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श्री सिद्ध चक्र महामंडल विधान के चौथे दिन.. सौधर्म इंद्र के साथ सिद्धों की आराधना करके श्रावक जनों ने 128 अर्घ समर्पित किये.. दान का फल कभी खाली नहीं जाता, न दान करने वाला कभी दरिद्र होता है- आर्यिका श्री सकल मति माताजी

 सिद्धों की आराधना में 128 अर्घ समर्पित किए..

दमोह। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आर्शीवाद से अष्टानिका पर्व के पावन अवसर पर आर्यिकाश्री सकल मति माताजी के सानिध्य में चल रहे श्री सिद्धचक्र महा मंडल विधान के चौथे दिन सौधर्म इंद्र के साथ सिद्धों की आराधना करके श्रावक जनों ने पांचवी पूजा संपन्न करते हुए 128 अर्घ समर्पित किये।

 जैन धर्मशाला में सजाए गए भगवान के भव्य समवशरण में सिद्ध भक्ति करते हुए प्रातः बेला में श्री जी के अभिषेक उपरांत शांति धारा करने का सौभाग्य मुकेश कुमार अनिल जैन परिवार एवं गिरीश नायक परिवार को प्राप्त हुआ। माता जी के मुखारविंद से शांति धारा उपरांत भगवान को छत्र तथा चँवर समर्पण करने का सौभाग्य महेश बड़कुल एवं शीलरानी जैन परिवार ने अर्जित किया। 

 प्रतिष्ठाचार्य गौरव भैया सांगानेर एवं अरिंजय वर्धन जैन दमोह के साथ युवा संगीतकार प्रथम जैन ने विधान पूजन संपन्न कराया। शाम की महाआरती का सौभाग्य जिनेन्द्र जैन नितेश जैन सौधर्म इंद्र परिवार को प्राप्त हुआ। लहरी गली से महा आरती शोभा यात्रा निकाली गई तथा जैन धर्मशाला पहुंचकर महा आरती संपन्न की गई इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं बच्चों सहित श्रद्धालु जनों की मौजूदगी रही। विधान के पांचवें दिन शनिवार को 256 अर्घ समर्पित किए जाएंगे।
दान का फल कभी खाली नहीं जाता- आर्यिका श्री
विधान अवसर पर दान की महिमा बताते हुए आर्यिका श्री सकल मति माताजी ने कहा कि दान देने वाला ना तो कभी दानव बनता है और न कभी दरिद्र होता है। लेकिन दान हमेशा पात्र व्यक्ति को करना चाहिए और दान का कभी दंभ नहीं करना चाहिए।

 माताजी ने कहा कि एक मंदिर बनवाने के पुण्य से 100 गुना अधिक पुण्य पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार कराने से प्राप्त होता है। अतः पुराने मंदिर के जीर्णोद्धार को प्राथमिकता देना चाहिए वही जहां कहीं भी पात्र जरूरतमंद नजर आए उसे आहार औषधी दान आदि देने में पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि दान का फल भविष्य के साथ आने वाले जन्मों में भी प्राप्त होता चला जाता है। आज भी हम सब यहां पर विधान करके जो पुण्य अर्जन कर रहे हैं उसकी वजह पिछले जन्मों में किया गया दान पुण्य ही है जो आज हमें अवसर प्राप्त हो रहा है।

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