शरीर एक घर है जो वास्तु से बना है- आचार्यश्री
दमोह। वास्तु अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य है। वास्तु एक सत्य सिद्धांत है रीति रिवाज नहीं। वास्तु अनादिल कालीन एक कला है। वास्तु एक सार्वभौमिक सिद्धांत है। वास्तु के सिद्धांत अंक विज्ञान एवं भौगोलिक परिस्थितियों पर आधारित है। वास्तु का जितना धार्मिक महत्व है उससे कहीं ज्यादा वैज्ञानिक महत्व है जिसका उपदेश सर्वप्रथम प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी ने अपने राज्य काल में दिया था। उसके बाद उन्हीं के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती ने दिया था। 72 कलाओं में वास्तु एक कला है। वास्तु एक विद्या है उस विद्या को जानने वाले को चक्रवर्ती के राज्य में एक रत्न के रूप में स्वीकार किया जाता था। भगवान के समवशरण, देवों के भवन, राजाओं के महल एवं मंदिर वास्तु के अनुसार ही प्राचीन काल से बनाए जाते रहे हैयह उपदेश वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ने स्थित जैन धर्मशाला में दिया उन्होंने कहा भवन या मकान के लिए वास्तु शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आदिनाथ भगवान ने किया था तत्वार्थ सूत्र आदि ग्रंथ में मकान को वास्तु शब्द का ही प्रयोग किया है। आचार्य श्री ने कहा जब राजतंत्र था तब राजाओं के भवन वास्तु के अनुसार बनते थे इसलिए वास्तु सिर्फ राजाओं तक सीमित था लेकिन जब लोकतंत्र आया तब हर व्यक्ति राजा के वैभव की तरह अपना वैभव चाहता है इसलिए आज इस वास्तु का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। वास्तु का सिद्धांत लिखित रूप से शास्त्रों में भारतीय महापुरुषों की देन है लेकिन यह कला धीरे-धीरे भारत से विलुप्त होती गई और विदेशों में फैल गई लेकिन अब पुनः प्रचलन में आ चुकी है। आचार्य श्री ने कहा मानव शरीर एक घर है।इसमें आत्मा निवास करती है।यह शरीर भी वास्तु के अनुसार बना है। जब हम शरीर की ओर दृष्टिपात करते हैं तो पाते है कि सामने का भाग पूर्व दिशा, पृष्ठ भाग पश्चिम दिशा, दाया हाथ दक्षिण दिशा एवं बाया हाथ उत्तर दिशा के रूप में शरीर को चार भागों में विभाजित करने पर सम्मुख भाग में आंख, मुख, नाक यह खिड़की दरवाजे के रूप होने से पूर्व दिशा में है। पीठ पीछे पश्चिम भाग पूर्णता बंद है और रीड आदि भारी हड्डियां सब पीछे की ओर है। आमाशय जो गड्ढे का रूप है जिसमें दिन भर पानी भरते रहते है वह ईशान कोण में है। भोजन पचाने का अग्न्याशय शरीर के दिशा अनुसार अग्नि कोण में है। उसके बाद छोटी बड़ी आंत पीछे की ओर पीछे की ओर जाकर नीचे की ओर खुलती है जो उत्तर पश्चिम का कोना अर्थात वायव्य कोण की ओर संकेत करती है अतः शौचालय पश्चिम दिशा में,भोजनशाला अग्नि दिशा में, कूप बावड़ी पानी का स्थान एवं गड्ढा ईशान दिशा में होना चाहिए यही वास्तु में सिखाया जाता है ।
आचार्य श्री ने कहा इससे सिद्ध है कि वास्तु एक विज्ञान है, वास्तविक कला है। इसे अंधविश्वास नहीं कर सकते हैं। सुख शांति एवं समृद्धि हेतु घर वास्तु के अनुसार बनाना चाहिए। पुराने लोग कहा करते थे कि चूल्हा पूरब की ओर मुख वाला हो। घर के आगे दालान नीचे हो, उसके बाद पीछे कमरा ऊंचा हो, सूरजमुखी घर का दरवाजा यही पुरानी वास्तु थी।इसी कारण भारत देश सोने की चिड़िया कहा जाता था। पूरे देश में सुख,शांति समृद्धि थी। यह वास्तु हमारे देश से विदेश में गई है ना कि दूसरे देश से भारत देश में आई है। आचार्य श्री ने कहा सभी नदियां पूर्व उत्तर की ओर बहती है लेकिन नर्मदा नदी आदि कुछ नदियां पश्चिम दिशा की ओर बहती है इसलिए उस नदी के किनारे वाले आसपास के क्षेत्र में भूकंप आते रहते है क्योंकि वह प्रकृति विरुद्ध बह रही है क्योंकि पानी का बहाव वास्तु के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा भारत देश में हमेशा अलग-अलग राजाओं ने राज्य किया है एवं हमेशा युद्ध होते रहे हैं क्योंकि इस देश की वास्तु पूर्णता विपरीत है। उत्तर में पानी होना चाहिए और नीचा भाग होना चाहिए लेकिन उत्तर में हिमालय पर्वत ऊंचाई को लेकर खड़ा है। दक्षिण में ठोस भाग एवं ऊंचा होना चाहिए लेकिन दक्षिण की ओर पानी से भरा समुद्र है एवं नीचा भाग है ईशान कोण कटा हुआ है और उस दिशा में चीन देश स्थित है इसलिए वह हमेशा देश के लिए भारी रहेगा। वायव्य दिशा में पाकिस्तान है जो हमेशा हवा भरता रहेगा। वह कर कुछ नहीं सकेगा व् डराता रहेगा क्योंकि वायव्य कोण भारत देश का कटा हुआ है और वहां पाकिस्तान स्थित है। इसी कारण प्राचीन काल से देश में युद्ध होते रहे हैं।


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