आचार्य श्री निर्भय सागर महाराज के मंगल वचन
दमोह। वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने कहा हँसकर सहना सीखो मिलकर रहना सीखो और अपनी शक्ति के अनुसार मेहनत करना सीखो यही सुख शांति आनन्द और सफलता के सूत्र है यदि दुःख को सहन करना और साधना बन जाये और मेहनत के साथ आपस मे मिलकर रहना आराधना बन जाये तो यही स्वर्ग उतर आयेगा।आचार्य श्री ने कहा यह मानव शरीर हड्डियों नसों के ताने माने से बना हुआ है, खून मांस से सना हुआ और त्वचा से ढका हुआ है। इसमें मल मूत्र आदि भरा हुआ है यह अपवित्र और नाशवान है इसलिए इस शरीर का उपयोग करना चाहिये। उपयोग यदि होता है तो उसका संरक्षण भी जरूरी है। लेकिन अपने शरीर के संरक्षण करने के लिए दूसरे जीवो को मारकर भक्षण नही करना चाहिये। शरीर का पोषण होना चाहिये लेकिन दूसरे प्राणियों का और प्रकृति का शोषण नही होना चाहिए क्योंकि प्रकृति और प्राणियों का शोषण करने से शोषण करने वाले का भी जीवित रहना असंभव है। यह शरीर संयम की साधना के लिए मिला है साधनों को बटोरने के लिए नही, साधनों की आवश्यकता जीवन की सुरक्षा के लिए होती है, जीवन साधनों की सुरक्षा मात्र के लिए नही। जो व्यक्ति अपने इस मानव जीवन का उपयोग आत्म हित में न करके मात्र शरीर के पुष्ट करने आये सरक्षक करने में लगा रहता है वह ठीक वैसे ही कर रहा जैसे किसी को वर्तन साफ करने के लिय राख की आवश्यता पड़ने पर कीमती हीरो को जलाकर भस्म बनाना।
आचार्य श्री ने कहा जिस प्रकार राह गिर को धूप से पेड़ के नीचे आने पर छाया शांति और आनन्द देती है उसी प्रकार भलाई करने से मन और आत्मा को खुशी और शांति मिलती है। भलाई का सहारा लेने पर आदमी सर्वोच्च ऊँचाई पर पंहुचता है। भलाई करना मलाई का काम करती है। भलाई करने के अनेक तरीके बताते हुए आचार्य श्री ने कहा आप किसी परेशान या दुखी व्यक्ति के पास जाकर हाल चाल पूछे उसकी आवश्यक वस्तु को प्रदान करे उसे प्रोत्साहित करें। ठीक होने का भरोसा दिलाएं, उसके हाथ पैर आदि दबाकर सेवा करे यदि यह नही कर सकते तो कम से कम तीन वाक्य जरूर बोलना चाहिए। पहला आपकी सेवा में हुं ना। दूसरा यह बोले कि तुम्हारे साथ भगवान है आप चिंता न करे। तीसरा वाक्य यह बोले कि सब ठीक हो जाएगा दुख आया है तो जायेगा। यह तीन वाक्य रामबाण औषधि का काम करेंगे। उसकी सारी चिन्ता पल भर के लिए पलायन कर जायेगी।
आचार्य श्री ने कहा इस कोरोना काल मे रोग से पीड़ित व्यक्ति उदास और मुसीबत में फंसा नजर आता है। उसे हतोत्साहित न करके उत्साहित करना चाहिये। भलाई करना संत पुरुष का लक्षण है। परोपकार, परहित और समाज सेवा ये सभी भलाई के अंतर्गत आते है इसलिये भलाई करने से सुंदर समाज का निर्माण होता है। भलाई करने से बुराई मिटती है, भलाई करने से देश और समाज मे प्रगति होती है। भलाई करने से सुख शांति का वातावरण बनता है। अतः इसलिए भलाई से धर्म, अर्थ काम और मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि होती है।
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