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समवशरण में विराजमान श्रीजी के साथ अष्टानिका पर्व पर सिद्धों की अराधना.. सिद्ध चक्र महामंडल विधान में तीसरे दिन 96 अर्घ्य समर्पित.. धर्म करने का अवसर कभी नहीं छोड़ना चाहिए.. भक्ति से बड़े बड़े संकट टल जाते हैं.. आर्यिका श्री सकल मति माताजी

 सिद्धचक्र महामंडल विधान में 96 अर्घ्य समर्पित

दमोह। दिगंबर जैन पारसनाथ नन्हे मंदिर जी में चल रहे श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के तीसरे दिन श्रावक जनों ने भक्ति भाव के साथ सिद्धों की आराधना करते हुए 64 वृद्धि विधान किया तथा 96 अर्घ्य समर्पित किए। इस अवसर पर आर्यिका श्री सकल मति माताजी के सानिध्य एवं प्रवचन का लाभ भी सभी को प्राप्त हुआ।

 जैन धर्मशाला में सिद्धचक्र महामंडल विधान के तीसरे दिन प्रातः बेला में श्री जी के अभिषेक उपरांत शांति धारा का सौभाग्य श्रेयांश लहरी कीर्ति ड्रेसेस परिवार एवं अशोक जैन पिपरिया परिवार को प्राप्त हुआ। देव शास्त्र गुरु एवं नंदीश्वर दीप पूजन उपरांत सिद्धों की आराधना करते हुए आरिका श्री के सानिध्य में 32 अर्घ्य समर्पित किए गए। इसके बाद चतुर्थ पूजा के साथ 64 रिद्धि विधान करते हुए 64 अर्घ्य भी समर्पित किए गए।

 इस तरह विधान के तीसरे दिन कुल समवशरण में विराजमान श्री जी के समक्ष 96 अर्घ्य ब्रह्मचारी गौरव भैया सांगानेर एवं अरिंजय बर्धन जैन के के निर्देशन में चढ़ाए गए। संगीतमय विधान का पाठ प्रथम जैन वा टीम तथा कार्यक्रम का संचालन नन्हे मंदिर कमेटी के अध्यक्ष गिरीश जैन ने किया। इस अवसर पर विधान के महा पात्रों के साथ इंद्र इंद्राणीयो ने भक्ति करते हुए श्री जी की आराधना की। चौथे दिन शुक्रवार को 128 अर्घ समर्पित किए जाएंगे। आज संध्या कालीन आरती का सौभाग्य अरिंजय बर्धन जैन परिवार को प्राप्त हुआ।

धर्म करने का अवसर कभी नहीं छोड़ना चाहिए-आर्यिका श्री
इस अवसर पर आर्यिका श्री सकल मति माता जी ने अपने मंगल प्रवचन में भक्ति की महिमा बतलाते हुए कहा कि भगवान तक पहुचने के लिए भक्त बनना आवश्यक है। उन्होंने एक राजा की भक्ति करके भविष्यवाणी को बदल देने की कथा सुनाते हुए कहा कि एक निमित्य ज्ञानी ने भविष्यवाणी की थी कि 4 दिन बाद राज सिंहासन पर बिजली गिरने से राजा की मौत हो जाएगी। जिसे सुनकर राजा ने फैसला किया कि जब मृत्यु होना ही है तो क्यों ना आखिरी 4 दिनों में भगवान की भक्ति कर ली जाए। इसके बाद राजा ने मंदिर में जाकर बड़े विधान का आयोजन किया और भक्ति भाव के साथ भगवान की पूजा अर्चना में लीन हो गया। इधर राज्य के मंत्री ने प्रजा को राजा की अनुपस्थिति का पता ना लगे इसलिए राज सिंहासन पर राजा का पुतला बैठा दिया। भविष्यवाणी के अनुसार 4 दिन बाद राज सिंहासन पर बिजली गिरी और राजा के पुतले के टुकड़े टुकड़े हो गए। 
इधर भगवान की भक्ति में लीन राजा जब 8 दिन बाद वापिस राज महल पहुंचा तो उसे राज सिंहासन पर बिजली  गिरने की घटना का पता लगा। 

उपरोक्त कथा सुनाते हुए आर्यिका श्री सकल मति माता जी ने स्पष्ट किया कि भक्ति से किस तरह से बड़े बड़े संकट टल जाते हैं इसके अनेकों उदाहरण पुराण ग्रंथों में देखने को मिलते हैं। सिद्ध चक्र मंडल विधान की महिमा बताते हुए माताजी ने कहा कि मैना सुंदरी ने किस तरह से अपने पति पर आए संकट पर विजय प्राप्त की थी यह सभी को पता है। उन्होंने जीवन को क्षणभंगुर बताते हुए कहा कि कोरोना काल के बाद हम सबको यदि धर्म करने का या अवसर मिला है तो इसका जरूर लाभ उठाना चाहिए तथा अपनी चंचला लक्ष्मी का भी उपयोग करना चाहिए क्योंकि कोरोना काल में लोग लाखों रुपए ऑक्सीजन और उपचार पर खर्च कर रहे थे लेकिन इस बात की कोई गारंटी देने वाला नहीं था कि जीवन बचेगा भी या नही। लेकिन वर्तमान में किए गए धर्म का भविष्य में फल मिलता ही है इसके अनेक उदाहरण हमारे धर्म शास्त्रों में लिखे हुए हैं अतः जब भी जहां भी धर्म करने का अवसर मिले उसे नहीं छोड़ना चाहिए और अपनी चंचला लक्ष्मी का उपयोग जरूर करना चाहिए।

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