जीवन को निखारने का प्रयत्न करना सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है.. अपने लक्ष्य की ओर बुद्धि और विवेक कदम बढ़ाने से सफलता की मंजिल तक पहुँचा जा सकता है.. दीनता सबसे बड़ी हीनता है- वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी..
दीनता सबसे बड़ी हीनता है- आचार्य निर्भय सागर जीदमोह।
आचार्य श्री ने कहा दीन हीन व्यक्ति स्वयं को युज्यलेस (निरुपयोगी) समझने लगता है। वह जीवन जीना भी नही चाहता। उसे अपनी जिंदगी बोझ लगने लगती है। आशा का दीपक बुझ जाता है।सफलता कोषों दूर भाग जाती है इस लिए हीनता और दीनता को अपने पास आने नही देना चाहिए, अपने जीवन को हीनता और बुराइयों से खाली करके उत्साह और अच्छाई से भरना चहिये। जो स्वयं को तुक्ष मानने लगता है, वह आत्म हीनता की वीमारी से ग्रहसित हो जाता है। आत्महीनता उन्नति में अविरोधक है, सफलता में बादक है और जीवन मे घातक है, दीनता रंक बनाती है ओर उत्साह राजा बनाता है। दीनता काटा है और उमंग फूल है इस लिए जीवन को उमंग उत्साह से भरना चाहिये।
आचार्य श्री ने कहा आत्मउत्थान की प्रेरणा है। जीवन को निखारने का प्रयत्न करना सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है। अपने लक्ष्य की ओर बुद्धि और विवेक कदम बढ़ाने से सफलता की मंजिल तक पहुँचा जा सकता है। जो मार्ग में आई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है आपत्तियों को गले लगता है। श्रद्धा और विश्वास पूर्वक अपने कार्य क्षेत्र में कूद पड़ता है, वह एक दिन सफलता प्राप्त कर लेता है सफलता विना सँघर्ष के नही मिलती। सँघर्ष ही सफलता ही पूंजी है। आज तक जितने भी महापुरुष बने है उन्होंने मुसीबतों और आपत्ति विपत्तियों को सामना किया है। लक्ष्य की प्राप्ति हो जाना अथवा अपने निर्धारित मंजिल तक पहुँच जाना ही सफलता कहलाती है। सफलता प्राप्त करने के पूर्व उसके सपने देखना भी जरूरी है क्योंकि जो सपने देखता है उसी के साकार होते है।
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