आचार्य निर्भय सागर जी की शीतकालीन बाचना आज से
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज जबलपुर नाका दमोह जैन मंदिर में संघ सहित विराजमान है। प्रतिदिन प्रातः 8:45 बजे मंगल प्रवचन ,दोपहर 2:45 बजे से समयसार ग्रंथ की बाचना एवं शाम 5:30 बजे कल्याण मंदिर स्तोत्र की कक्षा चल रही है।
आचार्य श्री ने आज धर्म सभा में मंगल उपदेश देते हुए कहा जैन धर्म में अरहंत और सिद्ध दो परमात्मा होते हैं। सिद्ध परमात्मा बड़े हैं और अरिहंत परमात्मा छोटे हैं लेकिन अरिहंतो को नमस्कार पहले किया जाता है क्योंकि संसारी प्राणी स्वार्थी होते हैं ।अरिहंतो से हमारे स्वार्थ की सिद्धि होती है ।उनसे हमें उपदेश मिलता है। प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं । इसलिए हम उन्हें पहले नमस्कार करते हैं। अरिहंत परमेष्ठी अभी संसारी है । वे अभी कर्म रूपी बेड़ियों से जकड़े हुए हैं। अरहंत भगवान अनंत सुख से युक्त हैं फिर भी उन्हें बाधा देने वाले कर्म सुख को प्राप्त नहीं होने दे रहे। अरिहंत परमेष्ठी के पीछे अभी पचासी कर्म विपक्षी दल के रूप में लगे हुए हैं। उन्होंने अभी 63 कर्मों को जीता है । विपक्ष में पचासी कर्म है लेकिन 80 कर्म प्रकृतियां नाम कर्म की निर्दलीय बन कर बैठी है इसीलिए अरहंत की जीत हुई है। उनकी सरकार बन गई है। घातिया कर्म के नाश होने पर अघातिया कर्मा जली हुई रस्सी के समान हो जाते हैं इसी कारण अरहंत भगवान अनंत सुख को भोग पाते हैं।आचार्य श्री ने कहा मानव जीवन में तीन मोड़ आते हैं बाल्यावस्था तरुणावस्था और वृद्धावस्था। बाल्यावस्था में ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तरुण अवस्था में धर्म और कर्म करना चाहिए । वृद्धावस्था में संत बनकर मोक्ष प्राप्ति करने की साधना करना चाहिए। वृद्धावस्था घर में रहने की नहीं होती है बल्कि सन्यास धारण करने की होती है । यही वजह है कि सरकार भी 60 साल के बाद रिटायरमेंट दे देती है। वृद्धावस्था अर्ध मृतक के समान होती है। इसीलिए वृद्ध आदमी को दो लोग उठाते हैं जबकि मरे हुए मुर्दे को चार लोग उठाते हैं । वृद्धावस्था आने के पूर्व ही वैराग्य धारण करना चाहिए।
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