख कर न्यूटन के मन में आया पेड़ से फल गिरने का कार्य हुआ है और फल नीचे ही आया है इसमें कोई ना कोई कारण अवश्य होगा। उसने फल के नीचे आने का कारण पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण बल की खोज कर ली। इसी खोज के कारण वह वैज्ञानिक बन गया। इसी प्रकार इस संसार में सुखी दुखी, अमीरी गरीबी, रोगी निरोगी ज्ञानी अज्ञानी आदि देखे जाते हैं इन सब का कारण क्या है इसकी खोज करने वाला अध्यात्म जगत का वैज्ञानिक कहलाता है। यह खोज भगवान महावीर स्वामी ने की इसलिए वे वीतराग वैज्ञानिक कहलाए। उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म वीतराग विज्ञान के नाम से जाना गया। इस वैज्ञानिक युग में प्रत्येक व्यक्ति विज्ञान से परिचित हो चुका है विज्ञान को स्वीकार कर रहा है और दुख दर्द रोग अशांति लड़ाई झगड़े इत्यादि सभी कारणों को जान रहा है लेकिन कार्य मूर्खता के कर रहा है इसलिए संसार में अशांति हिंसा और आतंक फैला हुआ है। इससे बचने के लिए आध्यात्मिक होना होगा एवं वीतराग विज्ञान वाले धर्म की शरण में जाना होगा। वर्तमान में कोरोना महामारी पूरे भारत देश में फैली है, लोग मर रहे हैं, बीमार हो रहे हैं यह प्रत्यक्ष देख कर भी लोग विवेक हीन कार्य कर रहे हैं, बिना मास्क लगाए भीड़ भरे बाजारों में घूम रहे हैं, सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं कर रहे हैं, बिना हाथ पैर धोए किसी के हाथ का बना खा रहे है, यही विवेक हीन क्रिया अधर्म कहलाती है। इस अधर्म को छोड़कर विवेकी पूर्ण क्रिया करना चाहिए और शिक्षित सभ्य होने का परिचय देना चाहिए।

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