समस्याओं को देखकर भागो नहीं बल्कि डटकर सामना करो- आचार्य निर्भय सागर
दमोह। आत्महत्या महापाप है अपने जीवन को स्वयं नष्ट करना एक घिनौना कार्य एवं जघन्य अपराध है। आत्महत्या करने से जीवन की समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला है बल्कि समस्याएं और बढ़ जाती हैं। आत्महत्या से स्वयं के जीवन में और परिवार वालों के जीवन में और अधिक पैदा हो जाती है। आदमी जब स्वयं के प्रति असहिष्णु हो जाता है तब वह आत्महत्या के विचार करता है। जब आदमी दूसरों के प्रति सहिष्णुता से रहित हो जाता है तब वह दूसरों की हत्या करता है। समस्याओं के सागर को पार के लिए सहिष्णुता की नौका में सवार होना होगा और विवेक बुद्धि की पतवार से जीवन नौका को खेना होगा। यह बात वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला में प्रवचन के दौरान कही।
आचार्य श्री ने कहा समस्याओं को देखकर भागो नहीं बल्कि डटकर सामना करो। समस्याओं से डरकर भागने से समस्याओं का हल नहीं निकलेगा बल्कि समस्याएं भाव भावांतर में पीछा करती रहेगी। जैसे कुत्ते से डर कर भागने वालों के पीछे कुत्ता और तेजी से भागकर पीछा करता है वैसे ही डर कर भागने वालों के पीछे समस्या और अधिक पीछा करती हैं। इस दुनिया को मरने और मारने वालों ने नरक बनाया है इस मृत्युलोक को सहनशील अर्थात सहिष्णु लोगों ने स्वर्ग बनाया है। आचार्य श्री ने कहा आत्महत्या तात्कालिक अवस्था का पागलपन है। आधे बीच मेंअपनी जीवन लीला समाप्त कर देना, अपने वालों को छोड़कर चले जाना पागलपन की निशानी है, मानसिक विक्षिप्तता है। आत्महत्या करने और दूसरों की हत्या करने से पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं मिलता है। यदि विश्वास ना हो तो फांसी पर लटके हुए उस हत्यारे से पूछो कि तुम्हें हत्या करने से क्या मिला प्रो वह अपने अनुभव से यही कहेगा कि परहत्या हो या आत्महत्या दोनों ही बुरी चीज है। इसे कभी नहीं करना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा आत्महत्या नहीं बल्कि आत्म ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। आत्मज्ञान वह प्रबल मंत्र है जिससे आत्मा की निधि प्राप्त होती है, आत्मा का वैभव प्राप्त होता है। आत्म वैभव प्राप्त करने वालों को बाहरी वैभव खली के टुकड़े के समान सारहीन लगता है। बाहरी सुख सुविधाएं एवं धन वैभव को छोड़ना मोही के बस का नहीं है, उसे छोड़ने वाला निर्मोही बैरागी और आत्मज्ञानी चाहिए।
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