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जिसका मन अपने कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए चहकता है.. उसकी किस्मत का सितारा आज नहीं तो कल चमकता है.. वैज्ञानिक सन्त आर्चाय श्री निर्भय सागर जी महाराज..

आर्चाय श्री निर्भय सागर महाराज के मंगल प्रवचन
दमोह। वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा कि गीत गाना संगीत बजाना असीम खुशी आनन्द, आस्था, निर्मलता एवं भक्ति का परिचायक है। जब तीर्थकरो का जन्म होता है, दीक्षा होती है, केवलज्ञान कल्याणक आदि होते है तब साढ़े बारह करोड़ के वाद्य यंत्र बजते है। इसी लिए भगवान की पूजा अभिषेक के समय मन्दिरो में संगीत बजाना आगम विरुद्ध नही है। जब संगीत बजता है तो रोता हुआ बच्चा भी हंसता है, जब बीन का संगीत बजता है तो नाग भी झूम उठता है। रोगी भी संगीत सुनकर अपना दुख दर्द भूल जाता है। इसी प्रकार भक्ति संगीत से विषय कषाय को भूल जाता है। 
आचार्य श्री ने कहा गांव की बच्चियां मासुमियत, भोलापन, मान मर्यादा, माता पिता की आज्ञा और सामाजिक कानून कायदे में रहती है एवं मेहनती होती है। इसी कारण वे स्वस्थ्य और सुंदर होती थी। लेकिन वर्तमान में बाहरी दुनिया की हवा लगने से शहरी वातावरण के सम्पर्क में आने से मोबाइल और टी.वी. के माध्यम से देश विदेश की जानकारी एवं विषयभोगो के जानकारी से उनके बड़े बड़े अरमान दिखाई देने लगे अव बे गांव में न रहकर शहरों में जाना चाहती है। जब वे किसी शहर में पहुँचती है तब उन्हें शहर का वातावरण बदला बदला सा मिलता है। वहाँ के वातावरण से तालमेल बिठाने में कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। अनुभव हीनता के कारण सही निर्णय लेना एक समस्या होती है घर से मिलने वाला पैसा सीमित होता है पर खर्च असीमित होता है। यौवन अवस्था मे इच्छाये भी असीमित होती है। जब वे बड़े घरो की लड़कियों को मौजमस्ती करते हुऐ होटलो में युवकों के साथ देखती है तब उनका भी मन ललचाने लगता है। ऐसी स्थिति में मनचले आवारा रहीस लड़के उन्हें अपनी मीठी मीठी बातो में एव लोभ लालच देकर अपने चंगुल में फंसा लेते है। फिर उनका शोषण करते है। गांव के कुछ लड़कों के साथ भी स्थिति बन जाती है। ऐसी लड़कियों और लड़कों को सोचना चाहिए और सवाल करना चाहिए कि हम गांव से शहर में क्यो आये है कहि मेरे साथ धोखा तो नही हो रहा कहि हम माता पिता को धोखा नही दे रहे है। हमारे जिंदगी के हसीन सपने कहि चैपट तो नही हो रहे है। ऐसा विचार करके बच्चों को अपने लक्ष्य से नही भटकना चाहिये।
आचार्य श्री ने कहा घर मे नारी है तो परिवार में खुशहाली है। दूध, चाय, नास्ता की गर्म गर्म प्याली है। घर मे नारी है तो शाम को जलती दिया बाती है। हर रोज बनती गर्म गर्म चपाती है घर मे नारी है तो हर रोज दिवाली का त्यौहार है। आपस मे मधुर व्यवहार है, लक्ष्मी का अम्बार है। सरस्वती का अवतार है, दिलो में सबके प्यार है और सारा जग ही रिश्तेदार है  घर मे नारी है तो रिश्तों का अनुबंध है पड़ोसी से सम्बन्ध है। सबके सब समय के पाबन्द है वरना घर के दरवाजे बंद है। 
आचार्य श्री ने कहा जिसके जीवन में हमेशा शांति पुरुषार्थ और सजकता है। जिसका मन अपने कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए चहकता है उसकी किस्मत का सितारा आज नहीं तो कल चमकता है और उसका यश मरने के बाद भी महकता है। अर्थ पुरुषार्थ गरीब को भी अमीर बना देता है। धर्म पुरुषार्थ दैत्य को भी देवता बना देता है। पुरुष करे दिल लगाकर सही पुरुषार्थ तो वही पुरुषार्थ पुरुष को परमात्मा बना देता है।

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