दुनिया में तीन प्रकार के भक्त होते है-आचार्य निर्भय सागर
दमोह। भगवान की जिसके द्वारा भक्ति की जाती है वह भक्त कहलाता है। भक्त बन कर भगवान बना जाता है। बिना भक्ति के आज तक कोई भगवान नहीं बन पाया है। गुरु भगवान की भक्ति करते हैं और शिष्य अपने गुरु की भक्ति करते हैं। अपने से अधिक गुण वालों की भक्ति की जाती है। भक्ति करने का उद्देश्य भगवान जैसे ज्ञान, सुख, बल आदि गुणों की प्राप्ति करने का होता है। गुण कहीं बाहर से नहीं आते बल्कि त्याग तपस्या करके अपने अंदर से ही उद्घाटित किए जाते है। यह उपदेश जैन धर्मशाला में आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने दिया।
आचार्य श्री ने कहा दुनिया में तीन प्रकार के भक्त होते है। पहले पत्थर के समान होते हैं, दूसरे कपड़े के समान होते हैं, तीसरे शक्कर के समान अर्थात जैसे पत्थर को पानी में डालने पर वह ऊपर ऊपर से गीला होता है अंदर सूखा रह जाता है। वैसे ही कुछ भक्त ऐसे हैं जो मंदिर जाते हैं, भक्ति करते हैं परंतु ऊपर ऊपर से भक्ति करते हैं अंदर से भक्ति में नहीं। जैसे कपड़ा पानी में डालने पर गीला हो जाता है और बाहर निकालते हवा धूप लगने पर सूख जाता है वैसे ही कुछ भक्त ऐसे हैं जो भक्ति के समय अंदर बाहर से गीले हो जाते हैं परंतु घर पहुंचते ही विषय कषाय की हवा धूप लगते ही भक्ति हीन हो जाति हैं। जैसे शक्कर को पानी में डालने पर वह अपने अस्तित्व की चिंता किए बिना ही घुल जाती है और पानी को मीठा कर देती है। वैसे ही कुछ भक्त सब त्याग कर अपना एड्रेस एड्रेस भी मिटा कर भक्ति में हमेशा के लिए रम जाते है। ऐसे भक्त सन्यासी बन जाते हैं।
इसके पूर्व चंद्र दत्त सागर जी महाराज ने कहा जन्म दिवस चेतावनी दिवस है। जो चेतावनी देता है कि तुम्हारी गांठ का 1 वर्ष और निकल गया है फिर भी तुम मौज मस्ती मना रहे हो। तुम्हारी उम्र बड़ी नहीं बल्कि घट गई है। अब चेत जाओ और प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करो इसी में जीवन की सार्थकता है।

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