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शरीर मे स्वास खास होती है और परिवार में सास खास होती है.. कोरोना महामारी चरम सीमा पर पहुंचने वाली है.. लगभग एक माह बहुत सावधानी बरतना जरूरी- आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज

                                            एक माह बहुत सावधानी बरतना जरूरी..
दमोह। वैज्ञानिक संघ आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने जैन धर्मशाला में कहा शरीर मे स्वास खास होती है और परिवार में सास खास होती है। स्वास विगड़ जाने से स्वास्थ्य विगड़ जाता है और सास विगड़ जाने से परिवार विगड़ जाता है। क्योकि परिवार में मुख्य भूमिका सास की होती है। सास का सम्बंध बहु से होता है, नन्द से होता है, पति से होता है, बेटे से  होता है बेटी से होता है नाती पोते से होता है और ससुर से होता है। ’सास  परिवार की धुरी होती है। जिस परिवार की सास पढ़ी लिखी धैर्यवान, सहनशील, और पक्षपात से रहित अर्थात निष्पक्ष होती है उस परिवार में स्वर्ग जैसा माहौल बना रहता है। सास यदि बहु पर कटाक्ष करती है अथवा अपने बेटे का पक्ष लेती है अथवा अपनी बेटी का पक्ष लेती है तो वाह गृह, गृह न होकर काराग्रह बन जाता है। इसलिए परिवार की सुख शान्ति और समृद्धि के लिए सास का पढ़ा लिखा एवं मधुर व्यवहार होना अति आवश्यक और बहू का विनय शील होने के साथ-साथ सास ससुर आदि बड़ों का ख्याल रखने की कला होना चाहिए।
शरीर की निरोगता के लिए सांस का ध्यान रखना चाहिये। बीपी. बढ़ने पर स्वास की गति बढ़ जाती है और सास का क्रोध बढ़ने पर परिवार की अशांति बढ़ जाती है।आचार्य श्री ने कहा चिंता, तनाव, अवसाद, छल, कपट एवं लड़ाई झगड़े करने से मानसिक तनाव बढ़ता है तनाव बढ़ने से स्वास्थ्य बिगड़ता है, घर में अशांति बढ़ती है। तनाव का शरीर की ग्रंथियों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। तनाव से अंतः स्रावी ग्रंथियों से हारमोंस एवं रासायनिक पदार्थों का संतुलन बिगड़ जाता है जिससे मधुमेह है, थायराइड, ब्लड प्रेशर आदि अनेक रोग हो जाते हैं। इसलिए मधुर व्यवहार आपसी सामंजस, सरलता, समता और संयम के बिना घर की शांति और तन के निरोगता की कल्पना करना व्यर्थ है। 
आचार्य श्री ने कहा कोरोना महामारी के बीच घर में स्वच्छता, मन में विचारों की उच्चता और तन में प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखना परम आवश्यक है। अभी यह समय इस कोरोना महामारी के चरम सीमा पर पहुंचने वाला है। लगभग एक माह बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है, यदि सावधानी ना वरती गई तो अस्पतालों में रोगी को और मरघट में मुर्दे को रखने जगह नहीं बचेगी। बुंदेलखंड की एक कहावत सुनाते हुए आचार्य श्री ने कहा कुंवार मास के दो पखवाड़े जतन जतन से काटो प्यारे। अर्थात कुंवार माह के 30 दिन खानपान को, रहन-सहन को और चारों ओर के वातावरण को अच्छा बनाए रखना बहुत जरूरत है। इस समय वातावरण में नए-नए वायरस और बैक्टीरिया पैदा होते हैं जो आदमी को बीमार बनाते हैं लेकिन इस साल तो कोरोनावायरस के कारण करेला और नीम चढ़ा वाली बात होने जा रही है। 
अतः अपने जीवन परिवार समाज और देश को बर्बादी से बचाने के लिए सावधानी बरतने की स्वयं की ही जिम्मेदारी है दूसरे की नहीं। प्रवचन के पूर्व आचार्य श्री द्वारा कोरोनावायरस से बचने हेतु विशेष मंत्रों का उच्चारण किया गया और भक्तों के द्वारा भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा के ऊपर शीतल जल से अखंड शांति धारा की गई एवं सभी को इस समय सावधानी बरतने के उपाय बतलाए गए।

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