संबंध के बिना मानव जीवन अधूरा है आचार्य निर्भय सागर’
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा जिसका आचार, विचार, व्यवहार और वाणी सुंदर है वह दुनिया में सबसे सुंदर है ,भले ही शरीर कुरूप क्यों ना हो । स्वरूप को देखने वाले रूप को नहीं देखते है, वे अकेले में बैठ कर निजी से संबंध बनाते है । खुद से संबंध बनाने वाले खुद ही खुदा बन जाते हैं । वे स्वस्थ सुखी हो जाते है। दूसरों से संबंध बनाने पर एक ना एक दिन सबसे जुदा हो जाते है । जुदा होने पर हर प्राणी दुखी होते हैं इसलिए दूसरों से नहीं बल्कि खुद और खुदा से संबंध बनाना सुखी बनने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। संबंध के बिना मानव जीवन अधूरा है इसी लिए हर मानव संबंध बनाता है। मानव का संबंध मानव के साथ-साथ प्रत्येक प्राणी और प्रकृति से भी होता है। जो प्रत्येक प्राणी, प्रकृति से मधुर संबंध बनाकर रहता है वह मानव नहीं महामानव है।
आचार्य श्री ने कहा संबंध बनाए बिना जिंदगी जीना पशु तुल्य है, संबंध के बिना मानव मायूस बना रहता है । मानव यदि विवेक बुद्धि से हीन होकर एवं अति मोह से युक्त होकर संबंध स्थापित करता है तो अपने स्वभाव, कर्तव्य और हित हित को भूल कर अपराध के मार्ग पर चला जाता है, मोह अंधा नासमझ और पुरुषार्थ हीन बना देता है। मोह से ग्रसित शूरवीर योद्धा भी बलहीन होकरपरास्त हो जाता है। मोह मन से उपजता है, मन को जीत लेने पर मोह परास्त हो जाता है । मोह सोने की बेडी का बंधन है । मोहे सोने की वीडियो होने से सब को अच्छा लगता है लेकिन अंत बुरा होता है। मोह भटकाता है ,मंजिल तक नहीं पहुंचने देता है ।मोहे का पर्दा आते ही मंजिल ओझल हो जाती है। दृढ़ संकल्प से मोह को जीता जाता है और मंजिल को प्राप्त किया जाता है।
आचार्य श्री ने कहा पुरुषार्थ खेती है ,सफलता उसकी फसल है ,आनंद उसका फल है। सफलता मिलने पर सभी जगह नाम होना उसकी ख्याति है ,दूसरों के द्वारा गुणों की प्रशंसा होना ही पूजा है। घर में रहने वाला व्यक्ति यदि धर्म से जुड़ा रहता है तो वह भी मोक्ष मार्गी है। साधु को धर्म के लिए समय निकालना सरल है ,लेकिन गृहस्थ के लिए अपने दैनिक कार्यों से धर्म के लिए समय निकालना कठिन होता है। समय की कीमत पहचानना चाहिए, जो समय को पहचानता है वह स्वयं को परमात्मा को और धर्म ग्रंथ को पहचान रहा है।
आचार्य श्री ने कहा कर्तव्य का पालन करना पूजा है ,घर की झाड़ू पोछा करना ,भोजन बनाना ,व्यापार करना ,परिवार का लालन पालन करना एक कर्तव्य है । यदि यह नौकरों से ना करा कर सावधानी पूर्वक स्वयं किया जाता है तो धर्म है ,पूजा है ।यदि नौकरों से कराते हैं तो अधर्म है ।यदि पुरुष अपनी पत्नी को धार्मिक कार्यों में साथ ले जाकर दान पूजा के कार्य करता है तो घर में सुख शांति समृद्धि ज्यादा होती है और रोग शोक भय चिंता दूर होती है।


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