सन्तों के दूर से ही दर्शन करें- आचार्य श्री निर्भयसागर
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा कि 1 अगस्त से एक सप्ताह तक विश्वस्तन पान सप्ताह मनाया जाता है। इसी सप्ताह में रक्षाबंधन पर्व आया है ऐसी स्थिति में यह पर्व फीका ही नही बल्कि अस्तित्वहीन हो गया है। इस लिये प्रत्येक बहिन पर्यावरण की रक्षा शिशु की रक्षा और कोरोना महामारी से रक्षा हो इसी भावना से अपने घर मे ही रक्षाबंधन पर्व मनाये। वर्चुयल राखी प्रसित करें।वात्सल्य का यह पर्व वात्सल्य के रूप में ही रहने दे इसे वासना का रूप न दे यह भाई बहिन के पवित्र प्रेम का पर्व है। दो मित्रो के प्रेम का पर्व है अथवा पति पत्नी के प्रेम का पर्व है है,यह रक्षाबंधन पर्व रक्षा का पर्व है। चिकित्सक रोगी की रक्षा कर रहे है, सैनिक देश की रक्षा कर रहे है और हम देशवासी सुरक्षित है हमें यह पर्व सैनिक और चिकित्सक की रक्षा के लिये समर्पित कर देना चाहिये। इस पर्व को बनाते समय बहुत सावधानी रखने की जरूरत है। सावधानी के रूप में मास्क लगाए, घर में ही रहे यदि किसी से मिलते है तो हाथ न मिलाये, बाजार की बनी वस्तु न खायें, हाथ धोकर अपने हाथ से बनी वस्तु का ही सेवन करें।
सन्तो के दूर से ही दर्शन करें। प्रातः काल स्वाध्याय के बीच आचार्य श्री ने कहा पिता घर के नायक होता है,आचार्य सघ के नायक होते है, प्रधान मंत्री देश का नायक होता है। ये नायक देश, धर्म और समाज के नायक बने खलनायक न बने। आचार्य के लक्षण बताते हुये उन्होंने कहा जो संसार के विषय भोगों से विरक्त होते है आचार-विचार में सर्वश्रेष्ठ, अनुभव से परिपक्व, सूर्यवीर, शेर के समान निर्भीक, आकाश के समान निर्लेप, शिष्यों के ऊपर उपकार करने में तत्रपर्य और निर्दोष चर्या के धारी आचार्य होते है। आचार्य भी देव कहलाते है क्योंकि वे शिष्यों को ज्ञान, सयंम, चारित्र, मोक्ष प्रदान करते है इसलिए देव कहलाते है।
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