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आंवला नवमी व्रत रखकर महिलाओं ने आँवला के पेड़ का पूजन कर रक्षा सूत्र बांधे.. जटाशंकर, बड़ी देवीजी, तेंदूखेड़ा, हिंडोरिया सहित ग्रामीण क्षेत्र में.. आंवरी नमें पर दिखा धर्ममय उत्साह भरा माहौल..

 आंवरी नमें पर दिखा धर्ममय उत्साह भरा माहौल

दमोह। आंवला नवमी के मौके पर महिलाओं ने व्रत उपवास रखकर सिर्फ धार्मिक स्थलों में पहुंचकर आंवले के वृक्ष की पूजा अर्चना की तथा रक्षा सूत्र बांधा। इस अवसर पर शहर के जटाशंकर, बड़ी देवी जी मंदिर परिसर सहित अन्य धार्मिक स्थलों पर सुबह से ही महिलाओं श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंचना शुरू हो गई थी। 

वहीं दोपहर से शाम तक पूजन के आयोजन चलते रहे इस दौरान मौजूद पंडित पुरोहित पुजारियों के द्वारा विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी संपन्न कराए गए। इस दौरान जटाशंकर क्षेत्र में मेले जैसा नजारा भी देखने को मिला। वहीं बड़ी देवीजी मंदिर के पुजारी आशीष कटारे महाराज ने भक्तों को आंवला नवमी पर्व की महत्वता से अवगत कराया। 

तेन्दूखेड़ा में शास्त्री जी ने आंवला नवमीं कथा सुनाई

तेन्दूखेड़ा में भी महिलाओं के द्वारा आंवला नवमीं का त्योहार मनाया गया। महिलाएं नगर के रेस्ट हाउस पहुंची जहां उन्होंने आंवले के पेड़ का पूजन किया। पंडित गोपाल शास्त्री ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमीं को आंवला नवमीं मनाई जाती है इसे अक्षय नवमीं भी कह जाता है उन्होंने कथा सुनाते हुए कहा कि काशी नगर में एक निसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराएं लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगी यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही एक दिन एक कन्या को उसने कुए में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ लाभ की जगह उसके पूरे शरीर में कोढ़ हो गया और उस लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी

वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी इस पर वैश्य कहने लगा गौवध ब्राह्मण वध और बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर और गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष के नवमीं तिथि को आंवला के पेड़ की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवले के पेड़ का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तेंदूखेड़ा से विशाल रजक की रिपोर्ट

हिंडोरिया में जप तप दान करके की आंवला नवमी पूजा 

 हिंडोरिया में बड़ी ही श्रद्धा के साथ मेहेलवार माता के दिवाले में महिलाओं ने जप तप दान से आंवले की पूजा अर्चना की‌। बड़ी संख्या में महिलाएं एकत्रित होकर आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान का भोग बनाकर आशीर्वाद प्राप्त किया। हिन्दू धर्म में और साथ है पुराणों में देखा गया है कि जब सृष्टि की रचना हुई तब सबसे पहला वृक्ष आंवला का था जो देवताओं को प्राप्त हुआ। कहते है कि आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं जिससे महिलाएं पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं साथ ही भंडारा कर भगवान को भोग लगती है। हिंडोरिया ने महिलाओं ने भोग बनाकर भगवान को अर्पित किया।

आंवला नवमी का पर्व हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन जप-तप व दान करन से कई गुना फल प्राप्त होता है। आज के दिन आंवले के पास बैठकर पूजा करने से सभी पाप मिट जाते हैं। महत्व शास्त्रों में आंवला, पीपल, वटवृक्ष, शमी, आम और कदम्ब के वृक्षों को हिन्दू धर्म में वर्णित चारों पुरुषार्थ दिलाने वाला बताया गया है। इन वृक्षों की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा भक्तों पर बरसाते हैं। आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष का पूजन कई यज्ञों के बराबर शुभ फल देने वाला बताया गया है।

 हिंडोरिया में मेहेल्वार माता के दिवाले में हुए पूजन के बारे में जानकारी देते हुए गायत्री मंदिर स्कूल की प्राचार्य कीर्ति चैरसिया जी ने बताया कि इस दिन हम सभी महिलाएं बड़ी संख्या में एकत्रित होकर आंवले के वृक्ष के सामने हवन पूजन करते हैं। इस दिन हम सभी महिलाएं राधा कृष्ण, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और भंडारा करके भगवान को भोग लगाते हैं। और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर हम सभी महिलाएं भोग ग्रहण करती हैं। हिंडोरिया से श्याम बिहारी द्विवेदी की रिपोर्ट’

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