वोट- नोट की लालसा से देश-समाज बर्वाद होता..
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने कहा देवता परेशान नहीं करता बल्कि परेशानियों को दूर करता है जो परेशान करे वह देवता नही हो सकता भूत पिशाच परेशान करते है इसीलिये वे पूज्य देवता नही हो सकते सही देवता वही है जो विषय कषायो के,विषय वासना के नफरत के और भूत पिशाच आदि के भूतों को उत्तार दे उनसे मुक्त करा दे भोग विलास में फंसा व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता पशुओ के बलि चढ़वाने वाला और खून मॉस की इच्छा करने वाला सच्चा देवता नहीं हो सकता धर्म का लिबास को ओढ़कर इंद्रियों के विलास में फंसा व्यक्ति धर्मात्मा नही कहला सकता है। कुछ लोग धर्म का लिबास पहनकर भोली भाली जनता को ठग रहे है। और उन्हें गलत मार्ग पर ले जा रहे है ऐसे वनावटी धर्मात्मा से सावधन रहना चाहिए। बनावटी धर्मात्मा धर्म नहीं कर रहे हैं बल्कि अपनी अपनी दुकान चला रहे हैं यह उपदेश आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला दमोह में दिया।
लोकतांत्रिक देशो में बहुमत को सत्य से सिद्ध किया जा रहा है भले ही वह पूर्णतः असत्य हो, सत्य का उदघाटन बहुमत से नहीं होता बल्कि ईमानदारी न्याय और धर्म मार्ग से होता है डोगी धर्मात्मा को देखकर आस्थावान भी धर्म छोड़कर चले जाते है धर्म बुरा नही होता धर्म मार्ग पर चलने वाले बुरे हो सकते है स्वार्थ की सिद्धि करने वाले असत्य का सहारा लेते है परमार्थ की सिद्धि करने वाले सत्य का सहारा लेते है आज की दुनिया मे स्वार्थ सिद्धि करने वाले अधिकांश देखे जाते है इसी लिए अन्याय अत्याचार फैल रहा है और सत्य शूली पर टँगा है और असत्य सिहासन पर बैठा है। आचार्य श्री ने कहा वोट के कारण से भारतीय जनता भटक रही है। और नॉट के कारण बनिया समाज भटक रही है।
वोट और नोट की लालसा से देश और समाज बर्वाद होता है। यह लालसा आदमी को पतन की ओर ले जाती है ऐसा व्यवहार दुसरो के साथ नही करना चाहिये जैसा व्यवहार तुम्हे स्वयं पसन्द नही है धर्म ईट, चुने से बने मन्दिर में नही धर्म तो मन मन्दिर में होता है। धर्म मनमानी का नही होता और न ही बनबाने का होता। धर्म जीवन मे न्याय नीति आचार-विचार, दया, अहिंसा, करुणा के उत्तर जाने नाम है।
इसीलिये भगवान महावीर स्वामी ने चारित्र को धर्म कहा है जब व्यक्ति न्याय नीति सत्य अहिंसा को अपना लेता है तब अपने सुभाव को प्राप्त कर लेता है इसी लिए भगवान ने वस्तु के स्वभाब को धर्म कहा है धर्म को खरीदा नही जाता बल्कि अंदर से प्रगट किया जाता है धर्म करते हुए आदमी दुखी इस लिए दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति ने मात्र धर्म का आवरण ओढ रखा है। धर्म को धारण नही किया है, धर्म धारण करने की वस्तु है ओढ़ने की नही।
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