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जल संसाधन विभाग के उपयंत्री की सेवानिवृत्ति पर विदाई.. सतगुरू रविदास मंदिर तुरकाई में पहला विवाह सम्पन्न..जन परिषद का स्थापना दिवस समारोह भोपाल में आज.. कर्मों का आश्रव निरंतर होता रहता है.. आचार्य श्री समयसागर जी

जल संसाधन विभाग के उपयंत्री की सेवानिवृत्ति पर विदाई

दमोह। जल संसाधन विभाग में पदस्थ उपयंत्री के सी दुबे के सेवानिवृत होने के उपरांत उन्हें विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा भावभीनी विदाई दी गई। इस अवसर  पर कार्यक्रम में सभी अधिकारी कर्मचारियों द्वारा श्री दुबे को साल श्री फल भेंटकर स्वागत किया गया। इस दौरान श्री दुबे ने कहां कि उन्होंने 36 वर्ष 7 माह 13 दिन तक विभाग में अपनी सेवाएं दी और उन्हें इस बात का कभी भी एहसास नहीं हुआ कि वह परिवार से अलग काम कर रहे है सभी ने परिवार की भांति ही सहयोग दिया। इस दौरान उन्होंने सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का हृदय से आभार व्यक्त व्यक्त किया।

 इस अवसर पर प्रमुख रूप से कार्यपालन यंत्री आर एस धुर्वे,अखिल बिल्थरे, अनुबिभागीय अधिकारी ,नितेश कुर्मी, राहुल गुरु, मयंक गंगेले, पी एस राय, जिज्ञासा जैन, उपयंत्री कपिल पटेल, धर्मेंद्र हरोडे, जयनारायण असाटी, उत्कृष्ट असाटी, ईशा सोनी, प्रवेश साहू, अमीन आरती ठाकुर, अर्पित स्वर्णकार ,संभागीय कार्यालय से श्री मिश्रा जी, सुबोध कुमार ,श्री सोनकर, मंदा मेम, अरुण कुमार दुबे, श्रीमती रंजना दुबे आदि की उपस्थिति प्रमुख रूप से रही।

सतगुरू रविदास मंदिर तुरकाई में पहला विवाह सम्पन्न
दमोह।
 अखिल भारतीय रविदासिया धर्म के द्वारा महेन्द्र संग प्रिया का शुभ विवाह ग्राम तुरकाई के रविदास मंदिर में सम्पन्न हुआ। विवाहकर्ता संत श्री रामदयाल शास्त्री जी प्रदेश धर्माचार्य एवं संत श्री प्रकाशदास जी गढ़ाकोटा के द्वारा किया गया। अखिल भारतीय रविदासिया धर्म संगठन के जिला संगठन मंत्री लखनलाल तुरकाई एवं सीतारानी अहिरवार के पुत्र महेन्द्र एवं श्री रद्युवीर एवं मीना जी की पुत्री प्रिया का विवाह बड़े हर्ष पूर्वक किया गया। 

यह पहला अवसर है जब संत शिरोमणी सतगुरू रविदास मंदिर तुरकाई से विवाह सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर डॉ.केपी अहिरवार, जीपी अहिरवार, एनआर सुमन, आर अहिरवार, रूपराम चौधरी, नारायण अहिरवार, जगदीश बौद्व, वीरेन्द्र, संतोष, पन्नालाल, मदनलाल, राजा, सुनील, जाहर, डालचंद अहिरवार, नाथूराम आदि की उपस्थिति रहीं। कार्यक्रम का सफल संचालन मुकेश अहिरवार जिलाध्यक्ष अखिल भारतीय रविदासिया धर्म संगठन द्वारा किया गया।

जन परिषद का स्थापना दिवस समारोह भोपाल में आज
दमोह/जनपरिषद चैप्टर दमोह अध्यक्ष सुधीर विद्यार्थी ने बताया कि राष्ट्रीय जन परिषद का 35 वाॅं स्थापना दिवस वार्षिक समारोह 30 जून को अपरान्ह 4ः00 बजे राज्य संग्रहालय श्यामलाहिल्स भोपाल में आयोजित किया जा रहा है। जिसमें प्रमुखतः सी.बी.आई.के पूर्व डॉयरेक्टर माननीय श्री ऋषि शुक्ला, वरिष्ठ रंगकर्मी सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता श्री राजीव वर्मा, पूर्व डी. जी.पी. श्री डी.पी. खन्ना, मिस यूनिवर्स टाइटैनिक ब्यूटी सुश्री अशिता कोचर, मिसेज वर्ल्डवाइड सुश्री भूमिका सिंह एवं मिसेज यूनिवर्स टाइटैनिक ब्यूटी सुश्री प्रगति सेठ की अतिविशिष्ठ उपस्थिति में, होगा। इस अवसर पर कई उपलब्धि प्राप्त व्यक्तित्वों का सम्मान भी किया जायेगा। साथ ही, दमोह जनपरिषद द्वारा प्रकाशित स्मारिका‘ प्रगति‘ का विमोचन भी किया जायेगा। समारोह में आपकी गौरवमयी उपस्थिति निवेदित है. पूर्व डीजीपी और जन परिषद के मुखिया आदरणीय श्री एन के त्रिपाठी एवं अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों के सक्षम नेतृत्व, रामजी श्रीवास्तव के दोस्तों की अतुलनीय मेहनत  एवं प्रयासों से तथा जन परिषद के अनेक शुभचिंतक पत्रकार भाइयों के बेमिसाल और अतुलनीय सहयोग से,संस्था जन परिषद, आगामी 30 जून 2024 को अपनी रचनात्मक यात्रा के सुनहरे 35 वर्ष पूर्ण कर रही है।
कर्मों का आश्रव निरंतर होता रहता है.. आचार्य श्री समयसागर जी
 दमोह ।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा शरीर में कर्म के उदय से व्याधि आ जाती है और उस रोग व्याधि का निष्कासन भी औषधि उपचार के माध्यम से हो जाता है। निष्कासन महत्वपूर्ण नहीं है बहुत जल्दी रोग से मुक्त हो सकता है किंतु रोग जो आया है वह किस द्वार से आया है उसका परीक्षण हमें करना है ।नहीं तो बार-बार व्याधि होती है और औषधि लेते हैं। क्योंकि औषधी दान का प्रावधान तो है ही आगम में हम दवाई लेते चले जाएंगे किंतु रोग का निष्कासन इसलिए नहीं होगा। 

जिस द्वार से रोग का प्रवेश हो रहा है उस द्वार को बंद नहीं कर पा रहे हैं ।दवाई बिल्कुल अच्छी क्वालिटी की है डॉक्टर भी अच्छा है दवाई भी राम बाण है किंतु पथ्य का पालन होना भी उसके साथ होना आवश्यक है। परहेज नहीं रखेंगे तो रोग बढ़ेगा ।औषधि के द्वारा रोग बढ़ रहा है ऐसा नहीं है वह आहार के द्वारा ही रोग आया है आहार के अलावा और बहुत सारे निमित्त हो सकते हैं। निमित्तों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ।उसी प्रकार मोक्ष मार्ग में भी कर्मों का आश्रव निरंतर होता रहता है।किंतु वह आश्रव अपने आप नहीं होता अपने आप आश्रव नहीं होता अपने आप बंध नहीं होता है ।यदि अपने आप आश्रव हो जाता तो अपने आप ही आश्रव का रोकना भी हो जाएगा ।आश्रव निर्जरा संवरा ऐसा सूत्र बनाने की क्या आवश्यकता ।आश्रव होता बुद्धि पूर्वक भी होता है अबुद्धि पूर्वक भी आश्रव होता है। अबुद्धि पूर्वक जो आश्रव है उसको रोकने का प्रावधान अलग है उसको पुरुषार्थ के माध्यम से नहीं रोका जाता वह ऑटोमेटिक रुकता है कब रुकता है कहां रुकता है इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे ।अभी बुद्धि पूर्वक जो आश्रव हो रहा है या बंध हो रहा है उस बंध की परंपरा को रोकना है ।तो बंध जो हो रहा है वह बिना हेतु के संभव नहीं है। बिना हेतु के बंध हो जाए तो आचार्य उमा स्वामी महाराज अष्टम अध्याय में प्रथम सूत्र दे रहे हैं उसकी कोई आवश्यकता नहीं। बिना कारण के बंध होता नहीं तो पहले कारण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। तो शुभ और अशुभ आश्रव होता है अथवा पुण्य और पाप का आश्रव होता है तो उसके लिए मन वचन काय की कुछ ऐसी चेष्टाएं हैं जिनसे पाप का आश्रव होता है ।और ठीक इसके विपरीत आत्मगत कुछ उज्ज्वल कुछ आत्मगत परिणाम होते हैं पवित्र परिणाम होते हैं जिनके फलस्वरूप पुण्य का भी आश्रव होता है तो क्रम है। गुरुदेव का यह कहना है कि कर्म का जो आश्रव होता है उसकी निर्जरा हमें करनी है। किंतु क्रम से निर्जरा होगी पाप कर्म की निर्जरा ओर पुण्य कर्म की निर्जरा इसमें क्रम है। पाप पहले मिटता है ।पाप प्रथम मिटता प्रथम तजो पुण्य फल भोग। पुनः पुण्य मिटता धरो आत्म निर्मल योग ।यह दोहा गुरुदेव ने सामने रखा है पाप प्रथम मिटता पाप का बंध हुआ है तो पाप पहले क्षय होगा पुण्य बाद में क्षय होगा ।मोक्ष मार्ग में पुण्य बाधक नहीं है ।कुछ लोगों की धारणा हो सकती है। स्वाध्याय शील होते हुए भी इस विषय में वह अनभिज्ञ रहे हैं उन्हें ज्ञात कर लेना चाहिए कि पाप का क्षय और पुण्य का क्षय करना है पाप और पुण्य यह दोनों इक्वल हैं दोनों समान है ।कहा भी है आगम में कुंदकुंद देव ने कहा चाहे लोहे की बेड़ी हो चाहे स्वर्ण की बेड़ी हो बेड़ी तो बेड़ी है ।बंधन तो बंधन है बंधन किसको ईस्ट है संसार से मुक्त होना चाहता है प्रत्येक संसारी प्राणी हम बंधन से मुक्त होना चाहते महाराज इसलिए चाहे पाप हो चाहे पुण्य हो दोनों को एक तराजू में तोल लेते हैं वह ठीक नहीं माना जाता ।पुण्य और पाप दोनों बेड़ी तो हैं जो संसार में प्रवेश करता है वह सुशील कैसे हो सकता है ।यह कहा कुंद कुंद स्वामी ने उस गाथा को आप लेकर बैठ गए।

जेष्ठ श्रेष्ठ आर्यिका रत्न श्री गुरुमति माताजी एवं दृणमति माताजी ससंघ का कुंडलपुर से मंगल विहार
कुंडलपुर दमोह ।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर से विद्या शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से जेष्ठ श्रेष्ठ आर्यिका रत्न मां श्री गुरुमति माताजी ससंघ ,आर्यिका रत्न श्री दृणमति माताजी ससंघ, आर्यिकारत्न श्री चिंतनमति माताजी ससंघ, आर्यिकारत्न श्री आराध्यामति माताजी ससंघ का सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर से मंगल विहार हुआ।


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