Header Ads Widget

तन के रोगी का उपचार दवाखाने में और मन के रोगी का उपचार पागलखाने में होता है.. शक का कोई उपचार नहीं होता.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज..

मन को मारे नहीं  बल्कि नियंत्रित करें- आचार्य श्री
दमोह। मानव जीवन में आत्मा राजा की तरह होता है मन राष्ट्रपति की तरह होता है और इंद्रियां मंत्री की तरह होती हैं।  इसीलिए मन को नियंत्रित करें मन को मारे ना। मन को विकसित करें संकुचित ना करें। मन के हारे हार है मन के जीते जीत इसीलिए मन से कभी हारना नहीं चाहिए मन का हरा व्यक्ति कभी विकास नहीं कर सकता और अपने कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता मन के नियंत्रण से बुद्धि का विकास होता है बुद्धि के विकास से धन का विकास होता है। परिवार में खुशहाली आती है समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है देश प्रगति के मार्ग पर बढ़ता है इसलिए मन को तनाव से राहत करें और मन को मरने ना दें।
यह मंगल उदगार वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला दमोह में चल रहे चातुर्मास के दौरान आज प्रातः कालीन स्वाध्याय के मध्य कहीं। उन्होंने कहा तन के रोगी का उपचार दवाखाने में होता है और मन के रोगी का उपचार पागलखाने में होता है और शक का कोई उपचार नहीं होता है। इसलिए सनकी और शकीले नहीं बनना चाहिए। तनाव व्यक्ति में क्रोध पैदा करता है डिप्रेशन में ले जाता है जीवन में अनेक परेशानियां खड़ी करता है और जिद्दी बनाता है इसलिए तनाव से बचकर जित मना बनना चाहिए जो मन को जीत लेता है वही जीत मना कहलाता है वही जिनेंद्र कहलाता है। जित मना के सामने कितनी भी परेशानियां आ जाएं तो भी वह उनका डटकर सामना करता है परेशानियों का सामना करना ही परिसह जय कहलाता है।
 आचार्य श्री ने कहा जीवन में समझदारी सामंजस्य समझौता  सहनशीलता और समायोजना यह 5 गुण जरूर आना चाहिए इन  गुणों से युक्त व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है और एक दिन महापुरुष बन जाता है इन गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन 10 मिनट योग ध्यान करते हुए अपने कार्य की समीक्षा एवं दिन भर के क्रिया कलापों पर समीक्षा जरूर करना चाहिए। परेशानी से जूझ रहे लोगों को अपने आचार विचार व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिए। श्रम करना सीखना चाहिए ऐसे व्यक्तियों को अपने परिजनों का सहारा लेना चाहिए एवं सलाह मशवरा जरूर करना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा आपने परिवार के प्रतिद्वंदी ना बन कर प्रेम वात्सल्यमई बनना चाहिए आचार्य श्री ने कहा प्रत्येक कार्य रुचि पूर्वक करना चाहिए रुचि पूर्वक किए गए कार्य में आनंद आता है। कठिनाइयां आने पर भी सामना करने का भाव बनता है

Post a Comment

0 Comments