रक्षाबंधन पर आचार्य निर्भय सागर के प्रेरक उदगार
दमोह। नगर के पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी मे
वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य रक्षाबंधन पर्व एवं 11 वे तीर्थकर श्रेंयासनाथ भगवान का मोक्ष कल्याण दिवस भक्ति भाव के साथ मनाया गया। इस अवसर पर श्रावक जनों ने अभिषेक पूजन पश्चात निर्वाण लाडू समर्पित किया।
अवसर पर वैज्ञानिक सन्त ने कहा हमारा देश पर्वो और त्यौहार का देश है। आज रक्षाबंधन पर्व खाने पीने का नहीं बल्कि धर्म, देश,समाज, सस्कृति, सस्कार, सन्त,पर्यावरण परिवार और प्रकृति की रक्षा का पर्व है। अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियों की रक्षा विष्णु कुमार ने की थी। इस लिये जैनधर्म में यह पर्व मनाया जाता है। जबकि देवासुर मनुष्यों का विनाश करने लगा था। इंद्र भी उससे परेशान होकर व्रहस्पति के पास पहुँचा था। व्रहस्पति ने एक धागा बांधकर रक्षा की थी इसलिए वैष्णव सम्प्रदाय में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है। दोनो सम्प्रदाय में यह पर्व वात्सल्य, कर्तव्य बोध, कुमार्गी को सद मार्ग दिखाने का असत्य पर सत्य की विजय का और धर्म वात्सल्य का प्रतीक है।
आचार्य श्री ने कहा जिसके ह्रदय में दया, करुणा, प्रेम, वात्सल्य, और परोपकार की भावना होती है वही रक्षा के लिये आगे आता है। शैतान के दिल मे रक्षा का भाव नही आता और धर्मात्मा के दिल मे नफरत का भाव नही आता । मुनि श्री शिवदत्त सागर जी, हेमदत्त सागर जी, सुदत्त सागर जी, सोमदत्त सागर जी, गुरुदत्त सागर जी सभी मुनि महाराजो ने अपना रक्षाबंधन पर्व पर विशेष उदबोधन दिया। क्षुल्लकं चन्द्रदत्त सागर जी ने संचालन किया।
दमोह। नगर के पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी मे
वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य रक्षाबंधन पर्व एवं 11 वे तीर्थकर श्रेंयासनाथ भगवान का मोक्ष कल्याण दिवस भक्ति भाव के साथ मनाया गया। इस अवसर पर श्रावक जनों ने अभिषेक पूजन पश्चात निर्वाण लाडू समर्पित किया।
अवसर पर वैज्ञानिक सन्त ने कहा हमारा देश पर्वो और त्यौहार का देश है। आज रक्षाबंधन पर्व खाने पीने का नहीं बल्कि धर्म, देश,समाज, सस्कृति, सस्कार, सन्त,पर्यावरण परिवार और प्रकृति की रक्षा का पर्व है। अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियों की रक्षा विष्णु कुमार ने की थी। इस लिये जैनधर्म में यह पर्व मनाया जाता है। जबकि देवासुर मनुष्यों का विनाश करने लगा था। इंद्र भी उससे परेशान होकर व्रहस्पति के पास पहुँचा था। व्रहस्पति ने एक धागा बांधकर रक्षा की थी इसलिए वैष्णव सम्प्रदाय में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है। दोनो सम्प्रदाय में यह पर्व वात्सल्य, कर्तव्य बोध, कुमार्गी को सद मार्ग दिखाने का असत्य पर सत्य की विजय का और धर्म वात्सल्य का प्रतीक है।
आचार्य श्री ने कहा जिसके ह्रदय में दया, करुणा, प्रेम, वात्सल्य, और परोपकार की भावना होती है वही रक्षा के लिये आगे आता है। शैतान के दिल मे रक्षा का भाव नही आता और धर्मात्मा के दिल मे नफरत का भाव नही आता । मुनि श्री शिवदत्त सागर जी, हेमदत्त सागर जी, सुदत्त सागर जी, सोमदत्त सागर जी, गुरुदत्त सागर जी सभी मुनि महाराजो ने अपना रक्षाबंधन पर्व पर विशेष उदबोधन दिया। क्षुल्लकं चन्द्रदत्त सागर जी ने संचालन किया।
इसके पूर्व श्रेंयासनाथ भगवान की प्रतिमा पर विशेष जिना भिषेक शांतिधारा, निर्वाण कांड के बाद निर्माण लाडू चढ़ाया गया। कोविड 19 को देखते हुए आहार दान की क्रिया को एवं पीछी में रक्षाबंधन (राखी) बांधने पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगया गया। इस अवसर पर प्रमुख पात्र श्रावक जनोंं की ही मौजदगी रही।
0 Comments