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आज के समय में ज्ञान की नहीं वरण मुस्कान की कमी है- आचार्य विहर्ष सागर जी.. जैन धर्मशाला दमोह में विराजमान तीन आचार्य संघो के 50 पिच्छी साधुओ का सानिध्य.. इधर बक्सवाहा में आचार्य विमर्श सागर महाराज ने कहा..भगवान बनने के गुण मनुष्य में भी मौजूद हैं..

आज के समय में ज्ञान की नहीं वरण मुस्कान की कमी है.. आचार्य विहर्ष सागर जी महाराज

दमोह। आज के समय में ज्ञान कि नहीं वरन जीवन में मुस्कान की कमी है मनुष्य का जीवन बहुत कीमती है इसे रोते हुए नहीं बल्कि मुस्कुराते हुए गुजारना चाहिए क्योंकि कल का दिन किसने देखा है आज के दिन रोए क्यों और जिन घड़ियों में हम हंस सकते हैं उनमें हम रोए क्यों..?

उपरोक्त उद्गार दिगंबर जैन धर्मशाला में विराजित आचार्य विहर्ष सागर जी महाराज ने बुधवार सुबह अपने मंगल प्रवचन में अभिव्यक्त किए इस मौके पर कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के पूर्व अध्यक्ष संतोष सिंघई पूर्व प्रचार मंत्री सुनील वेजीटेरियन नन्हे मंदिर कमेटी के अध्यक्ष गिरीश अहिंसा पवन जैन चक्रेश राजेंद्र अटल महेंद्र करुणा आदि उपस्थिति रही। आचार्य श्री ने आगे कहा कि कि मनुष्य जीवन बहुत बहु मूल्य है इससे उदासियों में नहीं खोना चाहिए जीवन की सार्थकता सदैव प्रसन्न निश्चित रहने में है धर्म हमें हर परिस्थितियों में सहज रहना सिखाता है।

परिस्थितियों से सामना करना सिखाता है भागना नहीं धर्म हमें निडर बनाता है डरपोक नहीं जो लोग धर्म से दूर होते हैं बे मृत्यु से भय खाते हैं जबकि एक ना एक दिन हर व्यक्ति को मरना निश्चित है। धर्म सभा के अंत में आचार्य विभव सागर जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि दमोह नगर वासी अत्याधिक सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें कुंडलपुर महोत्सव के बाद पथरिया में विरागोदय महोत्सव मैं आए अनेक साधु गणों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जीवन में गुरु का सानिध्य मिलना बहुत सौभाग्य का विषय होता है।
भगवान बनने के गुण मनुष्य में भी मौजूद हैं.. आचार्य श्री विमर्श सागर.. बक्सवाहा से हीरापुर की ओर बिहार
बकस्वाहा। सर्वज्ञ प्रभु की वाणी में सबका हित निहित है । आप प्रतिदिन मंदिर आते हैं आपका मंदिर आने का क्या कारण है ? मंदिर आने का हमारा एक ही प्रयोजन होना चाहिए कि मुझे भी भगवान बनना है । मंदिर में भगवान के दर्शन करते हुए हमें यह विचार करना चाहिए कि भगवान भी पूर्व अवस्था में मेरे ही समान थे उन्होंने अपनी आत्मा से अवगुणों को हटाकर आत्मा के स्वभाव रुप गुणों को प्राप्त कर लिया है। मेरे अंदर भी भगवान के समान वे सभी गुण मौजूद हैं , अब मैं भी भगवान की तरह पुरुषार्थ करके भगवान की तरह अनंत गुण वैभव को प्राप्त करूंगा।उपरोक्त उदगार बकस्वाहा के श्री पारसनाथ दिग.लबर जैन मंदिर परिसर में द्वितीय दिवस आयोजित धर्मसभा में ' जीवन है पानी की बूंद ' महाकाव्य के मूल रचयिता, बुंदेल खण्ड गौरव, भावलिंगी संत, राष्ट्रयोगी आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ने अपने प्रवचन मे कहें। 

आचार्य श्री ने कहा कि यदि हमें धर्म प्राप्त करना है तो हमें अधर्म का भी पता होना चाहिए । जब हमें यह पता होगा कि क्रोध अधर्म है तब हम उसे त्याग कर क्षमा धर्म को प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर सकेंगे । जब हमें अपने वस्त्र की मलिनता का भान होगा तब ही हम उसे साफ करने व धोने का प्रयास पुरुषार्थ करेंगे । हम अधर्म को जानकर उसे त्याग कर अपनी आत्मा के स्वभाव रूप धर्म को प्राप्त करें। बुधवार को द्वितीय दिवस आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज का ससंघ 25 पिच्छीधारी से अधिक साधु व आर्यिका माताजी सहित विशाल चतुर्विध संघ की आहार चर्या भी सम्पन्न हुई। दोपहर उपरांत आचार्य श्री का संघ सहित हीरापुर की ओर बिहार हुआ, रात्रि विश्राम गडोही मे होगा और गुरुवार की आहारचर्या हीरापुर ग्राम मे होगी।

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