आस्था सफलता की प्रथम सीढ़ी है- आचार्य निर्भय सागर
दमोह। नन्हे मंदिर में चातुर्मास कर रहे वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने विधान कर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा आस्था के रास्ते से निकलता है सफलता की मंजिल का रास्ता। यदि आस्था और रास्ता सही है तो मंजिल पास है। सही रास्ते से चलने पर मंजिल अवश्य मिल जाती है। सारी दुनिया आस्था के दम पर चल रही है। आस्था का दीप जिस दिन बुझ जाएगा उस दिन संसार में अंधकार फैल जाएगा अर्थात उस दिन सारा संसार समाप्त हो जाएगा। आस्था की ईटों पर जीवन की मंजिल खड़ी हुई है। आस्था के बिना ना संसार चलता है, ना मुक्ति का द्वार खुलता है..
आचार्य श्री ने कहा आस्था मुर्दे और पागल में नहीं होती है। यदि आपके अंदर जान है और ज्ञान हैं तो आपको श्रद्धानी बनना ही होगा क्योंकि मालिक को नौकर पर रोगी को डॉक्टर पर पति को पत्नी पर यात्री को ड्राइवर पर अपराधी को वकील पर विद्यार्थी को टीचर पर और एक पड़ोसी को दूसरे पड़ोसी पर इस प्रकार दुनिया के सभी लोगों को एक दूसरे पर विश्वास करना ही पड़ता है तभी यह दुनिया चल रही है। इस विश्वास का नाम ही आस्था है। आज लोग ऐसी आस्था ना जाने किस-किस पर रखकर चल रहे हैं। परंतु आश्चर्य है कि आज के इंसान को भगवान पर त्याग तपस्या संयम रूपी धर्म पर चलने वाले संतों पर आस्था पैदा नहीं हो पा रही है। परंतु ध्यान रहे धर्म और धर्म आत्माओं पर आस्था रखने से मुक्ति महल का रास्ता मिलता है।
आचार्य श्री ने कहा जब तुम संत और भगवंत के पास जाओ तो संदेह को छोड़ कर जाना और श्रद्धा जान और आचरण को प्राप्त कर के आना। यदि इंसान के अंदर से श्रद्धा निकल जाएगी तो इंसान पशुओं से भी गया बीता हो जाएगा या मुर्दे के अलावा कुछ नहीं बचेगा। आस्था के बिना दान पूजा भक्ति आदि धर्म कर्म सब व्यर्थ है। आस्था सफलता की प्रथम सीढ़ी है। मोक्ष महल की नींव है। मानव जीवन का श्रृंगार है। ज्ञानियों के गले का हार है। भगवान का दिया हुआ उपहार है। प्रवचन के पूर्व शांति धारा एवं शांति महामंडल विधान राजकुमार रानू खजरी वालों एवं पथरिया वाले परिवार की ओर से किया गया..


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