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जो राग से अनुराग की ओर, अनुराग से बैराग्य की ओर, बैराग्य से मोक्ष की ओर ले जाने की पावन प्रेरणा देता है वह कल्याण साहित्य है.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज..

 हिंदी मीडियम का विरोध नहीं होना चाहिए..आचार्य श्री

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला में विराजमान है। प्रतिदिन अपने शिष्यों को एवं उनकी सेवा में लगे व्यक्तियों को हितकारी मंगल उपदेश दे रहे हैं। मीडिया के माध्यम से जन जन तक उनके उपदेश पहुंच रहे हैं। आचार्य श्री ने आज समस्त मीडिया वालों को बहुत-बहुत शुभ आशीष दिया एवं उनके जीवन के मंगल कामना की। उन्होंने कहा मीडिया बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। हमारे देश के प्रधानमंत्री ने जो कक्षा 1 से 5 तक हिंदी मीडियम से शिक्षा का प्रावधान रखा है वह सराहनीय है यह पूरे देश में लागू होना चाहिए जिससे अलग-अलग प्रांतों के बच्चे भी राष्ट्रीय हिंदी भाषा जान सकें। हिंदी मीडियम के साथ अंग्रेजी का ज्ञान तो कराया ही जाएगा  इसलिए बच्चे आगे जाकर अंग्रेजी भी सहज ही सीख जाएंगे इसीलिए इस हिंदी मीडियम का विरोध नहीं होना चाहिए। 

आचार्य श्री ने कहा भारत का हिंदी साहित्य जन जन के कल्याणकारी होने से एवं आतंक की नहीं आस्था की बात  भारतीय साहित्य में होने से छीर के समान है और पश्चात्य साहित्य विषय कसाईओं से भरा होने से और अध्यात्म से रहित होने से छार के समान है। उन्होंने साहित्य की परिभाषा बताते हुए कहा हित से सहित जो है वह साहित्य है। हित का जो संपादक है वह साहित्य है। संस्कृति का जो उन्नायक है वह साहित्य है। सभ्यता का जो गायक है वह साहित्य है। सदाचार का जो अभ्युदय कारक है वह साहित्य है। संस्कार का जो संवाहक है वह साहित्य है। जिसके उपवन में गीत, गजल, कविता, मुक्तक, कहानी इत्यादि के माध्यम से मानवता की सुगंध बिखेरते हैं वह साहित्य है। 

आचार्य श्री  ने कहा जिसके हृदय सरोवर में करुणा, दया, प्रेम, वात्सल, स्नेह आदि रस उछलते हैं वह साहित्य है। जो हित अहित का बोध कराता है वह साहित्य है। जो जन्म से लेकर मृत्यु तक के गीत गाता है वह साहित्य है। जो राग से अनुराग की ओर, अनुराग से बैराग्य की ओर, बैराग्य से मोक्ष की ओर ले जाने की पावन प्रेरणा देता है वह कल्याण साहित्य है। साहित्य हिंदी का शब्द है। सभी भाषाओं में हिंदी और नारी के माथे में बिंदी सर्वाधिक महत्वपूर्ण। आचार्य श्री ने कहा बुढ़ापा कलयुग है। जवानी सतयुग है और बाल्यावस्था त्रेता युग है। बुढ़ापा कलयुग के समान होने से किसी को अच्छा नहीं लगता है। व्यक्ति के पूरे मर जाने पर शव को चार लोग उठाते और बुढ़ापा आ जाने पर जो लोग उठाते है क्योंकि बुढ़ापा अर्ध मृतक के समान होता है। इसलिए आधे मरे के समान बुढ़ापे को कहा है। यह कोरोना महामारी बुढ़ापे वालों को ज्यादा घातक हो रही है। यदि डायबिटीज कोलेस्ट्रोल एवं हृदय रोग की स्थिति हो तो वह कोराना वृद्धों को लेकर जाता है। कोरोना से बचने के लिए वृद्ध व्यक्तियों को योगा, धूप के सेवन, अच्छी निद्रा और डाइट पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

 आचार्य श्री के सानिध्य में एवं आशीर्वाद से प्रतिदिन एक परिवार के द्वारा कोरोना महामारी दुनिया से समाप्त हो इसके लिए जैन धर्म के महान मंत्रों से सहित शांतिनाथ महामंडल विधान पूजा का आयोजन 16 दिन तक किया जाएगा। इस विधान में सिर्फ एक ही परिवार सौजन्य करता होगा। मुनिराज मंत्रों का उच्चारण करेंगे एवं सौजन्य करता परिवार भगवान के सामने अष्टमंगल द्रव्यों को समर्पित करेगा। 

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