विषय भोगों के प्रति आसक्ति अन्याय मार्ग पर ले जाती है
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा दिल की वासना को प्रभु की उपासना एवं आत्मा की साधना से जीता जा सकता है । समझदार, ज्ञानी व्यक्ति वही है जो दूसरों के कहने के पूर्व ही अपनी गलती को स्वयं ही स्वीकार कर लेता है और गलती को सुधारने का पूर्ण प्रयास करता है । छोटे लोग बड़े लोगों को गलती का एहसास कराएं तो छोटों की बड़े लोगों के प्रति विनय भक्ति एवं मान मर्यादा नहीं रह जाती है । एक बार गलती होना सहज है लेकिन बार-बार वही गलती दोहराई जाना मूर्खता का प्रतीक है । किसी गलती के होने पर ज्ञानी जनों को अंदर से संताप पैदा होता है। जिसे संताप एवं पश्चाताप होता है वह एक ही गलती को बार-बार नहीं दोहराता है। विषय भोगों के प्रति आसक्ति व्यक्ति को अन्याय अत्याचार के मार्ग पर ले जाती है, शक्ति हीन बना देती है । बिना विचारे कार्य करने पर गलतियां होती है, पश्चाताप एवं असफलता हाथ लगती है.
आचार्य श्री ने कहा दूसरों के अवगुण देखने पर मौन रहना ही श्रेष्ठ है । यदि उसे अवगत कराना चाहते हो एवं दूर करना चाहते हो तो पहले स्वयं के अवगुणों को दूर करना चाहिए। अध्यात्म वादी सज्जन पुरुष दूसरों के अवगुणों को देखता है जानता है और जाने देता है उसमें हस्तक्षेप नहीं करता हैं यही समझदार लोगों की निशानी है।आदमी पद प्रतिष्ठा एवं धन संपदा से बड़ा नहीं होता बल्कि आचार विचार और मन से बड़ा होता है। आचार्य श्री ने कहा भगवान से और गुरु से मांगना नहीं पड़ता सिर्फ श्रद्धा से भक्ति आराधना करना पड़ती है इसी से सब कुछ मिल जाता है ।आचार्य श्री ने कहा युवाओं में शक्ति ,महिलाओं में भक्ति ,वृद्धों में युक्ति होने से वे अपने-अपने क्षेत्रों में महान होते हैं। विद्यार्थियों को बाहरी भौतिकता की हवा से, टीवी मोबाइल मे दिखाए जा रहे मन में विकार पैदा करने वाले कार्यक्रमों से एवं व्यसन आदि बुराइयों से बचना चाहिए तभी उनका कैरियर बन सकता है। समय बहुत कीमती है उसका सदुपयोग करना चाहिए । ज्ञानार्जन ,सेवा, परोपकार ,भक्ति आराधना आदि के शुभ कार्यों को करने से समय का सदुपयोग है।
आचार्य श्री ने कहा युवाओं को चाहिए कि वे राम के समान आचरण करें, दुराचारी रावण के समान नहीं ।युवतियों को चाहिए कि वे सीता के समान सील संयमवान बने सूप नखा के समान नहीं तभी देश की प्रगति और स्वयं की उन्नति हो सकती है। लोभ लालच विषय वासना ही बदनामी एवं दुर्गति का कारण है इसका एक रावण का ही उदाहरण काफी है। दूसरों के बाद विवाद से जितने दूर रहते हैं उतनी ही अधिक शांति मिलती है।यदि आपने किसी कार्य मैं सफलता मिलती है तो सफलता का श्रेय भगवान एवं अपने साथियों को देना चाहिए ।यदि असफलता मिलती है तो अपने पुरुषार्थ में कमी समझना चाहिए । इस प्रकार की सोच रखने से आत्मिक शांति मिलती है और जीवन प्रगतिशील बना रहता है।आंखों में करुणा ,चेहरे पर प्रसन्नता ,हृदय में वात्सल्य ,दिल में उमंग ,व्यवहार में सरलता, विचारों में निर्मलता वाणी में मिठास हो तो सब अपने लगते हैं और पराए भी अपने बनते हैं।


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