प्रत्येक आत्मा का स्वरूप एक सा है, लेकिन रूप अलग-अलग- आचार्य श्री निर्भय सागर
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा रूप को नहीं स्वरूप को देखो रूप को नहीं स्वरूप को निखारो रूप को देखने से राग द्वेष मोह लड़ाई झगड़े होते हैं। स्वरूप को देखने से राग, द्वेष मोह आदि दूर होते हैं। प्रत्येक आत्मा का स्वरूप वास्तव में एक सा है लेकिन रूप सबका अलग अलग है। स्वरूप को देखने से गुण प्रकट होते हैं।
आचार्य श्री ने कहा कौवा भी काला होता है और कोयल भी काली होती है दोनों का रूप रंग एक जैसा है परंतु स्वरूप अलग अलग है। कोयल की आवाज सुरीली कर्णप्रिय और मन को शकुन देने वाली होती है जबकि कौवा की आवाज कानों को कर्कश लगती है और अपशकुन को देने वाली होती है। आत्म स्वरूप को वही देख सकता है जिसका आचार और विचार अच्छा होता है। अच्छे आचार विचार बुद्धिमानी की निशानी है। विचार बीज के रूप में होते हैं मानव जीवन रूपी खेत में जैसे विचारों के बीज बोएगे वैसे ही फल लगेंगे। बुरे विचारों से पाप के फल लगेंगे और अच्छे विचारों से पुण्य के फल लगेंगे। आचार्य श्री ने कहा संत का जीवन इसलिए पूज्य है क्योंकि उनके जीवन में अच्छे आचार विचार होते हैं। संत काया और माया की ओर नहीं देखते। जो काया और माया की ओर दृष्टि रखता है वह सच्चा संत नहीं हो सकता। काया और माया के मालिक बनने वाले अध्यात्म की दृष्टि से अज्ञानी कहीं जाते हैं। मोही व्यक्ति ही शरीर पर मालिक की तरह जमना चाहता है। निर्मोही वैरागी व्यक्ति अपनी आत्मा का मालिक होता है। उसी पर मालिक मालकीयत जमाता है। आचार्य श्री ने कहा जीवन में शास्त्रों से बोध प्राप्त करो। आत्मा को शुद्ध करो इंद्रियों का रोध करो क्रोध का त्याग करो। अबोध बालक की तरह ज्ञाता दृष्टा बनकर रहोगे तो एक दिन स्वयं के मालिक सब के मालिक बन जाओगे।
प्रवचन के पूर्व श्री सौरभ कुमार राहुल कुमार खजरी परिवार, देवेंद्र कुमार शैलेंद्र कुमार लॉट शॉप परिवार एवं अशोक कुमार राकेश कुमार कपिल जनरल स्टोर वालों के सौजन्य से आज कोरोना महामारी से मुक्ति पाने हेतु शांति महामंडल विधान विशेष मंत्रों से आचार्य निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में किया गया। पंडित सुरेश चंद जी प्रतिष्ठाचार्य ने विधान की क्रियाविधि संपन्न कराई। मुनि श्री शिवदत्त सागर जी, सोमदत्त सागर जी, गुरुदत्त सागर जी, एवं चंद्र दत्त सागर जी ने विधान के अर्घो का उच्चारण किया।
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