वैज्ञानिक संत ने प्रधानमंत्री को दिया साधुवाद..
दिगम्बर जैनाचार्य के सम्बंध में आचार्य श्री ने कहा कि जैन आचर्य श्यासन, वस्त्र, सोने आदि के सिंहासन एवं राज महल के त्यागी होते है। साधु में वीतरागता देखो, राग नही, नगन्यता का विरोध नही करो क्योकि नग्न साधु में त्याग, सयंम और भगवता झलकती है इस लिए विरोध करना है तो उन फिल्मी दुनिया के अभिनेत्री का विरोघ करो जिनके पर्दे में भी नँगापन दिखता है उस नन्गेपन को देखकर हमारे बेटा बेटी संस्कारहीन हो रहे है और व्यसनों में फस गये है। दिगम्बर मुनि उपासना के रूप होते है और वासना के नही। आचार्य श्री ने हर्ष व्यक्त करते हुऐ कहा कि जैन सिद्ध तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखर की मिट्टी और पानी को जन्म भूमि के शिलान्यास में लाकर समर्पित किया गया एवं जैन प्रति निधि के रूप में रवींद्रकीर्ति स्वामी (हस्तिनापुर), श्रवणबेलगोला से प्रतिनिधि एवं वहां के राजा को आमंत्रण किया गया।
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज अपने विशाल सघ के साथ दिगम्बर जैन धर्मशाला में चातुर्मास कर रहे है, आज उन्होंने उपदेश सभा में कहा की प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा हेतु अपनेे जीवन काल में सार्थक योगदान दिया है वह आने वाले समय में इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाया जाएगा। श्रवणबेलगोला में 12 वर्ष में होने वाले भगवान बाहुबली के महा मस्तकाभिषेक समारोह में वर्ष 2018 में शामिल होने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं रचित ग्रंथ भेंट करने की संस्मरण का जिक्र करते हुए आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा कि आज भी प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मैं मंदिर निर्माण शिलान्यास अवसर पर सम्मेद शिखर से श्रवण बेलगोला तक का जिक्र करके जो सर्व धर्म समभाव का परिचय दिया है वह अनुकरणीय है।आचार्य श्री ने समस्त भारत वासियों को एवं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सहित समस्त मंत्री मंडल को इस राम मंदिर के शिलान्यास पर शुभकामनाएं प्रेसित करते हुए मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। उन्होंने कहा मोदी जी एक लोह पुरुष है। वे देश की सेवा निस्वार्थ भाव से कर रहे है आगे भी करेगें। इसी के साथ आचार्य श्री ने यह भी कहा अयोध्या की रचना प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ के जन्म के पूर्व इंद्र की आज्ञा से कुबेर ने रचना की थी। 24 जैन तीर्थकरो का जन्म जैन आगम के अनुसार अयोध्या में ही होता है और मोक्ष सम्मेद शिखर विहार से होता है लेकिन काल दोष के कारण तीर्थकरों की जन्मभूमि आयोध्या श्रावस्ती, कौशाम्बी, चंद्रपुरी, सारनाथ, चम्पापुर (भागलपुर), कम्पिला जी, हस्तिनापुर, राजगृही, वनारस, मिथिलापुरी (नेपाल), कुंडलपुर (विहार) में जन्म हुआ है। ये सभी नगरी देवो द्वारा रचित होती है। कैलाश पर्वत (बद्रीनाथ), गिरनार जी (गुजरात), चम्पापुर आदि तीर्थ से मोक्ष प्राप्त किया है। अयोध्या में एक जैन मंदिर भी ऐसा बनना चाहिये जो पर्यटक एवं ऐतिहासिक हो जिसमें तीर्थकरों के जीवन व्रतांत अंकित हो।
दिगम्बर जैनाचार्य के सम्बंध में आचार्य श्री ने कहा कि जैन आचर्य श्यासन, वस्त्र, सोने आदि के सिंहासन एवं राज महल के त्यागी होते है। साधु में वीतरागता देखो, राग नही, नगन्यता का विरोध नही करो क्योकि नग्न साधु में त्याग, सयंम और भगवता झलकती है इस लिए विरोध करना है तो उन फिल्मी दुनिया के अभिनेत्री का विरोघ करो जिनके पर्दे में भी नँगापन दिखता है उस नन्गेपन को देखकर हमारे बेटा बेटी संस्कारहीन हो रहे है और व्यसनों में फस गये है। दिगम्बर मुनि उपासना के रूप होते है और वासना के नही। आचार्य श्री ने हर्ष व्यक्त करते हुऐ कहा कि जैन सिद्ध तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखर की मिट्टी और पानी को जन्म भूमि के शिलान्यास में लाकर समर्पित किया गया एवं जैन प्रति निधि के रूप में रवींद्रकीर्ति स्वामी (हस्तिनापुर), श्रवणबेलगोला से प्रतिनिधि एवं वहां के राजा को आमंत्रण किया गया।


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