Header Ads Widget

यदि साधु संत निस्वार्थ दें सम्यक उपदेश तो, समाज ही क्या पूरी दुनिया बदल सकती है.. वैज्ञानिक संत निर्भय सागर जी महाराज.. आचार्य श्री के सानिध्य में सिद्ध चक्र महामंडल विधान पत्रिका का विमोचन..

सिद्धचक्र महामंडल विधान हेतु पत्रिका का विमोचन..

दमोह। नगर के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज संघ सहित चातुर्मास कर रहे हैं। आचार्य श्री के वर्षा योग के दौरान विभिन्न धार्मिक आयोजनों का दौर सोशल डिस्टेंस और कोरोना काल को ध्यान में रखते हुए किया जाता रहा है। इसी कड़ी में अब दीपावली के बाद 21 नवंबर से श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन होने जा रहा है।

जिसके लिए आज आचार्य श्री के ससंघ सानिध्य में विधान पत्रिका का विमोचन मुख्य आयोजक अंकित जैन टडा परिवार द्वारा किया गया। इस मौके पर समाज के वरिष्ठ जनों एवं नन्हे मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों की उपस्थिति रही।  इस अवसर पर 22 नवंबर को आचार्य श्री निर्भय सागर महाराज एवं संघ का शिक्षिका परिवर्तन समारोह भी आयोजित किया जाएगा।


  आचार्य श्री निर्भय सागर महाराज के मंगल प्रवचन..
वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा अब समाज के बीच में साधु संतों को चिकनी चुपड़ी और मीठी मीठी बातें करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि चिकनी चुपड़ी बातें सुनते सुनते समाज के लोगों में काई लग गई है । जिससे समाज फिसल फिसल कर गिर रही है और मीठी मीठी बातें सुनते सुनते शुगर की बीमारी से समाज बीमार पड़ रही है ।अतः ऐसे प्रवचनों की जरूरत है जिससे समाज की काई निकल जाए और डाय बिटीज की बीमारी से मुक्त हो जाए । आचार्य श्री ने कहा हवाएं मौसम का यदि रुख बदल सकती हैं। तो दुआएं भी मुसीबत के पल बदल सकती हैं ।

आचार्य श्री ने कहा आज दुनिया के लोग भक्ति पूजा आराधना करके देवी देवताओं अल्लाह खुदा और भगवानों को प्रसन्न करते हैं ,लेकिन अपने कर्म नहीं सुधारते ,अन्याय ,अत्याचार, हिंसा आदि पाप ना छोड़कर  अपनी आत्मा को  प्रसन्न नहीं करते हैं और ना अपने परिजनों को प्रसन्न करते हैं ,इसीलिए प्रत्येक आत्मा दुखी हैं ,समाज में अशांति है ,देश में विघटन है ।यदि न्याय नीति सत्य अहिंसा प्रेम वात्सल्य रूप धर्म को अपनाया जाए तो आत्मा परिवार  और समाज प्रसन्न होती है ।आचार्य श्री ने कहा धर्म पुरुषार्थ में प्रदर्शन नहीं आत्मदर्शन होना चाहिए । प्रदर्शन की अपेक्षा आत्मदर्शन श्रेष्ठ होता है । लेकिन आज धर्म के नाम पर प्रदर्शन ज्यादा हो रहा है इसलिए धर्म के नाम पर लड़ाई झगड़ा भी हो रहा है। इस प्रदर्शन ने धर्म को राजनीति का मंच बना दिया है। युवाओं को धर्म के मार्ग से भटका दिया है। देश और समाज को टुकड़ों में बांट दिया हैै।

आचार्य श्री ने कहा भ्रम को छोड़कर प्रेम को अपनाओ ।भ्रम संसार में भ्रमण कराता है, पराजय  दिलाता है ,संगठन में विघटन कराता है । जबकि प्रेम विजय दिलाता है, विगठित लोगों को संगठित कर देता ।जहां धर्म मूल्यवान  है, वहां धन मूल्य हीन है ।जहां सरस्वती है वहां लक्ष्मी बिना बुलाए आ कर घड़ी रहती है। आचार्य श्री ने कहा आंखों से पर पदार्थ दिखता है निज  पदार्थ नहीं । निज परमात्मा  प्रज्ञा चक्षुऔ से दिखता है ,चर्म चक्षुओं से नहीं। इसलिए ज्ञान चक्षु को खोल कर अपने परमात्मा को देखने का प्रयास करना चाहिए।

Post a Comment

0 Comments