Header Ads Widget

शिक्षक राष्ट्र निर्माण में और बच्चों के भविष्य के निर्माण में.. माता पिता से भी बढ़कर भूमिका निभाते है.. वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज..

शिक्षक को पहले विद्यार्थी को बाद में मेहनत करना पड़ती  
दमोह। शिक्षक दिवस पर उदगार व्यक्त करते हुए वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा शिक्षक राष्ट्र निर्माण में और बच्चों के भविष्य के निर्माण में माता पिता से भी बढ़कर भूमिका निभाते है। शिक्षक शिक्षा गुरु कहलाते है जब शिक्षक शिक्षा अच्छी देते है तभी विद्यार्थी अच्छा परिणाम लाकर देते है इसलिए अच्छे परिणाम में विद्यार्थी से अधिक भूमिका शिक्षक की होती है शिक्षक को पहले मेहनत करना पड़ती है बाद में विद्यार्थी को। शिक्षक हमेशा गतिशील होना चाहिये पहले शिक्षक बाद में शिक्षा उसके बाद परीक्षा होती है। पूर्ण शिक्षा लेने के बाद हर परीक्षा में पास करने वाला विद्यार्थी 1 दिन श्रेष्ठ शिक्षक बनता है। 
 आचार्यश्री ने कहा शिक्षा लेने के बाद कितना ग्रहण किया है उसकी जांच करने के लिए परीक्षा ली जाती है। परीक्षा में फेल होने का  डर प्रत्येक विद्यार्थी को पढ़ने के लिए पढ़ने के लिए मजबूर करता है। यदि परीक्षा बंद हो जाएगी तो शिक्षक का मूल्य घट जाएगा एवं शिक्षा का स्तर घट जाएगा। शिक्षा अर्थ हीन हो जायेगी विद्यार्थी आलसी हो जायेगा इसीलिए कोरोना अथवा अन्य किसी कारण से स्कूल में पढ़ाई हो या न हो विद्यार्थी स्कूल आये या न आये परन्तु परीक्षा होना चाहिये। जो परीक्षा का विरोध कर रहे है वे अपने ही वच्चों के एवं देश के भविष्य को वर्वाद र्क रहे र्है ओ अपने पांव पर कुलाड़ी पटक रहे है विद्यार्थियों ने शिक्षक से कितनी शिक्षा ग्रहण की है और विद्यार्थी की बुद्धि कितनी तेज या मन्द है यह ज्ञान परीक्षा से होता है परीक्षा एक थर्मामीटर है। विद्यार्थियों की बुद्धि कुशाग्रता और प्रतिभा का। परीक्षा अनादि कालीन पद्ति है जब से दुनिया है तब से शिक्षा है, शिक्षक है और परीक्षा है।

आचार्य श्री ने कहा शिक्षक 3 पीढ़ी से जुड़ा रहता है सबसे बड़ा शिक्षक परमात्मा है शिक्षा लेने वाले हम सब प्राणी है यह संसार परीक्षा भवन है। परीक्षा में तीन घण्टे मिलते है इस संसार की परीक्षा मे पहला घण्टा बाल्या अवस्था का है, दूसरा घण्टा जवानी का है, तीसरा घण्टा बुढ़ापे का है। तीनो घण्टे पूर्ण होने को है फिर भी लोगो की अभी परीक्षा कॉपी खाली है कुछ लिखा ही नही उन्हें फेल होने का डर ही नही यही अधात्म की सवसे बड़ी शिक्षा और परीक्षा है कि आप अपनी आत्मा में कुछ पुण्य की इबारत लिख कर जाये। यह इबारत इमारत खड़ी करने से नही लिखी जाती बल्कि परोपकार, दया, करुणा, अहिंसा, सत्य, न्याय नीति पर चलकर सद पुरुषार्थ करके लिखे जाते है। 
इसके पूर्व आचार्य श्री को सघस्थ्य सभी शिष्यों में कलम, कॉपी धर्म ग्रन्थ भेट किया। पाद प्रदालंन किये अनेक विद्यार्थी ने आचार्य श्री को भक्ति पूर्वक पड़गाहन करके आहार दान दिया। क्योकि आज शिक्षकों के सम्मान का दिवस है। जो हमारे देश से ही प्रारम्भ हुआ है।

Post a Comment

0 Comments