मोक्ष सुख का कारण है, इसीलिए बोधि को प्राप्त करना चाहिए
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जबलपुर नाका स्थित जैन मंदिर दमोह में प्रातः कालीन सभा में उपदेश करते हुए कहा आत्मा निरंतर गतिशील है समय के समान कभी रुकती नहीं है आत्मा नदी के जल प्रवाह की तरह निरंतर गतिशील है । इसीलिए आत्मा को समय भी कहा जाता है।आत्मा शब्द अत धातु से बना है जिसका अर्थ है गमन करना निरंतर परिवर्तन करना । आत्मा को बांधा नहीं जा सकता लेकिन कर्म आत्मा को बाधा पहुंचा सकते हैं परंतु बांध नहीं सकते हैं । मॊहकर्मआत्मा को मोहित करके विभाव रूप में कर सकते हैं लेकिन आत्मा का अभाव नहीं कर सकते हैं क्योंकि आत्मा अनंत शक्ति शाली है। आत्मा का कोई लिबास नहीं होता है। जब आत्मा का शरीर ही नहीं होता तब निवास और लिबास की कोई आवश्यकता ही नहीं है ।आत्मा रूप रस गंध स्पर्श इत्यादि से रहित होती है।आत्मा के गुणों के आधार पर आचार्य श्री ने आत्मा का निवास बताते हुए कहा सच्ची श्रद्धा हृदय का लिबास है ,ज्ञान सिर का लिबास है और चरित्र नाभि के नीचे अधोवस्त्र रूपी लिबास है।इसी कारण दिगंबर मुनि को निर्लज्ज नहीं कह सकते हैं। ज्ञान से ही तत्व का दर्शन होता है । ध्यान से आत्मा का दर्शन होता है। ढोंगी साधु को देखकर सच्चे आस्थावान मानव को दिल में ठेस पहुंचती है और अनास्था भाव पैदा होता है इसलिए कभी ढोंगी साधु नहीं बनना चाहिए। सच्ची श्रद्धा से सच्चा ज्ञान और सच्चा चारित्र प्रगट होता है। पोथी के पंडित नहीं बोधि के पंडित बनना चाहिए सम्यकदर्शन ज्ञान एवं चरित्र को बोधि कहते हैं। यही मोक्ष का कारण है ।मोक्ष सुख का कारण है। इसीलिए बोधि को प्राप्त करना चाहिए।
0 Comments