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भगवान बांसूपूज्य को निर्वाण लाड़ू समर्पण तथा भगवान बाहुबली के महा मस्तकाभिषेक के साथ वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भय सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में दस दिवसीय पर्यूषण पर्व भक्ति भाव के साथ संपंन..

दस दिवसीय पर्यूषण पर्व भक्तिभाव के साथ संपंन..
दमोह। कोरोना संक्रमण काल से प्रभावित इस वर्ष के पर्यूषण पर्व नगर के पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हें मंदिर जी में विराजमान वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भय सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में भक्ति भाव के साथ निर्वध्न संपंन हुए। कोरोना काल की प्रशासनिक गाईड लाईन के चलते इस बार श्रावकों को मंदिरजी में पूजन अर्चन करने का सौभाग्य तो नहीं मिल सका लेकिन आचार्यश्री के निर्देशन में प्रत्येक वेदी पर आधे घंटे के अंतराल से बारी बारी से होने वाले श्रीजी के अभिषेक शांतिधारा का सौभाग्य मंदिर जी पहुचने वाले सभी श्रावकों को लगातार दस दिनों तक र्निविधन प्राप्त होता रहा।

  आचार्यश्री के निर्देशन में इस बार जैन धर्मशाला परिसर में भव्य समवशरण की रचना की गई थी। जिसमें चारों दिशाओं में विराजमान श्रीजी के अभिषेक एवं शांतिधारा का सौभाग्य भी प्रतिदिन पांच पांच श्रावक श्रेष्ठीजनों को अर्जित होता रहा। इधर सोशल डिस्टेंस को ध्यान में रखकर इस बार भगवान बाहुबली के वार्षिक अभिषेक कार्यक्रम को एक दिन के बजाए चार दिन का कर दिया गया था। जिससे लगातार चार दिनों तक पांच पांच श्रावकों को महा मस्तकाभिषेक तथा चार चार श्रावकों को शांतिधारा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

दस लक्षण पर्व के अंतिम दिन चैदस को प्रातः बेला में आचार्यश्री के सानिध्य में भगवान बाहुबली के महा मस्ताकाभिषेक के उपरांत भगवन बांसूपूज्य का मोक्ष कल्याणक निर्वाण लाड़ू चढ़ाकर मनाया गया। दोपहर में धर्मशाला परिसर में श्रीजी की अभिषेक शांतिधारा के साथ इस पर्यूषण पर्व सानंद संपंन हुए। बुधवार को प्रातः बेला में समवशरण में विराजामान चारों श्रीजी के अभिषेक शांतिधारा के बाद मूल बेदी में श्रीजी को विराजमान किया जाएगा। पर्यषण पर्व के दौरान लगातार दस दिनों तक आचार्यश्री निर्भयसागर महाराज के द्वारा तत्वार्थ सूत्र की सरल भाषा में वाचना एवं अर्थ समझने का अवसर भी श्रावकजनों को लगातार प्राप्त हुआ। 
सब कर्मों से मुक्त हो जाने का नाम मोक्ष- आचार्यश्री
दमोह। आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने पर्युषण पर्व की दसवें दिन कहा सब कर्मों से मुक्त हो जाने का नाम मोक्ष है। प्रत्येक आत्मा मुक्त इसी धरा पर होती है। लेकिन ऊर्ध्व गमन स्वभाब होने से लोक के अग्र भाग पर जाकर मुक्त आत्मा स्थित हो जाती है। जैसे सूर्य प्रकाश की किरणों को लैंस के द्वारा एक बिंदु पर केन्द्रीत कर दिया जाता है तो एक ज्योति जल जाती है वैसे ही जब संसारी आत्मा अपनी ऊर्जा को ध्यान के माध्यम से केन्द्रीत कर देती है तो दिव्य ज्ञान की ज्योति जल जाती है और समस्त कर्म जल जाते है। कर्मो से रहित ब्रह्म में लीन हो जाती है
वैज्ञानिक सन्त ने कहा ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करने से ऐड्स, बलात्कार, गर्भपात और छेड़छाड़ जैसी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। ब्रह्मचर्य का अर्थ करते हुए आचार्य श्री ने कहा ब्रह्मचर्य का अर्थ शील का पालन होता है। जो नारी अपने पति के अलावा अन्य पुरुष से गलत सम्बन्ध नही रखती वह शीलवान नाती कहलाती है। शीलबन्द वस्तु और शीलवान नारी विश्वसनीय और मूल्यवान होती है। विवाह पद्धति भी शील सयम की साधना है मन चले लड़के अपना जीवन तवाह करते है और शीलवान लड़कियों को भी गलत मार्ग की ओर प्रेसित करते है। जैसे जल को नीचे की ओर बहाना सरल है लेकिन ऊपर की ओर ऊर्ध्वगामी बनाना कठिन है वैसे ही अपनी ऊर्जा को विषय भोगो में लगाकर अधोगामी करके बहाना सरल है परंतु ब्रह्मचर्य धारण करके ऊर्ध्वगामी बनाना कठिन है।

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