आचार्यश्री वर्धमान सागर एवं आचार्यश्री निर्भय सागर के संघों का मंगलमय मिलन ..
दमोह। नोहटा की पावन धरा सोमवार को दो जैन आचार्यों के वात्सल्य मिलन की साक्षी बनी। अवसर था जबेरा तरफ से विहार करते आ रहे आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज एवं नोहटा में विराजमान आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के संघों के मिलन का। हालांकि नोहटावासियों को महज कुछ घंटों के लिए दोनों आचार्य संघों का सानिध्य प्राप्त हो सका। इसके बाद आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज के संघ का बांदकपुर की ओर विहार हो गया।
वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज 10 दिन से नोहटा में संघ सहित विराजमान है। आज प्रातः बूंदाबांदी के बीच में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज एवं 14 मुनि राजो के संघ के साथ प्रथम बार नोहटा पधारे। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज की अगवानी आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने आपने 9 शिष्यों के साथ की। मंगल मिलन के समय दोनों आचार्य अति वात्सल्य भाव से मिले। दोनो आचार्य के शिष्यों ने अपने गुरु की युगल प्रदक्षिणा की एवं बैठकर नमोस्तु किया।
इस अवसर पर जैन समाज के प्रत्येक घर में रंगोली बनाई गई। बैंड बाजों के साथ मठ तक जाकर जय कारों के जय घोष किए गया। नोहटा के इतिहास में यह प्रथम बार दो आचार्यों का मिलन था। प्रत्येक द्वार पर जैन भक्तों ने दोनों आचार्यों के चरण प्रक्षालन किए एवं आरती की। पूरी सड़क पर जन समुदाय उमड़ पड़ा। आचार्य संघ सीधे बड़े जैन मंदिर पहुंचा। वहां मंगल प्रवचन हुए।
आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा संत चलते फिरते जीवित तीर्थ है। संतो के जहां चरण पड़ जाते हैं वही तीर्थ बन जाते है। जब दो संतों का मिलन होता है तो धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है ,धर्म की प्रभावना होती है, समाज में एकता का और प्रेम का संदेश जाता है। मुनि की हर चर्या सार भूत होती है। हर शब्द कल्याणकारी निकल मुख से निकलता है। जैन मुनि के मुख से निकला हुआ प्रत्येक शब्द जिनवाणी होता है। संत यदि हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हैं तो उसमें भी उपदेश मिल जाता है कि तुम मिलकर रहो, झुक कर रहो। क्योंकि आशीर्वाद देते समय सभी उंगलियां मिली रहती है और आगे की ओर झुकी रहती है। यदि समाज में एकता और विनय शीलता बनी रहेगी तो देश में परिवार में समाज में सुख शांति और समृद्धि बनी रहेगी।
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने कहा इस कलिकाल में भी दिगंबर महा तपस्वी संतो के दर्शन मिल रहे हैं, यह तुम्हारी महान पुण्य का फल है। संत बनना महान अति महान पुण्य का फल है और संत के दर्शन होना पुण्य का फल है। उपदेश के उपरांत आहार चर्या हुई तदुपरांत दोनों आचार्य संघ सहित आदिश्वर गिरी पहुंचे। वहां योग सामायिक ध्यान करने के उपरांत 2 बजे आचार्य वर्धमान सागर जी अपने संघ के साथ बांदकपुर की ओर प्रस्थान कर गए। कल की आहार चर्या आचार्य निर्भय सागर जी महाराज की नोहटा में होगी एवं आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज की आहार चर्या बांदकपुर में होगी।
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