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आचार्य श्री विभव सागर, आचार्य श्री विनम्र सागर, आचार्य श्री विहर्ष सागर जी महाराज संसघ सानिध्य में.. श्रमण मुनि विजयेश सागर जी की 12 वी मुनि दीक्षा जयंती 26 फरवरी को.. इधर आचार्य श्री विमर्श सागर एवं नवोदित उपाध्याय विरंजन सागर का हुआ बड़ामलहरा में वात्सल्य मिलन..

 जैन नन्हें मंदिर में आज मनाई जाएगी 12वीं मुनि दीक्षा

दमोह। 26 फरवरी दिन रविवार को आचार्य श्री विभव सागर जी महाराज, आचार्य श्री विहर्ष सागर जी महाराज और आचार्य श्री 108 विनम्र सागर जी महाराज संसघ सानिध्य में श्रमण मुनि विजयेश सागर जी महाराज की 12वी मुनि दीक्षा जयन्ती मनाई जाएगी। 
दमोह की धरती पर श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन नन्हें मंदिर में त्रय आचार्य ससंघ के साथ विराजमान है उसी संघ में श्रमण मुनि विजयेश सागर जी महाराज को सन् 2012 में सोनागिर सि़द्धक्षेत्र पर 27 फरवरी के दिन सूरिगच्छाचार्य आचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने अपने करकमलों से मुनि दीक्षा प्रदान की थी। सन् 2012 से मुनि श्री परमपूज्य तीर्थरक्षक शिरोमणी वात्सल्यमूर्ति राष्ट्रसंत आचार्य श्री 108 विहर्ष सागर जी महामुनिराज के साथ धर्म की प्रभावना एवं आत्मा की प्रभावना करने में संलग्न है। आप सभी सुबह 8ः30 बजें नन्हें मंदिर जैन धर्मशाला पहुंचकर धर्मलाभ अर्जित करे।

 आचार्य श्री विमर्श सागर एवं  नवोदित उपाध्याय विरंजन सागर का हुआ बड़ामलहरा में वात्सल्य मिलन

बड़ामलहरा। मनुष्य जब जन्म लेता है तो नेत्र (चक्षुओं) के साथ जन्म लेता है, जन्म के साथ जो चक्षु प्राप्त हुए हैं आपका हित में भी कारण हो सकते हैं अथवा वें नेत्र आपका अहित भी कर सकते हैं, किंतु भगवान की वाणी को सुनकर प्राणी को जो धर्म चक्षु / ज्ञान चक्षु प्राप्त होते हैं वह मनुष्यों का हित ही करते हैं, अतः जन्म से प्राप्त हुए नेत्रों को पाकर प्राणियों को ज्ञान चक्षु धर्म चक्षु को प्राप्त करना चाहिए । 

उपरोक्त उदगार बड़ामलहरा में विराजमान  बुंदेलखंड गौरव, भावलिंगी संत, राष्ट्रयोगी, आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ने अपने प्रवचन में कहे । आचार्य श्री ने धर्मसभा में कहा कि भव भ्रमण के मार्ग अनेक हैं लेकिन भव अर्थात संसार से छूटने का मार्ग एक ही है, वह है- मोक्षमार्ग । वह मोक्षमार्ग कहां प्राप्त होगा, वह मोक्षमार्ग आपको निर्ग्रंथ वीतरागी गुरु के चरणों में ही प्राप्त होगा। आचार्य श्री ने कहा कि आप अपने कुटुंब परिवार के सदस्यों में एक ऐसे व्यक्ति को खोजना जिसने अपने मोह को जीत लिया हो। आप खोजते ही रहोगे किंतु आपको अपनों के बीच में कहीं मोह को जीतने वाला एक ही व्यक्ति नहीं मिलेगा क्योंकि आप जिनके बीच रहते हैं वे सब के सब मोही जीव हैं। इसलिए भैया मैं कहता हूं मोहमार्गी मत बनो , जिनागम मार्गी - जिनागम पंथी बनों ।
 पंकज जैन व राजेश रागी ने बताया कि इस मौके पर आचार्य श्री का 25 से अधिक पिच्छीधारियों के साथ नगर बड़ा मलहरा में हुये प्रवेश के समय नवोदित उपाध्याय परमेष्ठी जनसंत मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज ससंघ ने अगवानी की और दोनों संघो का परस्पर वात्सल्य मिलन हुआ।

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