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कर्मों के आवरण से ज्ञान का खजाना ढका हुआ है.. उस आवरण को हटाने के लिए धर्म पुरुषार्थ करना जरूरी है.. जबलपुर नाका जैन मंदिर में वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भय सागर जी महाराज के मंगल प्रवचन..

 ज्ञान को बाहर से नहीं अंदर से ही प्राप्त करना होता है..

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन धर्म सभा में कहा जिसे ज्ञान हो जाता है कि इस कार्य को ऐसा किया जा सकता है अथवा वस्तु को ऐसे प्राप्त किया जा सकता है तो वह उस विधि से कार्य करता है और उसे प्राप्त कर लेता है इसीलिए ज्ञान आवश्यक है। मानव जीवन की शोभा ज्ञान, धर्म, दर्शन और संयम में है। ज्ञान आत्मा की सास्वत निधि है। ज्ञान को बाहर से नहीं अंदर से ही प्राप्त करना होता है। क्योंकि वह निधि अपने अंदर ही छुपी हुई है। कर्मों के आवरण से ज्ञान का खजाना ढका हुआ है। उस आवरण को हटाने के लिए धर्म पुरुषार्थ करना जरूरी है।

 प्रवचन के पूर्व समाज के प्रमुख डॉ श्री आरकेजैन संजय जैन आदि ने पंचकल्याणक की निर्विघ्नं समाप्ति है के लिए अभिषेक एवं शांति धारा की एवं सभी ने पूजन की। आचार्य श्री ने कहा  आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए । आत्मा में ज्ञान, दर्शन एवं शक्ति आदि गुणों को स्वीकार करना चाहिए। जब उसे स्वीकार करते हैं तभी आत्मस्त होने और उसे प्राप्त करने का भाव उत्पन्न होता है।आत्मस्त होने पर आत्मा स्वस्थ होती है। ओर विकल्प जालो से आत्मा अस्वस्थ होती है। विकल्प जाल तनाव पैदा करते हैं। 

आचार्य श्री ने कहा करने का भाव जहां तक चलता है वहां तक आत्मा पर में स्थित रहती हैं । करने की क्रिया तनाव पैदा करती हैं सच्चा ध्यानी वही है जो करने की क्रिया को छोड़कर अस्ति क्रिया में आ जाता है। ध्यान की अवस्था में जो हो रहा है उसे होने दिया जाता है उस क्रिया को भवति क्रिया  कहते हैं। भवति क्रिया से ऊपर उठने अस्ति और सत्व क्रिया रह जाती हैं। सत्व क्रिया को प्राप्त कर लेने पर मुक्त क्रिया प्राप्त हो जाती है। मुक्त क्रिया प्राप्त होने पर आत्मा स्वस्थ होती है। स्वस्थ आत्मा सिद्ध परमात्मा कहलाती है। 

संसार की अवस्था में आत्मस्थ तो हो सकते हैं पर पूर्ण स्वस्थ सिद्ध अवस्था में ही होते हैं अध्यात्म, धर्म और दर्शन आत्मा को स्वस्थ बनाने के लिए अपनाया जाता है। विज्ञान शरीर को स्वस्थ बना सकता है आत्मा को नहीं । धर्म और दर्शन हीआत्मा को स्वस्थ बना सकता है। आज के भौतिकवादी युग में अध्यात्म दर्शन और धर्म की जरूरत है।

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