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वैज्ञानिक संत के जन्मदिन पर आज राजीव कालोनी मंदिर में विविध आयोजन... पुरुषार्थ जगाने से सौभाग्य जाग जाता है रूठा हुआ भाग्य मान जाता है... आचार्यश्री निर्भय सागर.

राजीव कालोनी में आचार्यश्री निर्भय सागर के मंगल उपदेश..

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भयसागर जी महाराज संघ सहित इन दिनों नगर के राजीव कालोनी मंदिर में विराजमान है। आचार्यश्री के सानिध्य में प्रतिदिन विविध धार्मिक आयोजनों का लाभ सकल जैन समाज को प्राप्त हो रहा है। 24 फरवरी को सुबह आचार्यश्री निर्भय सागर जी के जन्मदिन पर विविध आयोजन श्रावकजनों द्वारा किए जाएगे। जिसमें सकल समाज शामिल होगी।

 आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने राजीव कॉलोनी जैन मंदिर में मंगल उपदेश देते हुए कहा पुरुषार्थ जगाने से सौभाग्य जाग जाता है रूठा हुआ भाग्य मान जाता है। व्यसनी चोर डाकू आतंकवादी सभी लोग श्रम करते हैं और अपने कार्य में सफल भी हो जाते हैं लेकिन ऐसी पुरुषार्थ नहीं कहते क्योंकि उससे से अपनी आत्मा और दूसरों की आत्मा का भला नहीं होता है आत्मा का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है बल्कि आत्मा का अहित ही होता है इसीलिए दान पुण्य एवं परोपकार के कारी करने का नाम ही पुरुषार्थ है।  आचार्य श्री ने कहा सुख दुख अच्छा बुरा एवं आकुलता मान्यता पर आधारित हमारी जैसी मान्यता होती है वैसा ही अनुभव होता है सुख में भी आकुलता व्याकुलता होती है और दुख में भी आकुलता व्याकुलता होता है भोग सामग्री सुख और दुख दोनों का कारण है ज्ञान भी सुख और दुख दोनों का कारण है मोह से युक्त ज्ञान दुख का कारण है और मोह से रहित ज्ञान सुख का कारण हैकल कल करने वाला कलकी कहलाता है। कलकी एक राजा है। जो धर्म का विनाश करता है। जो आज की बात कल के लिए टाल देता है वह अपना ही विनाश करता है । अथवा जो कल कल अर्थात कलह करता है वह अपनी आत्मा का ही अहित करता है। 

आचार्य श्री ने कहा स्मृति और विस्मृति दोनों ज्ञान की पर्याय हैं ज्यादा स्मरण रखना भी घातक होता है हर बात याद रखने से आदमी पागल हो जाता है इसलिए कुछ बातों को भुलाना पड़ता है विस्मरण भी सुख शांति का कारण होता है जब सब बातें भूल जाते है तब नींद अच्छी आती है जब संतान होती है तो कुछ क्षण के लिए सुख मिलता है लेकिन 1 दिन बाद चिंता लग जाती है भविष्य की इसीलिए संतान से सुख और दुख दोनों मिलते हैं हट पूर्वक पुरुषार्थ करने से सफलता नहीं मिलती यदि मिल भी जाए तो शांति नहीं मिलती है जब पाप कर्म का तीव्र उदय हो तब पुरुषार्थ नहीं कर पाते हैं जैसे कपड़े को सुखाने के लिए निचोड़ ते हैं वैसे ही आत्मा से कर्मों को सुखाने के लिए एवं कसाय को निकालने के लिए तपस्वी जैन अपने मन को निचोड़ते है।

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