सिध्द चक्र विधान में तीर्थंकर बालक के जन्म की खुशियां
दमोह। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हें मंदिर जी में श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन भक्ति भाव के साथ किया जा रहा है। विधान के तृतीय दिवस पूज्य मुनिश्री विलोक सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में पुण्य अर्जक श्रेयांश लहरी परिवार के साथ सभी विधान कर्ताओं ने 32 अर्घ समर्पित किये।
गुरुवार को प्रातः मला में श्री जी के अभिषेक शांति धारा पूजन के उपरांत भगवान का जन्म अभिषेक कल्याण धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर सोधर्म इंद्र श्रेयांश लहरी और सची इंद्राणी क्षमा लहरी के साथ तीर्थंकर भगवान को लेकर पहुचे। जहा अभी ने भक्ति आराधना करते हुए धर्म लाभ अर्जित किया।
आज नेमी नगर जैन मंदिर से आये भक्तों के द्वारा शरू जी के समवसरण में द्रव्य समर्पित की गई। पूज्य मुनि श्री के पाद प्रक्षालन का सौरभ जैन परिवार एवं नेमी नगर जैन मंदिर से पधारे भक्तजनों ने किया। संध्या कालीन आरती का सौभाग्य पलंदी चौराहा से विनय लहरी परिवार को प्राप्त हुआ।
विधान अवसर पर अपने मांगलिक प्रवचनों में मुनि श्री विलोक सागर जी महाराज ने कहा कि तीर्थकर भगवान ने जन्म लेकर हजारों जीवों का कल्याण किया है। हम सभी को भी अपना जन्म दिवस ना मना कर भगवान का जन्म कल्याणक मनाना चाहिए। जिन्होंने हम जैसे जीवो को मोक्ष के मार्ग पर चलने का रास्ता प्रशस्त किया। भगवान का जन्म के समय सौधर्म इंद्र के द्वारा अभूतपूर्व उत्साह के साथ भक्ति की गई थी। उसी उत्साह के साथ आज भी नंदीश्वर दीप में विराजमान सिद्ध परमेष्ठी भगवानों की पूजन एवं भक्ति देव करते हैं। मुनि श्री ने कहा कि उसी उत्साह एवं भक्ति के साथ हमें भी यह सिद्ध परमेष्ठीयों की आराधना करना चाहिए।
आज विधान के तृतीय दिवस 32 अर्घ्य समर्पित किए गए साथ ही भगवान के जन्म कल्याणक मनाया गया। इस अवसर पर कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के पूर्व अध्यक्ष संतोष सिंघई, चक्रेश सराफ, संजय सराफ, राजेश हिनौती, सुनील क्राकरी, मनीष बजाज, नवकार महिला मंडल की स्मिता जैन, रिंकी , सरिता जैन, शील रानी नायक, रिंकी निराला एवं अन्य सभी समाज जनों की उपस्थिति रही। सभी भक्तजनों ने भगवान की आराधना कर पुण्यअर्जन किया।
आर्यिका रत्न मृदुमति ने किया श्रावक संबोधन
दमोह। श्री १००८ भगवान पार्श्वनाथ दिग. जैन मंदिर, जबलपुर नाका, दमोह के मंदिर परिसर में मंच से संत शिरोमणि परम पूज्य १०८ आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज की परम विदूषी साध्वी पूज्य १०५ आर्यिका रत्नश्री मृदुमति माता जी ने सम्बोधित किया।
दमोह। श्री १००८ भगवान पार्श्वनाथ दिग. जैन मंदिर, जबलपुर नाका, दमोह के मंदिर परिसर में मंच से संत शिरोमणि परम पूज्य १०८ आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज की परम विदूषी साध्वी पूज्य १०५ आर्यिका रत्नश्री मृदुमति माता जी ने सम्बोधित किया।
उपस्थित भव्य सेवकों को संबोधित करते हुए माताजी ने कहा कि धर्म उपदेश किसी भी समय ग्रहण किया जा सकता है। धर्म आत्मा का कल्याण करता है। मन में शांति प्रगट होती है। दुखों को शमन करने की शक्ति मिलती है। इस अवसर पर पूज्य १०५ निर्णयमति माता जी भी मंच पर विराजमान रहीं। सभा के पूर्व मेरी भावना पाठ का सामूहिक वाचन किया गया।
“दिन रात मेरे स्वामी भावना ये भाऊं, देहांत के समय में तुमको न भूल जाऊ“ नामक स्तुति भी विद्वानों द्वारा गाई गई। स्व. श्री ऋषभ जैन मलैया के अकस्मात निधन से शोक में डूबे मलैया परिवार व उनके समस्त कुटुंबी जनों ने पूज्य साध्वी संघ के चरण सानिध्य में शोक पर नियंत्रण करने की संवेदनाएं ग्रहण करी। अंत में सभी जन समुदाय ने अपने स्थान पर खड़े होकर पूज्य आर्यिका संघ को त्रय बार बंदामि (प्रणाम) निवेदित किया। जिनवाणी स्तुति पश्चात सभा पूर्ण हुई।
मां बड़ी देवी मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा का छटवा दिन
दमोह। शहर के मां बड़ी देवी मंदिर में स्वर्गीय श्री राजाराम राय साव जी की स्मृति में आयोजित भागवत कथा मैं आज देवी चित्रलेखा जी के मुख से श्रीमद भागवत कथा में कहा की स्वयं में बहोत सी कमियों के बावजूद यदि हम स्वयं से प्रेम कर सकते है,तो फिर दूसरों में थोड़ी बहोत कमियो की वजह से दुसरो से धृणा कैसे कर सकते है।समाज की मानसिकता ने ही गोपियों को मज़बूर किया की वो अब एक राक्षस की कैद से बहार आने के बाद वापस घर न जाए। समाज की नज़रों में वो कलंकित थी।भगवान् की भक्ति कीजिए जिनका नाम सूर्य के समान है। जिस प्रकार सूर्य के किंचित उदय होने पर रात्रि का अन्धकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार कृष्ण-नाम का थोड़ा-सा भी प्राकट्य अज्ञान के सारे अन्धकार को, जो विगत जन्मों में सम्पन्न बड़े-बड़े पापों के कारण हृदय में उत्पन्न होता है, दूर भगा सकता है।
कथा के छटवें दिवस में पूज्या देवी चित्रलेखाजी ने भगवान् के दवारा की गयी लीलाओं का श्रवण कराते हुए बताया कि ब्रज में की गयी भगवान की लीला स्वयं नारायण भी नहीं कर सकते। इन लीलाओं के द्वारा भक्तो को रिझाना सिर्फ भगवान् कृष्ण ही कर सकते हैं। और वृन्दावन भगवान् का घर हुआ इसलिए प्रभु ने सब लीलाओं को एक साधारण बालक की तरह किया। और इस नन्हे से बालक ने अपनी मनमोहक लीलाओं के द्वारा गोपियों का मन ऐसा मोहा के गोपियों को अब न भोजन की सुध रहती है न अपने परिवार की और न ही किसी काम धाम की। गोपियाँ दिन रात कन्हैया का दर्शन करने को लालयत रहती हैं और मैया यशोदा के घर किसी न किसी बहाने के साथ जा के गोविन्द का दर्शन करतीं।
देवीजी ने कथा विषय में आगे बरुण लोक से नन्द बाबा को छुड़ाकर लाने की कथा, और अन्य कथाओ का श्रवण कराते हुए रास लीला का कथा का वर्णन श्रवण कराया की जब भगवान् ने वंशी बजा के गोपियों को अर्धरात्रि में में निमंत्रण दिया । और सभी गोपियाँ अपना घर बार छोड़कर भगवान् के समीप पधारी। भगवान् ने सभी गोपियों की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए उन्हें घर जाने को कहा मगर गोपियाँ ने भगवान् से ही प्रश्न किया कि संसार प्रभु प्राप्ति के लिए लाखों प्रयत्न करता है और फिर प्रभु की शरण में आता है।
मगर हम जब आपको प्राप्त कर ही चुके है तो आप हमें दोवारा संसार सागर में जाने को क्यों कहते हो ? गोपियों की बात मान कर प्रभु ने गोपियों के भीतर दंश मात्र अभिमान को मिटाने के लिए लीला की और प्रभु के अदृश्य हो जाने के कारण गोपियों ने प्रभु को मनाने के लिए अथक प्रयास किया। परंतु प्रभु नहीं आये तब विरह जब सीमा से अधिक हो गया, करोड़ों गोपियों ने एक साथ गोपी गीत गाया। प्रभु प्रगट हुए और प्रभु के एक स्वरुप के साथ 2 गोपियों ने महारस किया। इसके पश्चात प्रभु के मथुरा गमन की कथा, प्रभु की शिक्षा, उद्धव संवाद, मामा कंस वध आदि कथा का श्रवण करा कर भगवान् कृष्ण और माता रुक्मिणी के विवाह की कथा कह कर कथा के छठवे दिवस को विश्राम दिया । इस दौरान प्रमुख रूप से चन्द्र गोपाल पौराणिक, सुमन देवी राय, कमलेश भारद्वाज, आशीष कटारे, राजीव राय, राजेश पाण्डेय, मोंटी रैकवार, रीतेश अवस्थी,ओम रैकवार, गोंविद राय, गोपाल राय, प्रकाश शिवहरे, पंकज राय, कपिल राय सहित बड़ी संख्या में भक्त जनों की मौजूदगी रही।
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