सहानुभूति संजीवनी बूटी का काम करती है-
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन विधान पूजन में विधान करने वालों को उपदेश देते हुए कहा कि सहानुभूति एक औषधि है, जो बिना दवा के रोगी का उपचार कर देती है। सहानुभूति से मुर्दे में भी चेतना का संचार होने लगता है। सहानुभूति से अशांत व्यक्ति भी शांति का अनुभव करने लगता है। सहानुभूति से संभल बढ़ जाता है। सहानुभूति से शक्ति का संचार होने लगता है। सहानुभूति से हतोत्साहित व्यक्ति भी उत्साहित हो जाता है। जैसे सूर्य की किरण है पढ़ते ही मुरझाया हुआ कमल खिल जाता है, वैसे ही सहानुभूति से मुरझाई हुई आत्मा फिल्म उठती है। हतोत्साहित आत्मा भी उत्साहित हो जाती है।
आचार्य श्री ने कहा जब किसी से कहा जाता है कि तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे साथ हूं ना, ऐसे शब्द सुनकर सामने वाले के अंदर विश्वास जाग उठता है। सहानुभूति से संरक्षण प्राप्त होता है। सहानुभूति से प्रतिभा उभर कर सामने आ जाती है। सहानुभूति सफलता की कुंजी है। जब रोगी को सहानुभूति देते हुए कहता है कि आप चिंता मत करो आप स्वस्थ हो जाएंगे, मैं बहुत अच्छी दवाई दे रहा हूं, इतना सुनते ही रोगी का आधा दर्द कम हो जाता है। शिक्षक विद्यार्थी को सहानुभूति देता है तो उसका पढ़ाई में मन लगने लगता है और सफलता प्राप्त कर लेता है। माता पिता अपनी संतान को सहानुभूति देते हैं तो संतान अपनी प्रगति कर लेती है। मित्र अपने दुखी मित्र को सहानुभूति देता है तो वह दुखी मित्र अपने दुख को भूल जाता है। किसी भूखे प्यासे से भोजन पानी की पूछ लेना ही सहानुभूति है।
आचार्य श्री ने कहा किसी बीमार से दुख का हाल-चाल एवं दवा की पूछ लेना बीमार के प्रति सहानुभूति है। जैन आगम में 10 प्रकार के मुनियों की समाचार विधि में एक उपसंपत नाम का समाचार का वर्णन किया गया है। वह उप संपत समाचार एक प्रकार की सहानुभूति ही है क्योंकि उसमें गुरु अपने शिष्यों का हाल-चाल पूछते हैं और शिष्य गुरु का हालचाल पूछते हैं, उनके स्वास्थ्य एवं धर्म ध्यान के समाचार का आदान प्रदान करते हैं। जिसको सुनकर दोनों आनंद विभोर हो जाते है जिससे गुरु के प्रति शिष्य की भक्ति एवं शिष्य के प्रति गुरु का वात्सल्य भाव प्रगट हो जाता है। यही सहानुभूति का रूप है। यह सहानुभूति संजीवनी बूटी का काम करती है।
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