फिल्मी दुनिया युवाओं के जिंदगी को तबाह करने में और नशे में फंसाने का काम कर रही है- आचार्य श्री
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने धर्म उपदेश देते हुए कहा अच्छे विचार आचरण की आधारशिला है मन में जैसे विचार होते हैं बेसा ही आचरण होता है मन संक्रामक रोग की तरह जल्दी प्रभावित होता है इसलिए मन को संभालना परम आवश्यक है उन्होंने कहा रिद्धि सिद्धि प्रसिद्धि समृद्धि और वृद्धि यह जीवन के आवश्यक अंग जैसे हैं साधना से सिद्धि होती है आराधना से रिद्धि प्राप्त होती है परोपकार करने से प्रसिद्धि होती है पुरुषार्थ यानी मेहनत करने से समृद्धि होती है और संकल्प शक्ति के साथ संग्रह करने से वृद्धि होती है इसीलिए जीवन में कुछ साधना करना चाहिए कुछ समय आराधना करना चाहिए। 8 घंटे पुरुषार्थ करना चाहिए और कमाए हुए धन को परोपकार में खर्च करना चाहिए आप यदि चाहे तो डिनर डांस डीजे और ड्रिंक में अपना समय गुजार कर पाप में वृद्धि कर सकते हैं और आप यदि चाहे तो पूजा, पाठ, पढ़ाई, लिखाई, सेवा और परोपकार करके पुण्य में वृद्धि कर सकते हैं।आचार्य श्री ने कहा आज के युवा पुण्य में वृद्धि ना करके पाप में वृद्धि कर रहे हैं फिल्मी दुनिया युवाओं के जिंदगी को तबाह करने में और नशे में फंसाने का काम कर रही है या यूं कहें की अग्नि में घी का काम फिल्मी दुनिया कर रही है आज कम से कम पांच करोड़ लोग कोकीन चरस अफीम गांजा ड्रग्स स्नेक ब्राउन शुगर आदि मादक पदार्थों के आदी बन चुके हैं उनके बिना वे 1 मिनट नहीं रह पाते 75 परसेंट फिल्मी दुनिया के एक्टर एक्टरनी इस नशे के चंगुल में फंसे हुए 75ः लोग शराब के नशे में फंसे हुए इसीलिए हत्या लूटपाट एवं निमोनिया आदि लोगों की वृद्धि हो रही है एक रिपोर्ट के मुताबिक दो तिहाई बड़ी-बड़ी हस्तियां फिल्मी सितारे गांजा, अफीम, कोकीन आदि नशीले पदार्थ का सेवन करते हैं। टेलीविजन के कलाकार गांजा अधिक पीते हैं यह काला धंधा भारत देश में धड़ल्ले से चल रहा है और युवा अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं नशे का आदि समाज की दृष्टि से हेय देखा जाता है उसके सामाजिक क्रिया से लेता नगद हो जाती है फिर भी वह व्यसन नहीं छोड़ता शरीर रोगों का घर बन जाता है ऐसी अवस्था में उसे भगवान ही बचा सकते हैं लेकिन भगवान इस कलिकाल में आते नहीं अब रह जाते हैं। गुरु बेगुरु की संगति में जाती नहीं इसी कारण युवा भटक रहे हैं।
आचार्य श्री ने कहा आप गलत को छोड़ें सही को चुने क्योंकि परीक्षा में जब वस्तुनिष्ठ प्रश्न आता है तब तीन विकल्प गलत होते हैं एक विकल्प सही होता है परीक्षा देने वाला विद्यार्थी गलत को ना चुनकर सही को चुनता है और सही का निशान लगाता है इसी प्रकार यदि आप बुद्धिमान हैं समझदार हैं ज्ञानी है पढ़े लिखे हैं तो गलत कार्य को छोड़ें और सही कार्य को चुने जो गलत कार्य को छोड़ देता है सही कार्य को चुनता है वही परमहंस कहलाता है यह कार्य स्वयं से प्रारंभ करना चाहिए यदि आपके मन में विचार आता है कि मैं अकेला क्या कर सकता हूं तो ध्यान रखना आकाश अकेला होता है धरती अकेले है चांद सूरज सब अकेले हैं फिर भी वह अपना कार्य कर रहे हैं और सब को शरण दे रहे हैं प्रकाश दे रहे हैं इसी प्रकार आप भी कर सकते हैं सिर्फ अपने अंदर संकल्प शक्ति जगाने की जरूरत है अपने आप को पहचानने की जरूरत है दूसरी बात और कहना चाहता हूं कि एक चना भाड़ नहीं भूल सकता लेकिन आंख जरूर पड़ सकता है उसी प्रकार आप पूरे संसार को नहीं सुधार सकते लेकिन बुरे कार्य की आंख को फोड़ सकते।
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