आचार्य श्री ने मूर्ति एवं मंदिर का बताया महत्व..
दमोह। वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने मूर्ति एवं मन्दिर का महत्व बताते हुये कहा कि मन्दिर लक्ष्मी का घर है, सरस्वती का निवास स्थान है। पूण्य कमाने का क्षेत्र है मोक्ष की उड़ान भरने के लिए एयरपोर्ट है। साधु संतों के ढहरने एवं साधना करने का स्थान है। प्रतिमा के दर्शन करने से पाप और अज्ञान वैसे ही भाग जाता है जैसे गरुण मुद्रा के देखने मात्र से सांप भाग जाता है। प्रतिमा की प्रतिष्ठा होने के बाद हेवी मैग्नेटिक पावर की तरह हो जाता है और वह भक्त जीवात्माओं को अपनी ओर खींचती है।आचार्य श्री ने कहा जब फिल्म के नकली चोर को देखकर असली चोर बना जा सकता है तो प्रतिमा को देखकर परमात्मा क्यो नहीं बना जा सकता है अर्थात अवश्य बना जा सकता है। परमात्मा अदृश्य है उसे जानकर समझकर अनुभव में लाने के लिये दृश्य मान मूर्ति की आवश्यकता होती है जैसे शब्द ध्वनि अदृश्य होती है पर उसे सुनने के लिए दृश्य मान ढोल मजीरे की आवश्यकता पड़ती है। अथवा मिठास अदृश्य होती है उसे अनुभव में लाने के लिए गुड़ शक्कर आदि की जरूरत होती है। वैसे ही अदृश्य परमात्मा को जानने के लिए दृश्य मान मूर्ति की आवश्यकता होती है। धर्मात्मा के बिना धर्म नहीं टिकता और मूर्ति के बिना परमात्मा नहीं टिकता है।
आचार्य श्री ने कहा आज की दुनिया रंगीन हो चुकी है। वह ऊपरी रंग रोगन को पसंद करती है परन्तु धोके में आ जाती है। धोके से बचने के लिए रंग नही अंतरंग देखो, रूप नहीं स्वरूप देखो, कोयल भी काली होती है और कौआ भी काला होता है। गाय का दूध भी सफेद होता है और अकौआ का दूध भी सफेद होता है परंतु दोनों के गुण धर्म अलग अलग होते है इस लिए ऊपरी रूप को मत देखो अंतरंग स्वरूप को देखना चाहिये। उन्होंने कहा किसी को ठीक करना हो तो उसे समझा बुझाकर पहले बुद्धि को ठीक करना चाहिये। डंडा मारने या भय दिखाने से ठीक नही होगा। प्रगति और विकास के लिए बुद्धि, विवेक और पुरुषार्थ जरूरी है। उन्होंने कहा सफलता गिफ्ट में नहीं मिलती और मुक्ति लिफ्ट से नही मिलती। सन्त और भगवंत देते है सबको दुआएं लेकिन वे दुआएं नास्तिको को नही फलती। इसलिए आष्तिक बनना चाहिए नास्तिक नहीं।
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