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जबलपुर नाका जैन मन्दिर में पांच मंगल कलश की स्थापना के साथ.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज की शीत कालीन वाचना शुरू..

 कलश स्थापना के साथ शीत कालीन वाचना प्रारंभ..

दमोह। जबलपुर नाका स्थित श्री दिगम्बर जैन पाश्र्वनाथ मंदिर में शुक्रवार को वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ससंघ के लिये शीतकालीन वाचना हेतु कलश स्थापना विशाल आयोजन में की गई। जिसमें जबलपुर नाका की सकल दिगम्बर जैन समाज ने आयार्च से शीत कालीन वाचना जबलपुर नाका मंदिर में करने का आग्रह किया।

इस अवसर पर आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा कि मुनि महाराज तीन योग को धारण करते है। शीत योग,ग्रीस्म योग और वर्षा योग। वर्षा योग में कितनी भी परेशानी हो कुछ भी हो मुनि महाराज को चार माह का चर्तुमास व्यतीत करना पड़ता है। सिर्फ एक रिद्धी धारी मुनि जिन्हे चारण रिद्धीधारी मुनि कहा जाता है, दूसरे मुनि परिहार विशुद्धी संयम वाले मुनियों को प्रतिदिन दो कोस की यात्रा करना अनिवार्य है। वे चर्तुमास करेंगें भी तो दो कोस जायेंगें और आ जायेंगे उन्हे बिहार करना जरूरी है। 


मंगल कलश के संबंध में आचार्य श्री ने कहा कि हम जब कोई आयौजन करते है तो मंगल सूचक है कि कोई भी धार्मिक, समाजिक या कोई भी अच्छा कार्य करते है,तो मांगलिक कार्यक्रम के पूर्व में मंगलाचरण होता है और मांगलिकचीजो की स्थापना और मांगलिक कार्य के संबंध में कुछ न कुछ क्रिया की जाती है। शीत कालीन वाचना या शीत कालीन चतुर्मास एक मंगल गोचर कहलाता है। 
आचार्य श्री ने कहा कि चार मंगल होते है अरिहंत,सिद्ध,साहू मंगलम, केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलम। दो प्रकार के मंगल है आगम मंगल और नौ आगम, मंगल, बाल कन्या के संबंध में बताया कि बालकन्या के सिर पर कलश हो तो डबल मंगल हो गया ओर यदि उसमे आम के पत्ते लगे हो तो और मंगल हो गया। 

आचार्य श्री ने धर्मसभा में प्रवचन के माध्यम से मंगल कलश के संबंध में कई धार्मिक जानकारीयां दी। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री गुरूदत्त सागर जी महाराज,मुनि श्री सुदत्त सागर जी,मुनि श्री शिवदत्त सागर जी तथा छुल्लक श्री चन्द्रदत्त सागर जी महाराज ने भी सभी को शीत कालीन वाचन एवं कलश स्थापना के बाद प्रतिदिन चलने वाली क्लास एवं अन्य धार्मिक आयोजन के संबंध में बताया कि श्रावकों को इस अवसर का लाभ कैसे लेना चाहिये।

मंदिर कमेटी के महामंत्री सुधीर विद्यार्थी ने बताया कि कलश लेने का सौभाग्य जिसमें प्रथम कलश जो वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज नाम का कलश जिसका सौभाग्य डाॅ.आरके जैन को प्राप्त हुआ। दूसरे, तीसरे, चोथे तथा पांचवे कलश की स्थापना का सौभाग्य डाॅ जेके जैन, मोतीलाल गोयल, संजय जैन नीलम टेडर्स तथा विनय मलैया को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम का सफल संचालन डाॅ आशीष जैन ने किया। सौरभ विद्यार्थी की रिपोर्ट

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