चंदन छट का उपवास कोरोना से मुक्ति दायी..
आचार्य श्री ने कहा दिगम्बर मुनि को भगवान की तरह पूजा जाता है। क्योकि वे त्याग तपस्या करके खुद को भगवान बनाने की साधना करते है, दिगम्बर सन्तो का हद्धय नवनीति से भी अधिक कोमल होता है। नवनीति तो स्वयं तप्त होने पर पिघलता है, लेकिन सन्तो का हदय दुसरो के दुःख सन्ताप्त को देखर पिघल जाता है, दिगम्बर सन्त की कषाय जल की रेखा के समान ततकाल मिट जाने वाली होती है। आचार्य श्री ने कहा विषय भोग भोगने के बाद और संसार के जाल में फंसने के बाद वैराग्य प्राप्त हो ऐसा कोई नियम नही है क्योंकि जाल में फंसे हुये भोगियों के दुःख को देखकर विना भोग ही वैराग्य हो सकता है। शिवलिंग की आराधना संसार बढ़ाने के लिए की जाती है क्योंकि संसार की उत्तपत्ति का कारण शिवलिंग को माना गया है जबकि जैन धर्मानुयायी संसार को बढ़ाना नही चाहते बल्कि घटाना चाहते है। जिनलिंग धारण करने से और उनकी पूजा करने से संसार घटता है और मुक्ति का द्वार खुलता है। इसलिए जैन धर्म मे जिनलिंग की पूजा की जाती है।
दमोह। जैन धर्मानुसार आज श्रावण कृष्ष्णा छट को अधिकांश महिला चंदन छट के रूप में व्रत उपवास करती है। वैज्ञानिक संत आचर्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने चंदन छट का महत्व बताते हुए कहा जो महिलाएँ चंदन छट का व्रत करती है वे निरोगी होती है एवं घर मे सुख समृद्धि बढ़ती है। गुप्त रीति से अथवा छल कपट से किये गये पापों का नाश होता है। इस बार सभी महिलाएँ कोरोना महामारी को दूर करने हेतु व्रत, उपवास करें और चन्द्रप्रभु भगवान की आराधना करें। चंदन छट का उपवास एवं पूजन विधि घर मे बैठकर ही करे। जो विषय कषाय से ऊपर उठकर भक्ति आराधना और व्रत, उपवास करता है उसी की धार्मिक क्रिया शुभ फलदायी होती है।आचार्य श्री ने कहा गाठ चाहे शरीर की हो या मन की रस्सी की हो या लकड़ी की सभी खतरनाक होती है, शरीर की गांठ, केसर या टयूमर की कहलाती है वह गांठ जीवन लीला समाप्त कर सकती है, इसलिये उसे घर भेजकर भी आपरेशन कराकर हटाया जाता है क्योंकि जान बची सो लाख उपाय। मन की गांठ क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषायों की होती है यह मन की गांठ डिप्रेशन, हाई ब्लेडप्रेशर एवं ह्रदय रोग पैदा करती है। मन की गांठ उपदेश सुनने से और धर्म ध्यान करने से खुलती है। रस्सी में गांठ पड़ जाने पर पानी खींचते समय घिरी रस्सी हट जाती है जहां गांठ होती है। वैसे ही जिसके मन मे गांठ होती है वह मोक्षमार्ग की घिरी से उतर कर दुःख के मार्ग पर उतर जाता है इस लिये मन मे पड़ी कषाय की गांठ को पहले खोलना चाहिये फिर व्रत, उपवास करना चाहिए और दीक्षा लेनी चाहिये।
आचार्य श्री ने कहा दिगम्बर मुनि को भगवान की तरह पूजा जाता है। क्योकि वे त्याग तपस्या करके खुद को भगवान बनाने की साधना करते है, दिगम्बर सन्तो का हद्धय नवनीति से भी अधिक कोमल होता है। नवनीति तो स्वयं तप्त होने पर पिघलता है, लेकिन सन्तो का हदय दुसरो के दुःख सन्ताप्त को देखर पिघल जाता है, दिगम्बर सन्त की कषाय जल की रेखा के समान ततकाल मिट जाने वाली होती है। आचार्य श्री ने कहा विषय भोग भोगने के बाद और संसार के जाल में फंसने के बाद वैराग्य प्राप्त हो ऐसा कोई नियम नही है क्योंकि जाल में फंसे हुये भोगियों के दुःख को देखकर विना भोग ही वैराग्य हो सकता है। शिवलिंग की आराधना संसार बढ़ाने के लिए की जाती है क्योंकि संसार की उत्तपत्ति का कारण शिवलिंग को माना गया है जबकि जैन धर्मानुयायी संसार को बढ़ाना नही चाहते बल्कि घटाना चाहते है। जिनलिंग धारण करने से और उनकी पूजा करने से संसार घटता है और मुक्ति का द्वार खुलता है। इसलिए जैन धर्म मे जिनलिंग की पूजा की जाती है।
आचार्य श्री ने कहा भारतीय सस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक अधिकार दिए गए, नारीयो को देवी के रूप में पूजा जाता है, घर का मालिक बना दिया जाता है, इसलिये समांतर के अधिकार प्रसन्न ही नही उठता। राम से पहले सीता का, कृष्ण से पहले राधा का, पिता से पहले माता का नाम हमारे यहाँ पहले लिया जाता है। समानता के अधिकार की बात पाश्चत्य नारीओ ने उठाई है क्योंकि उन्हें सिर्फ भोग्या के रूप में देखा जाता है वहा की नारी कभी भी किसी भी पुरुष से विना शादी के सम्वन्ध स्थापित कर लेती थी और कभी भी तलाख देकर चली जाती थी, इस लिए उन्हें पुरुषों के समान अधिकार नही दिये जाते थे। अब अभियान चलाने के बाद भारतीय नारी के समान उन्हें समानता के अधिकार दिए जाने लगे।



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